13 मार्च 2024

Opposition Against CAA | CAA के खिलाफ विपक्ष | लेखक : सुभाष चन्द्र

 




भारत के “पीड़ित मुसलमानों” को #पाकिस्तान, #अफगानिस्तान और #बांग्लादेश CAA बना कर शरण दें - 


बात न चीत कोरी में लठ्ठम लट्ठा - #विपक्ष ने मुसलमानों को लागू किए गए #CAA के खिलाफ भड़का कर देश को दंगों की आग में झोंकने की योजना बना ली लगती है - #ममता, #स्टालिन, #विजयन धमकी दे रहे हैं कि वे अपने अपने राज्य में CAA लागू नहीं होने देंगे - 


कांग्रेस और केजरीवाल इसे वोट बैंक की राजनीति कह रहे हैं और मुस्लिम लीग ने सुप्रीम कोर्ट में इसे रोकने के लिए PIL दायर कर दी है जैसे मुसलमानों पर कोई बड़ी आफत आन पड़ी है CAA से -


भारत तीनों मुल्कों में प्रताड़ित हिन्दू और अन्य अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों को छोड़ कर) नागरिकता दे रहा है - इसलिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को भारत के “पीड़ित” मुसलमानों को अपने अपने देश में शरण दे कर नागरिकता देने के लिए अपना CAA बनाना चाहिए -


इस्लाम को मानने वाले भारत के मुस्लिम इस्लामिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में शरण पा कर बहुत खुश हो सकते हैं -


ओवैसी, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती, तौकीर रजा, सारे #banned #PFI के बाशिंदे, अरफ़ा खानुम शेरवानी और सबा नक़वी, राणा अय्यूब सबको ले सकते हो, ये लोग बहुत परेशान हैं, अरफ़ा खानम को तो अफगानिस्तान शरण दे और तुरंत शरिया में हुकुम दे कि नौकरी करने के लिए बुरका पहनो जो शक्ल न दिखे और शादी करो वरना जेल में रहना होगा -


मुसलमानों के अलावा ये तीनों देश भारत के कुछ “सेकुलर” हिन्दुओं को भी शरण दे सकते हैं - ये हिन्दू दिन रात भारत को गाली बकते हैं और पाकिस्तान के लिए टसुए बहाते है - खुला निमंत्रण दे दो तो लाइन लग जाएगी - वैसे प्याज टमाटर के दामों को रोने वाले भी बहुत मिलेंगे, उन्हें भी ले जाओ और ये सब इस्लाम में convert करने के काम आएंगे -


अब हमारे नेताओं की सुनों, उन्हें इस CAA में केवल धर्म का आधार नज़र आ रहा है - वो चाहते है कि जो मुसलमान उन देशों में पीड़ित हैं उन्हें भी नागरिकता दे भारत - 


समस्या यह है कि विपक्ष इन तीन मुल्कों से आये हिन्दुओं को भारत में रखना ही नहीं चाहता और इसलिए कह रहे हैं कि यह CAA “ वोटों के ध्रुवीकरण” करने के लिए उठाया कदम है - ये उद्गार जयराम रमेश के हैं और ओवैसी मुसलमानों को सड़कों पर आने के लिए कह रहा है - क्या प्रॉब्लम हैं ओवैसी के मुसलमानों को CAA से -


ध्रुवीकरण तो कांग्रेस और सारा #विपक्ष करता है - वो सेकुलर दल अनेक योजनाएं केवल मुसलमानों के लिए बनाते है जबकि मोदी ने कोई योजना केवल हिन्दुओं के लिए नहीं बनाई, उसकी योजनाएं सभी के लिए होती है 


कर्नाटक सरकार को #हिन्दू मंदिरों से मिला 445 करोड़ जिसमे से 330 करोड़ कांग्रेस सरकार ने ईसाई और मुस्लिम संगठनों को लुटा दिया - ये होता है ध्रुवीकरण - 


#कांग्रेस और विपक्षी दल तो मुसलमानों की वोटों के ध्रुवीकरण के लिए राम मंदिर का वर्षो से विरोध करते रहे हैं और अब उद्घाटन में भी नहीं गए, वो तो सब मिल कर सनातन धर्म को समाप्त करना चाहते हैं - चुनाव में केवल #मुस्लिम #वोटों के भरोसे बैठे हैं -


सिब्बल ने कभी कहा था कि संसद के पास किए कानून को #implement करना हर राज्य का फर्ज है इसलिए जो implement करने को मना कर रहे हैं, वे सरकार बर्खास्त हो सकती हैं -


#केरल और #राजस्थान #सरकार ने CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हुई है जिस पर 4 साल से फैसला नहीं हुआ - कब नींद खुलेगी मीलॉर्ड की -


#सुप्रीम कोर्ट यदि #CAA पर रोक लगाना चाहता है तो लगा दे लेकिन शर्त केवल एक हो कि एक हफ्ते में सभी बांग्लादेशी और रोहिंग्या भारत छोड़ कर चले जाएं और जब तक नहीं जाते तब तक किसी को वोट देने का अधिकार न हो -


"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 13/03/2024 

#CAA,#giving_citizenship, #Pakistan, #Afghanistan,#Bangladesh, #Muslims,#implemented_CAA,#Mamata, #Stalin, #Vijayan, #threatening , #impose_CAA ,#respective_states,#Opposition_Against_CAA, #persecuted_Hindus #minorities, #except_Muslims #Congress_Party,  #political_party,  #indi #gathbandhan  #Prime_Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal, #DMK  #A_Raja  #top_stories

