13 मार्च 2024

Aatma Ranjan | आत्मा रंजन | कवि

 


डिगे भी हैं

लड़खड़ाए भी

चोटें भी खाईं कितनी ही

पगडंडियां गवाह हैं

कुदालियों, गैंतियों

खुदाई मशीन ने नहीं

कदमों ने ही बनाए हैं

रास्ते।"

🇮🇳🔰 कवि आत्मा रंजन का कहना है कि #हिंदी मेरे लिए भावुकता से आगे #आत्मीयता, #व्यवहारिकता और #आवश्यकता का मामला है। आत्मीय संवाद से लेकर कविता, कहानी और वैचारिकता की तमाम भंगिमाएं मेरे लिए हिंदी में ही सहजता से आकार पाती हैं। हिंदी से इस स्नेह या अनुराग का मतलब अन्य भाषाओं का विरोध नहीं। हिंदी मुझे पहचान देती है और अंग्रेजी या अन्य भाषाएं विस्तार देती हैं। हिंदी की स्थिति के संदर्भ में वे कहते हैं कि शासक और शासित की, शास्त्र और लोक की भाषा हमेशा से अलग रही है। यहाँ तक कि न्याय की भी।

🇮🇳🔰 इसलिए न्याय तक भी प्रभुवर्ग और बिचौलियों की गिरफ्त में अधिक रहा है। भाषा का यह अलगाव या यह दूरी शासक और प्रभु वर्ग के लिए शासन और वर्चस्व बनाएं रखने में अत्यंत सहायक और सुविधाजनक रहती है। अफसोस कि आजादी के बाद, लोकतंत्र की आमद के बाद भी यह अलगाव या भेद बहुत चालाकी से जारी रखा गया है। हिंदी को उसका अपेक्षित स्थान तभी मिल पाएगा जब वह शासन, न्याय और रोजगार की भाषा बन पाएगी। आत्मा रंजन वर्तमान में प्रवक्ता हिंदी के पद पर कार्यरत हैं। उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा गया है।

🇮🇳 हिंदी साहित्यजगत के प्रसिद्ध #कवि #Poet #आत्मा_रंजन #Aatma_Ranjanजी को जन्मदिन की ढेरों बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाऍं !

🇮🇳🌹🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

Udham Singh | उधम सिंह | great revolutionary | महान क्रांतिकारी

 


20 वर्ष की आयु में जघन्य नरसंहार का बदला लेने का संकल्प लिया, 21 वर्ष तक धैर्यपूर्ण प्रयास के बाद उचित अवसर मिलने पर जलियांवाला बाग में खून की होली खेलने के दोषी 'माइकल ओ ड्वायर' को मौत की नींद सुला दिया 🇮🇳

🇮🇳 भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को लाहौर से 130 मील दूर #पिलबाद में हुआ था. सिंह #हिंदुस्तान_सोशलिस्ट_रिपब्लिकन_एसोसिएशन और #गदर_पार्टी से जुड़े थे.

🇮🇳 ऐसा कहते हैं कि इतिहास से अच्छा कोई दूसरा गुरू नही हो सकता. इतिहास केवल खुद में घटनाओं को नहीं समेटता है, बल्कि हमें बहुत कुछ सिखाता भी है. ऐसे ही हर दिन किसी न किसी इतिहास से जुड़ा होता है. इसी तरह भारत के इतिहास में आज यानी 13 मार्च का दिन बहुत अहमियत रखता है. आज से ठीक 83 साल पहले 1940 में एक नौजवान ने पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर (Michael O Dyer) पर इंग्लैंड में गोलियां बरसाकर जलियांवाला बाग की घटना का बदला लिया था. वह युवा था उधम सिंह.

🇮🇳 उधम सिंह ने जलियांवाला बाग के 21 साल बाद एक भरे हॉल में माइकल डायर को गोली मारी थी. जलियांवाला कांड के समय शहीद उधम सिंह की उम्र महज 20 साल थी. जिनका इकलौता मकसद इस घटना का बदला लेना था. माइकल ओ डायर रिटायर होने के बाद हिंदुस्तान छोड़कर लंदन में बस गया था. 1940 को लंदन के कॉक्सटन हॉल में बैठक थी. जिसमें डायर भी शामिल थे, जहाँ उधम सिंह भी पहुँच गए. जैसे ही डायर बैठक में भाषण देने के लिए कुर्सी की तरफ बढ़े, तभी ही उधम सिंह ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं, जिसकी वजह से डायर की मौके पर ही मौत हो गई. इसके बाद उधम सिंह पर मुकदमा भी चला और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें फाँसी दे दी गई.

🇮🇳 सन् 1919 में 13 अप्रैल को पंजाब में स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग में खून की होली खेली गई थी. जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए सभा हो रही थी, जिसे रोकने के लिए ब्रिटिश अधिकारी जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थी. ब्रिटिश सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार, कर्नल रेजिनाल्ड डायर से चलाई गईं अंधाधुंध गोलीबारी में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित 388 लोग मारे गए थे, जबकि 1,200 लोग घायल हुए थे.