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,

Sela Tunnel and Divyastra | सेला सुरंग और दिव्यास्त्र का साफ़ संदेश समझो - “पंगा मत लो” | सामने अब नेहरू नहीं मोदी है | लेखक : सुभाष चन्द्र





तड़पते चीन को पता होना चाहिए  सामने अब नेहरू नहीं मोदी है,

सेला सुरंग और दिव्यास्त्र का  साफ़ संदेश समझो - “पंगा मत लो”


समाचार था कि शनिवार 9 मार्च को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अरुणाचल प्रदेश के दौरे से जिनपिंग का चीन भड़क रहा है और विरोध जताते हुए चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा है कि “जेंगनान (अरुणाचल प्रदेश) चीन का क्षेत्र है, भारत वहां की स्तिथि में बदलाव न करे, इससे सीमा का मसला और ज्यादा जटिल हो जाएगा” 


जिनपिंग अपने साथ MOU साइन की हुई कांग्रेस के साथ मिलकर जितना मर्जी षड़यंत्र रच ले लेकिन उसे एक बात समझ लेनी चाहिए कि सामने अब न नेहरू है और न तुमसे खौफ खाने वाली मनमोहन सिंह की सरकार है बल्कि तुमसे आंख में आंख डाल कर बात करने वाला मोदी है - अरुणाचल प्रदेश किसी के बाप की जागीर नहीं है जो हलवा समझ कर खा लोगे -


कांग्रेस समय के रक्षा मंत्री ए के अंटोनी ने संसद में कहा था कि हम चीन की सीमा पर सड़कें जानबूझकर नहीं बनाते क्योंकि उससे डर है कि चीनी सेना उन सड़कों से ही भारत में घुस सकती है, यह बेवजह का खौफ नहीं था बल्कि लगता है CPC - Congress के बीच 2008 में साइन हुए MOU की शर्त रही होगी कि चीन की सीमा पर भारत कोई Infrastructure का निर्माण  नहीं करेगा -


लेकिन पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार ने चीन की सीमा पर सड़कों का जाल बिछा दिया और हर क्षेत्र को भारतीय सेना की पहुंच में खड़ा कर दिया गया, किसी भी क्षेत्र में सेना की रसद भेजी जा सकती है, संवेदनशील क्षेत्रों में जिनमे गलवान भी शामिल है हर तरह सेना को मजबूत किया गया है जिसकी वजह से चीन आज आंख उठाने की हिम्मत नहीं करता 


जिस अरुणाचल प्रदेश को जेंगनान कह कर चीन अपना क्षेत्र बताता है, उसी अरुणाचल में शनिवार को भारत द्वारा चीन की सीमा से लगते हुए इलाके में13000 फ़ीट ऊंचाई पर 825 करोड़ की लागत से बनाई गई “सेला सुरंग” को प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया है जबकि कांग्रेस सरकार एक सड़क भी नहीं बनाती थी - 





यह सेला टनल असम के तेजपुर जिले को अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी कामेंग जिले से जोड़ती है जिससे पूरे वर्ष आवागमन जारी रहेगा और सेना की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) तक पहुंच कायम रहेगी - यह चीन के लिए एक बड़ी चेतावनी है और शायद इसलिए कांग्रेस ने इस टनल बनने पर सरकार को बधाई नहीं दी है -


अभी 3 दिन पहले भारत ने चीन की छाती पर टनल बना कर शंखनाद किया था और कल DRDO ने अग्नि - 5 का सफल परीक्षण कर चीन समेत दुनिया के सभी शक्तिशाली देशों को अपनी क्षमताओं का परिचय दे दिया - इस मिसाइल का नाम ही “दिव्यास्त्र” रखा गया है जिसका मतलब समझ आने से ही चीन को चेतावनी मिल जाएगी - 



इस मिसाइल के सफल परीक्षण से भारत अब अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस जैसे देशों के बाद छठा देश बन गया जिसके पास एमआईआरवी तकनीक (मल्टीपल इंडेपेंडेंटली टार्गेटेबल री-एंट्री व्हीकल) पर आधारित मिसाइल सिस्टम है - इस मिसाइल से दुश्मन के कई ठिकानों को एक साथ निशाना बनाया जा सकता है - यूरोप के कुछ देशों समेत पूरा एशिया अग्नि-5 की जद में होगा यानी पूरा चीन भी - यह मिसाइल बड़ी बड़ी एंटी बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम को भी चकमा दे सकती है -


ये मोदी के 10 वर्षों की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है जो चीन और पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों के लिए खतरे की घंटी है और कांग्रेस इन दोनों देशों की “मित्र पार्टी” है यानी भारत की शत्रु कांग्रेस भी है क्योंकि शत्रु का मित्र शत्रु ही होता है -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 12/03/2024 

#Sela_Tunnel, #Divyastra,  #Political, #China #india #indo_china,  #Congress_Party,  #political_party,  #indi #gathbandhan  #Prime_Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal, #DMK  #A_Raja  #top_stories

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Pahadi Baba Kanshi Ram | पहाडी बाबा कांशी राम

 


महात्मा गाँधी या भगत सिंह तभी नेशनल हीरो बन पाए, जब उन्हें जमीनी स्तर पर बाबा कांशी राम जैसे आजादी के दीवाने मिले. 🇮🇳

🇮🇳 हिमाचल प्रदेश का जिला #कांगड़ा. तहसील #ज्वालामुखी. साल 1983. 20 जून की दोपहरी को 10 साल का एक लड़का कपिल देव को भारत का पहला क्रिकेट वर्ल्ड कप उठाते देखना चाहता था. दूर-दूर तक टीवी नहीं थे. पता चला कि पास के एक गाँव में एक टीवी है. वो घर पर बिना बताए मैच देखने चला गया. लौटते हुए ऐसा महसूस हुआ मानो वो ही वर्ल्ड कप जीतकर लौट रहा हो. मगर यहाँ पिता की बेंत इंतजार कर रही थी. उन्होंने मैच देखने जाने के जुर्म में लड़के को बरामदे में उल्टा करके लटका दिया. नीचे लाल मिर्च का धुँआ लगाकर खूब पीटा. इससे ज्यादा बड़ी सज़ा और क्या हो सकती थी. मगर इस लड़के को उसमें भी एक तरह की खुशी मिल रही थी. खुशी इसलिए क्योंकि उसके दिमाग में उस वक्त एक किस्सा दौड़ रहा था.

🇮🇳 किस्सा जो उसने अपनी तीसरी क्लास की किताब में पढ़ा था. उसमें लिखा था कि अंग्रेज #स्वतंत्रता सेनानियों को कोड़े मारकर पीटते थे. इस तरह की #यातनाएं अंग्रेजों ने हिमाचल के एक स्वतंत्रता सेनानी को दी थीं. अंग्रेजों ने उन्हें उल्टा लटकाकर मिर्ची का धुँआ दिया था. और तो और बर्फ की सिल्लियों पर लिटाकर लात-घूँसे मारे थे. पिता की ये मार 10 साल के वीरेंद्र के आगे कुछ नहीं थी. वो सेनानी और कोई नहीं, हिमाचल का #पहाड़ी_गाँधी था. वो पहाड़ी गाँधी जिसने अपनी आखिरी साँस तक घूम-घूम कर लोगों में आजादी के लिए दीवानगी पैदा की.

🇮🇳 10 साल के वीरेंद्र, अब 45 साल के वीरेंद्र शर्मा ‘वीर’ हो चुके हैं और हिमाचल में बाबा कांशीराम की भूली-बिसरी विरासत को सँभालने और संजोने में लगे हैं. 11 जुलाई को कांशी राम के जन्मदिन पर दी लल्लनटॉप भी एक कोशिश कर रहा है इस स्वतंत्रता सेनानी की जिंदगी की एक झलकी आप तक लाने की.

🇮🇳 "भारत मां जो आजाद कराणे तायीं

मावां दे पुत्र चढ़े फाँसियां

हंसदे-हंसदे आजादी दे नारे लाई..

मैं कुण, कुण घराना मेरा, सारा हिन्दुस्तान ए मेरा

भारत मां है मेरी माता, ओ जंजीरां जकड़ी ए.

ओ अंग्रेजां पकड़ी ए, उस नू आजाद कराणा ए..

कांशीराम जिन्द जवाणी, जिन्दबाज नी लाणी

इक्को बार जमणा, देश बड़ा है कौम बड़ी है.

जिन्द अमानत उस देस दी"

🇮🇳 जब हिंदुस्तान में आजादी के लिए नारे लग रहे थे, मुल्क इंकलाब जिंदाबाद बोल रहा था, दूर पहाड़ों में एक मामूली सा इंसान अपनी पहाड़ी भाषा और पहाड़ी लहजे में #देशभक्ति की धुन जमा रहा था. वो गांव-गांव घूमकर अपने लिखे लोकगीतों, कविताओं और कहानियों से अलख जगा रहा था. वो हिमाचल के एक एक इंसान तक पहुंच कर उसे आजादी के आंदोलन से जोड़ रहा था. नाम #कांशी_राम. #कांगड़ा जिले में देहरा तहसील के #डाडासिबा गाँव से निकले कांशी ने पहली बार पहाड़ी बोली को लिखा और गा-गाकर लोगों को नेशनल मूवमेंट से जोड़ा.

11 जुलाई 1882 को #लखनू_राम और #रेवती_देवी के घर पैदा हुए कांशी की शादी 7 साल की उम्र में हो गई थी. उस वक्त पत्नी #सरस्वती की उम्र महज 5 साल थी. अभी 11 साल के ही हुए तो पिता की मौत हो गई. परिवार की पूरी जिम्मेदारी सिर पर थी. काम की तलाश में वो लाहौर चले गए. यहां गए तो कुछ काम धंधा तलाशने थे, मगर उस वक्त #आजादी का आंदोलन तेज हो चुका था और कांशी के दिल दिमाग में आजादी के नारे रह-रह कर गूंजने लगे थे. आज़ादी की तलब ने यहां मिलवाया दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों से. इनमें #लाला_हरदयाल, भगत सिंह के चाचा #सरदार_अजीत_सिंह और #मौलवी_बरक़त_अली शामिल थे. संगीत और साहित्य के शौकीन कांशी की मुलाकात यहां उस वक्त के मशहूर देश भक्ति गीत ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ लिखने वाले सूफी #अंबा_प्रसाद और #लाल_चंद_फलक से भी हुई जिसके बाद कांशीराम का पूरा ध्यान आजादी का लड़ाई में रम गया.

🇮🇳 सालों से बाबा कांशी राम के जीवन के पहलुओं पर नजर रखने वाले वीरेंद्र शर्मा कहते हैं कि कांशी राम बहुत पहले ये बात भाँप गए थे कि #संगीत सबको बाँधता है. संगीत के जरिए अनपढ़ से अनपढ़ इंसान तक पहुंचा जा सकता है. इसके लिए उन्होंने लाहौर की धोबी घाट मंडी में रहते हुए गाना सीखा अपनी बातों को लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए गाना शुरू किया. वो पहाड़ी भाषा में लिखते और गाते थे. वो कभी ढोलक तो कभी मंजीरा लेकर गाँव-गॉंव जाते और अपने देशभक्ति के गाने और कविताएं गाते थे.”

🇮🇳 साल 1905 में कांगड़ा घाटी भूकंप से तबाह हो गई. 7.8 की तीव्रता वाले उस ज़लज़ले में करीब 20 हजार लोगों की जान गई, 50,000 मवेशी मारे गए. उस वक्त #लाला_लाजपत_राय की कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक टीम लाहौर से कांगड़ा पहुँची जिसमें बाबा कांशी राम भी शामिल थे. कांशी ने गाँव-गाँव जाकर भूकंप से प्रभावित लोगों की मदद की. यहां से उनकी लाजपत राय से नजदीकियां बढ़ीं. वो आजादी की लड़ाई में और सक्रिय हो गए. मगर 1911 में वो जब दिल्ली दरबार के उस आयोजन को देखने पहुंचे जहां किंग जॉर्ज पंचम को भारत का राजा घोषित किया गया था, कांशी राम ने ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी लेखनी को और धारदार बना लिया.

🇮🇳 1919 में जब जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, कांशीराम उस वक्त अमृतसर में थे. यहां ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज बुलंद करने की कसम खाने वाले कांशीराम को 5 मई 1920 को #लाला_लाजपत_राय के साथ दो साल के लिए धर्मशाला जेल में डाल दिया गया. इस दौरान उन्होंने कई कविताएं और कहानियां लिखीं. खास बात ये कि उनकी सारी रचनाएं पहाड़ी भाषा में थीं. सजा खत्म होते ही कांगड़ा में अपने गांव पहुंचे और यहां से उन्होंने घूम-घूम कर अपनी देशभक्ति की कविताओं से लोगों में जागृति लानी शुरू कर दी. बाबा कांशीराम के बारे में पालमपुर से लेखक सुशील कुमार फुल्ल बताते हैं, “पालमपुर में एक जनसभा हुई थी और उस वक्त तक कांशीराम को भाषायी जादू और प्रभाव इतना बढ़ चुका था कि उन्हें सुनने हजारों लोग इकट्ठा हो गए. ये देख अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फिर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. इस तरह वो 11 बार जेल गए और अपने जीवन के 9 साल सलाखों के पीछे काटे. जेल के दौरान उन्होंने लिखना जारी रखा. 1 उपन्यास, 508 कविताएं और 8 कहानियां लिखीं.”

🇮🇳 508 में से 64 कविताएं छपी हैं, बाकी संदूकों में पड़ी धूल खा रही हैं.

आज़ादी के दीवाने और पहाड़ी भाषा की उन्नति के प्रति अनुराग रखने के कारण कांशी राम अपनी #मातृभाषा में लगातार लिखते रहे. उनकी प्रसिद्ध कविता है- ‘अंग्रेज सरकार दा टिघा पर ध्याड़ा’ (अंग्रेज सरकार का सूर्यास्त होने वाला है). इसके लिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया था मगर राजद्रोह का मामला जब साबित नहीं हुआ तो रिहा कर दिया गया. अपनी क्रांतिकारी कविताओं के चलते उन्हें 1930 से 1942 के बीच 9 बार जेल जाना पड़ा.

दौलतपुर जो अब ऊना जिले में आता है, एक जनसभा चल रही थी. यहां उस वक्त #सरोजनी_नायडू भी आयी थीं. यहां कांशीराम की कविताएं और गीत सुनकर सरोजनी ने उन्हें बुलबुल-ए-पहाड़ कहकर बुलाया था. जेल के दिनों में लिखी हर रचना उस वक्त लोगों में जोश भरने वाली थी. ‘समाज नी रोया’, ‘निक्के निक्के माहणुआं जो दुख बड़ा भारा’, ‘उजड़ी कांगड़े देश जाना’ और ‘कांशी रा सनेहा’ जैसी कई कविताएं मानवीय संवेदनाओं और संदेशों से भरी थीं.

🇮🇳 साल 1937 में जवाहर लाल नेहरू होशियारपुर में गद्दीवाला में एक सभा को संबोधित करने आए थे. यहां मंच से नेहरू ने बाबा कांशीराम को पहाड़ी गांधी कहकर संबोधित किया था. उसके बाद से कांशी राम को पहाड़ी गांधी के नाम से ही जाना गया. जीवन में अनेक मुश्किलों से जूझते हुए बाबा कांशी राम ने देश, धर्म और समाज पर अपनी चुटीली रचनाओं से गहन टिप्पणियां कीं.

🇮🇳 हिमाचल से निकलने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान लोकसभा सांसद शांता कुमार ने दी लल्लनटॉप को बताया कि कांशी राम खुद को देश के लिए समर्पित कर चुके थे. वो कहते हैं,” स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव इतना गहरा हो चुका था कि 1931 में जब #भगत_सिंह, #सुखदेव और #राजगुरू को फांसी की सजा की खबर बाबा कांशी राम तक पहुंची तो उन्होंने प्रण लिया कि वो ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी लड़ाई को और धार देंगे. साथ ही ये भी कसम खाई कि जब तक मुल्क आज़ाद नहीं हो जाता, तब तक वो #काले कपड़े पहनेंगे. इसके लिए उन्हें ‘स्याहपोश जरनैल’ (काले कपड़ों वाला जनरल) भी कहा गया. कांशीराम ने अपनी ये कसम मरते दम तक नहीं तोड़ी. 15 अक्टूबर 1943 को अपनी आखिरी सांसें लेते हुए भी कांशीराम के बदन पर काले कपड़े थे. कफ़न भी काले कपड़े का ही था.”

🇮🇳 पहाड़ी गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान के चलते 23 अप्रैल 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने काँगड़ा के ज्वालामुखी में बाबा कांशी राम पर एक डाक टिकट जारी की थी. उस वक्त कांशी राम के नाम पर हिमाचल प्रदेश से आने वाले कवियों और लेखकों को अवॉर्ड देने की भी शुरुआत हुई थी जो पिछले कुछ सालों से नहीं दिया जा रहा है.

🇮🇳 अपने जीवन को देशहित में लगाने वाले इस पहाड़ी गाँधी की समय के साथ वो अनदेखी हुई है कि उनका पुश्तैनी मकान भी पूरी तरह ढहने की कगार पर है. 2017 में चुनावों से पहले डाडासिबा में इस घर को कांशीराम संग्रहालय बनाने के सरकारी वादे को पूरा करने कोई सरकार नहीं आई है. बाकी कांशीराम के नाम यहाँ एक सरकारी स्कूल है, वो भी हिमाचल बनने से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने बनवाया था, उसके अलावा कोई इमारत, चौक, स्कूल, कॉलेज बाबा कांशीराम के नाम पर नहीं है.

🇮🇳 डाडा सीवा में ये इकलौता स्कूल बाबा कांशी राम के नाम पर है.

वीरेंद्र बताते हैं कि उन्होंने 2016 में कांशी राम के इस जर्जर घर की एक तस्वीर फेसबुक पर डाली थी और लिखा था कि क्या कोई बता सकता है कि ये घर हमारे किस स्वतंत्रता सेनानी का है. लोग बता ही नहीं पाए. तभी से हमने ये मुहिम चलाई है कि कांशी राम से जुड़ी हर चीज को संरक्षित किया जाए. इनके घर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए. आज भी इनकी कुछ दुर्लभ चीजें लावारिस पड़ी हैं जिसकी कीमत करोड़ों में हो सकती है. इसमें जेलों से लिखे कुछ पत्र, तस्वीरें, संस्मरण, कविताएं और कुछ निजी इस्तेमाल वाली चीजें हैं. जुलाई 2017 में चुनावों से ऐन पहले वीरभद्र सरकार ने इनके जर्जर घर को स्मारक बनाने की घोषणा की थी. मगर सरकार बदलने तक ये फाइल सरकारी दफ्तरों के ही चक्कर काट रही है. यहाँ मकान के नाम पर दो दीवारें गिर चुकी हैं और बाकी बची दो एक तेज बारिश का इंतजार कर रही हैं.

🇮🇳 कांशी राम की विरासत को बचाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि महात्मा गांधी या भगत सिंह तभी नेशनल हीरो बन पाए, जब उन्हें जमीनी स्तर पर बाबा कांशी राम जैसे आजादी के दीवाने मिले.

~ प्रवीण

साभार: thelallantop.com

🇮🇳 माँ भारती को दासता की बेडियों से मुक्त कराने के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले #पहाडी_बाबा_कांशी_राम #Pahadi_Baba_Kanshi_Ram जी को कोटि-कोटि नमन !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 

#जय_मातृभूमि🇮🇳

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Aatma Ranjan | आत्मा रंजन | कवि

 


डिगे भी हैं

लड़खड़ाए भी

चोटें भी खाईं कितनी ही

पगडंडियां गवाह हैं

कुदालियों, गैंतियों

खुदाई मशीन ने नहीं

कदमों ने ही बनाए हैं

रास्ते।"

🇮🇳🔰 कवि आत्मा रंजन का कहना है कि #हिंदी मेरे लिए भावुकता से आगे #आत्मीयता, #व्यवहारिकता और #आवश्यकता का मामला है। आत्मीय संवाद से लेकर कविता, कहानी और वैचारिकता की तमाम भंगिमाएं मेरे लिए हिंदी में ही सहजता से आकार पाती हैं। हिंदी से इस स्नेह या अनुराग का मतलब अन्य भाषाओं का विरोध नहीं। हिंदी मुझे पहचान देती है और अंग्रेजी या अन्य भाषाएं विस्तार देती हैं। हिंदी की स्थिति के संदर्भ में वे कहते हैं कि शासक और शासित की, शास्त्र और लोक की भाषा हमेशा से अलग रही है। यहाँ तक कि न्याय की भी।

🇮🇳🔰 इसलिए न्याय तक भी प्रभुवर्ग और बिचौलियों की गिरफ्त में अधिक रहा है। भाषा का यह अलगाव या यह दूरी शासक और प्रभु वर्ग के लिए शासन और वर्चस्व बनाएं रखने में अत्यंत सहायक और सुविधाजनक रहती है। अफसोस कि आजादी के बाद, लोकतंत्र की आमद के बाद भी यह अलगाव या भेद बहुत चालाकी से जारी रखा गया है। हिंदी को उसका अपेक्षित स्थान तभी मिल पाएगा जब वह शासन, न्याय और रोजगार की भाषा बन पाएगी। आत्मा रंजन वर्तमान में प्रवक्ता हिंदी के पद पर कार्यरत हैं। उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा गया है।

🇮🇳 हिंदी साहित्यजगत के प्रसिद्ध #कवि #Poet #आत्मा_रंजन #Aatma_Ranjanजी को जन्मदिन की ढेरों बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Udham Singh | उधम सिंह | great revolutionary | महान क्रांतिकारी

 


20 वर्ष की आयु में जघन्य नरसंहार का बदला लेने का संकल्प लिया, 21 वर्ष तक धैर्यपूर्ण प्रयास के बाद उचित अवसर मिलने पर जलियांवाला बाग में खून की होली खेलने के दोषी 'माइकल ओ ड्वायर' को मौत की नींद सुला दिया 🇮🇳

🇮🇳 भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को लाहौर से 130 मील दूर #पिलबाद में हुआ था. सिंह #हिंदुस्तान_सोशलिस्ट_रिपब्लिकन_एसोसिएशन और #गदर_पार्टी से जुड़े थे.

🇮🇳 ऐसा कहते हैं कि इतिहास से अच्छा कोई दूसरा गुरू नही हो सकता. इतिहास केवल खुद में घटनाओं को नहीं समेटता है, बल्कि हमें बहुत कुछ सिखाता भी है. ऐसे ही हर दिन किसी न किसी इतिहास से जुड़ा होता है. इसी तरह भारत के इतिहास में आज यानी 13 मार्च का दिन बहुत अहमियत रखता है. आज से ठीक 83 साल पहले 1940 में एक नौजवान ने पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर (Michael O Dyer) पर इंग्लैंड में गोलियां बरसाकर जलियांवाला बाग की घटना का बदला लिया था. वह युवा था उधम सिंह.

🇮🇳 उधम सिंह ने जलियांवाला बाग के 21 साल बाद एक भरे हॉल में माइकल डायर को गोली मारी थी. जलियांवाला कांड के समय शहीद उधम सिंह की उम्र महज 20 साल थी. जिनका इकलौता मकसद इस घटना का बदला लेना था. माइकल ओ डायर रिटायर होने के बाद हिंदुस्तान छोड़कर लंदन में बस गया था. 1940 को लंदन के कॉक्सटन हॉल में बैठक थी. जिसमें डायर भी शामिल थे, जहाँ उधम सिंह भी पहुँच गए. जैसे ही डायर बैठक में भाषण देने के लिए कुर्सी की तरफ बढ़े, तभी ही उधम सिंह ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं, जिसकी वजह से डायर की मौके पर ही मौत हो गई. इसके बाद उधम सिंह पर मुकदमा भी चला और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें फाँसी दे दी गई.

🇮🇳 सन् 1919 में 13 अप्रैल को पंजाब में स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग में खून की होली खेली गई थी. जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए सभा हो रही थी, जिसे रोकने के लिए ब्रिटिश अधिकारी जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थी. ब्रिटिश सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार, कर्नल रेजिनाल्ड डायर से चलाई गईं अंधाधुंध गोलीबारी में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित 388 लोग मारे गए थे, जबकि 1,200 लोग घायल हुए थे.

🇮🇳 भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को लाहौर से 130 मील दूर पिलबाद में हुआ था. सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) और गदर पार्टी से जुड़े थे. उन्हें पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ ड्वायर की हत्या के लिए जाना जाता है. उधम सिंह का शुरूआत में नाम #शेर_सिंह था, जो कि बाद में बदलकर उधम कर दिया गया था. सिंह के पिता का नाम #तहल_सिंह और माता का नाम #नारायण_कौर था. उधम दो भाई थे और वह छोटे थे. उनके माता-पिता की मृत्यु तब ही हो गई थी जब वह बहुत छोटे थे, जिसके कारण दोनों भाईयों की परवरिश अनाथालय में हुई थी. सिंह के भाई की गंभीर बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद उधम ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की.

साभार: abplive.com

🇮🇳 जलियांवाला बाग नरसंहार के दोषी को मौत के घाट उतारने के उचित अवसर लिए 21 वर्ष तक धैर्यपूर्वक संकल्पवान रहे, #मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम की अद्भुत मिसाल कायम करने वाले महान क्रांतिकारी #उधम_सिंह #Udham_Singh जी को कोटि-कोटि नमन !

🇮🇳💐🙏

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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12 मार्च 2024

Prahlad Chunnilal Vaidya | प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य | Mathematician | गणितज्ञ



 प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य (जन्म- 23 मई, 1918; मृत्यु- 12 मार्च, 2010) भारत के उन गिने-चुने गणितज्ञों में से एक रहे, जिन्होंने गणित के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण व दूरगामी योगदान दिया था। वह न सिर्फ एक मशहूर गणितज्ञ थे बल्कि एक शिक्षाविद भी थे। वे चाहते थे और प्रयास करते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। वे मानते थे कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि गणित तो हमारी संस्कृति का अंग है।

🇮🇳 प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का जन्म 23 मई, 1918 को #गुजरात के #जूनागढ़ जिले के #शाहपुर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भावनगर में संपन्न हुई। गणित में विशेष रुचि होने के कारण उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अनुप्रयुक्त गणित में विशेषज्ञता के साथ एम.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य अपने समय के प्रसिद्ध भौतिकविद और शिक्षाविद #विष्णु_वासुदेव_नार्लीकर से बहुत प्रभावित थे।

🇮🇳 उस दौर में विष्णु वासुदेव नार्लीकर के साथ कार्य करने वाले शोधार्थियों के समूह की पहचान सापेक्षता केन्द्र के रूप में विख्यात हो चुकी थी। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य भी उनके दिशा-निर्देश में इस क्षेत्र में शोधकार्य करना चाहते थे। इसलिए वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय गए। वहाँ उन्होंने विष्णु वासुदेव नार्लीकर के दिशा-निर्देशन में सापेक्षता सिद्धांत पर शोधकार्य शुरू कर दिया तथा ‘वैद्य सॉल्यूशन’ प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त की प्रासंगिकता को मान्यता साठ के दशक में मिली, जब खगोल-विज्ञानियों ने ऊर्जा के घने, मगर शक्तिशाली उत्सर्जकों की खोज की। जैसे ही सापेक्षतावादी खगोल भौतिकी को मान्यता मिली, वैसे ही ‘वैद्य सॉल्यूशन’ को सहज ही अपना स्थान हासिल हो गया और विज्ञान के क्षेत्र में प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य को ख्याति मिली।

🇮🇳 प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य एक मशहूर गणितज्ञ होने के साथ ही एक शिक्षाविद भी थे। वह चाहते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। इसके लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। उनका मानना था कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। उन्होंने गुजराती तथा अंग्रेज़ी में विज्ञान और गणित की कई प्रसिद्ध पुस्तकों का लेखन किया, जैसे, ‘अखिल ब्राह्मांडमैन’, जिसका अर्थ है सम्पूर्ण ब्रह्मांड में, तथा ‘व्हाट इज मॉडर्न मैथमेटिक्स’।

🇮🇳 वर्ष 1947 तक प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य ने सूरत, राजकोट, मुम्बई आदि जगहों पर गणित के शिक्षक के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने अपनी शिक्षा भी जारी रखी। वर्ष 1948 में उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अपनी पी.एच.डी. पूरी कर ली। अपना रिसर्च कार्य उन्होंने नव स्थापित टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान से किया। यहीं उनकी मुलाकात प्रसिद्ध वैज्ञानिक #डॉ_होमी_जहांगीर_भाभा से हुई थी।

🇮🇳 कुछ समय बाद मुम्बई छोड़कर प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य अपने गृह राज्य गुजरात लौट आए। वर्ष 1948 में उन्होंने बल्लभनगर के विट्ठल महाविद्यालय में कुछ समय तक शिक्षण कार्य किया। फिर वह गुजरात विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हुए। वैद्य ने अपना पूरा जीवन एक समर्पित शिक्षक के रूप में बिताया। वह हमेशा खुद को एक गणित शिक्षक कहे जाने पर गर्वान्वित महसूस करते थे। प्रशासनिक प्रतिबद्धताओं के बावजूद वह विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए समय निकाल ही लेते थे।

🇮🇳 वर्ष 1971 में उन्हें गुजरात लोकसेवा आयोग का सभापति नियुक्त किया गया। फिर वर्ष 1977-1978 के बीच वह केन्द्रीय लोकसेवा आयोग के भी सदस्य रहे। 1978-1980 के दौरान वह गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वैद्य ने गुजरात गणितीय सोसायटी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विक्रम साराभाई कम्यूनिटी साइंस सेंटर के विकास में भी उनका अहम योगदान था। इंडियन एसोसिएशन फॉर जनरल रिलेटिविटी ऐंड ग्रेविटेशन (आईएजीआरजी) की स्थापना में भी वैद्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वर्ष 1969 में स्थापित इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष सर विष्णु वासुदेव नार्लीकर थे।

🇮🇳 प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य को स्वतंत्रता के बाद भारत में गाँधीवादी दर्शन के अनुयायी के रूप में जाना जाता है। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य गॉंधीजी के विचारों से प्रेरित होकर आजादी के आन्दोलन में भी शामिल रहे। उन्होंने गाँधीवादी विचारों को अपनाते हुए खादी का कुर्ता और टोपी को धारण किया। उपकुलपति के पद पर रहते हुए भी सरकारी कार का उपयोग करने से मना कर दिया और विश्वविद्यालय आने-जाने के लिए साइकिल का ही उपयोग करते रहे।

🇮🇳 12 मार्च, 2010 को 91 वर्ष की आयु में प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का निधन हो गया। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य के योगदान को देखते हुए विज्ञान संचार के लिए समर्पित संस्था विज्ञान प्रसार द्वारा उन पर एक वृत्तचित्र का भी निर्माण किया गया है।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं शिक्षाविद #mathematician and educationist #प्रहलाद_चुन्नीलाल_वैद्य #Prahlad_Chunnilal_Vaidya जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Dr. Harmohinder Singh Bedi | डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी |

 



40 बच्चों को पीएचडी और 60 को एमफिल कराने एवं पंजाबी-हिंदी को जोड़कर नई पहचान दिलाने वाले डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी को भारत सरकार ने पद्म श्री (2022) से सम्मानित किया है। 🇮🇳

🇮🇳 हिंदी लेखक और शिक्षाविद हरमोहिंदर सिंह बेदी का जन्म 12 मार्च, 1950 को हुआ था। हरमोहिंदर सिंह बेदी का प्रेम हिंदी के प्रति उनके पिता #प्रीतम_सिंह_बेदी के कारण जागा। पिता रेलवे में स्टेशन मास्टर थे तो उन्हें कभी हिमाचल तो कभी पंजाब में पढ़ने का मौका मिला। ग्रेजुएशन करते समय हरमोहिंदर सिंह बेदी होशियारपुर में थे। तब उनके लेख व कविताएं छपनी शुरू हो चुकी थीं। इसके बाद उन्होंने गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी से एमए हिंदी की, जहां उनके गुरु बने हिंदी के क्रिटिक्स #डॉ_रमेश_कुंतल। डॉ. रमेश के साथ उन्हें पंजाब में हिन्दी साहित्य पर काम करने का मौका मिला। यह वह पंजाब था, जब हिमाचल का एक बड़ा हिस्सा हरियाणा पंजाब में ही था।

🇮🇳 डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने पंजाबी और हिंदी के बीच पुल बनाने का काम किया। इसके लिए उन्होंने एमए हिंदी करने के साथ-साथ भागलपुर यूनिवर्सिटी से डी लिट और पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से एमए पंजाबी भी की। एमए पंजाबी करने का मकसद हिंदी और पंजाबी के बीच के पुल को जानना था। अपने जीवन काल में 'हिंदी सेवी पुरस्कार' प्राप्त करने के अलावा उन्हें 'शिरोमणि हिंदी पुरस्कार', 'राज भाषा पुरस्कार' भी प्राप्त किया। हिंदी साहित्य में 150 सालों से काम कर रही संस्था 'हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग' की तरफ से उन्हें 'साहित्य महामहोपाध्याय' की डिग्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।

🇮🇳 डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी का ज्ञान मात्र भारत ही नहीं, विदेशों को भी प्राप्त हुआ। उनके 16 शोधपत्र विदेशी जरनलों में भी छप चुके हैं। इसके अलावा भारत में छपने वाला कोई भी ऐसा जरनल नहीं बचा, जिसमें उनके शोध पत्र को जगह न मिली हो। अपने जीवन काल में उन्होंने कनाडा, डेनमार्क, नार्वे, पाकिस्तान, भूटान और सिंगापुर में भी अपने शोधपत्र पढ़े। भारत में 200 से अधिक शोधपत्र वह पढ़ चुके हैं। इसके अलावा अभी तक वह 40 बच्चों को पीएचडी और 60 स्टूडेंट्स को एमफिल के शोध करवा चुके हैं।

🇮🇳 डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी एक सर्वोत्कृष्ट शिक्षाविद हैं तथा हिंदी साहित्य में पंजाब का सांस्कृतिक एवं धार्मिक योगदान के बारे में शोध ने आपको शैक्षणिक क्षेत्र में विशेष प्रसिद्धि दिलाई है। #पंडित_श्रद्धाराम_फिल्लौरी पर उनकी तीन खंडों में शोध कार्य ने हिंदी साहित्य के इतिहास को नई दिशा प्रदान की है। उन्होंने हिंदी को बढ़ावा देने और विकास के लिए भारत के कोने-कोने की यात्रा की है। विगत दशक से वे सार्क देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए समान सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत के माध्यम से इनमें सांस्कृतिक संबंध विकसित करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

🇮🇳 उन्होंने तीस से भी अधिक पुस्तकों की रचना एवं संपादन कार्य किया है और हिंदी के सभी प्रमुख पत्रिकाओं में उनके लेखों को स्थान प्राप्त हुआ है। वे अनेक हिंदी समाचार पत्रों में नियमित स्‍तंभकार हैं । उनके कवि हृदय व्यक्तित्व (पांच से अधिक कविता संग्रह) और प्रभावी वक्ता गुण से सभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

🇮🇳 अनेक क्षेत्रीय पुरस्कारों एवं सम्‍मानों के साथ-साथ उन्हें हिंदी भाषा के क्षेत्र में योगदान के लिए महामहिम भारत के राष्ट्रपति महोदय द्वारा 'हिंदी सेवी पुरस्कार (2017)' तथा पंजाब सरकार द्वारा 'शिरोमणि हिंदी साहित्यकार (2004)' से भी सम्मानित किया गया है। उन्होंने श्रम एवं नियोजन मंत्रालय तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण मंत्रालय में हिंदी सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं। उन्हें नवीन शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को तैयार करने के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय भाषा परिषद के पैनल में भी शामिल किया गया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #पद्मश्री, 'हिंदी सेवी पुरस्कार', 'शिरोमणि हिंदी साहित्यकार सम्मान' 'राज भाषा पुरस्कार' और 'साहित्य महामहोपाध्याय' की उपाधि से विभूषित; विश्वविख्यात हिंदी #लेखक #Author और #शिक्षाविद #academician #डॉ_हरमोहिंदर_सिंह_बेदी #Dr_Harmohinder_Singh_Bedi जी को जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ढेरों बधाई एवं शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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