🇮🇳 भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को लाहौर से 130 मील दूर पिलबाद में हुआ था. सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) और गदर पार्टी से जुड़े थे. उन्हें पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ ड्वायर की हत्या के लिए जाना जाता है. उधम सिंह का शुरूआत में नाम #शेर_सिंह था, जो कि बाद में बदलकर उधम कर दिया गया था. सिंह के पिता का नाम #तहल_सिंह और माता का नाम #नारायण_कौर था. उधम दो भाई थे और वह छोटे थे. उनके माता-पिता की मृत्यु तब ही हो गई थी जब वह बहुत छोटे थे, जिसके कारण दोनों भाईयों की परवरिश अनाथालय में हुई थी. सिंह के भाई की गंभीर बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद उधम ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की.

साभार: abplive.com

🇮🇳 जलियांवाला बाग नरसंहार के दोषी को मौत के घाट उतारने के उचित अवसर लिए 21 वर्ष तक धैर्यपूर्वक संकल्पवान रहे, #मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम की अद्भुत मिसाल कायम करने वाले महान क्रांतिकारी #उधम_सिंह #Udham_Singh जी को कोटि-कोटि नमन !

🇮🇳💐🙏

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

12 मार्च 2024

Prahlad Chunnilal Vaidya | प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य | Mathematician | गणितज्ञ



 प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य (जन्म- 23 मई, 1918; मृत्यु- 12 मार्च, 2010) भारत के उन गिने-चुने गणितज्ञों में से एक रहे, जिन्होंने गणित के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण व दूरगामी योगदान दिया था। वह न सिर्फ एक मशहूर गणितज्ञ थे बल्कि एक शिक्षाविद भी थे। वे चाहते थे और प्रयास करते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। वे मानते थे कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि गणित तो हमारी संस्कृति का अंग है।

🇮🇳 प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का जन्म 23 मई, 1918 को #गुजरात के #जूनागढ़ जिले के #शाहपुर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भावनगर में संपन्न हुई। गणित में विशेष रुचि होने के कारण उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अनुप्रयुक्त गणित में विशेषज्ञता के साथ एम.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य अपने समय के प्रसिद्ध भौतिकविद और शिक्षाविद #विष्णु_वासुदेव_नार्लीकर से बहुत प्रभावित थे।

🇮🇳 उस दौर में विष्णु वासुदेव नार्लीकर के साथ कार्य करने वाले शोधार्थियों के समूह की पहचान सापेक्षता केन्द्र के रूप में विख्यात हो चुकी थी। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य भी उनके दिशा-निर्देश में इस क्षेत्र में शोधकार्य करना चाहते थे। इसलिए वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय गए। वहाँ उन्होंने विष्णु वासुदेव नार्लीकर के दिशा-निर्देशन में सापेक्षता सिद्धांत पर शोधकार्य शुरू कर दिया तथा ‘वैद्य सॉल्यूशन’ प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त की प्रासंगिकता को मान्यता साठ के दशक में मिली, जब खगोल-विज्ञानियों ने ऊर्जा के घने, मगर शक्तिशाली उत्सर्जकों की खोज की। जैसे ही सापेक्षतावादी खगोल भौतिकी को मान्यता मिली, वैसे ही ‘वैद्य सॉल्यूशन’ को सहज ही अपना स्थान हासिल हो गया और विज्ञान के क्षेत्र में प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य को ख्याति मिली।

🇮🇳 प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य एक मशहूर गणितज्ञ होने के साथ ही एक शिक्षाविद भी थे। वह चाहते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। इसके लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। उनका मानना था कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। उन्होंने गुजराती तथा अंग्रेज़ी में विज्ञान और गणित की कई प्रसिद्ध पुस्तकों का लेखन किया, जैसे, ‘अखिल ब्राह्मांडमैन’, जिसका अर्थ है सम्पूर्ण ब्रह्मांड में, तथा ‘व्हाट इज मॉडर्न मैथमेटिक्स’।

🇮🇳 वर्ष 1947 तक प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य ने सूरत, राजकोट, मुम्बई आदि जगहों पर गणित के शिक्षक के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने अपनी शिक्षा भी जारी रखी। वर्ष 1948 में उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अपनी पी.एच.डी. पूरी कर ली। अपना रिसर्च कार्य उन्होंने नव स्थापित टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान से किया। यहीं उनकी मुलाकात प्रसिद्ध वैज्ञानिक #डॉ_होमी_जहांगीर_भाभा से हुई थी।

🇮🇳 कुछ समय बाद मुम्बई छोड़कर प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य अपने गृह राज्य गुजरात लौट आए। वर्ष 1948 में उन्होंने बल्लभनगर के विट्ठल महाविद्यालय में कुछ समय तक शिक्षण कार्य किया। फिर वह गुजरात विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हुए। वैद्य ने अपना पूरा जीवन एक समर्पित शिक्षक के रूप में बिताया। वह हमेशा खुद को एक गणित शिक्षक कहे जाने पर गर्वान्वित महसूस करते थे। प्रशासनिक प्रतिबद्धताओं के बावजूद वह विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए समय निकाल ही लेते थे।

🇮🇳 वर्ष 1971 में उन्हें गुजरात लोकसेवा आयोग का सभापति नियुक्त किया गया। फिर वर्ष 1977-1978 के बीच वह केन्द्रीय लोकसेवा आयोग के भी सदस्य रहे। 1978-1980 के दौरान वह गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वैद्य ने गुजरात गणितीय सोसायटी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विक्रम साराभाई कम्यूनिटी साइंस सेंटर के विकास में भी उनका अहम योगदान था। इंडियन एसोसिएशन फॉर जनरल रिलेटिविटी ऐंड ग्रेविटेशन (आईएजीआरजी) की स्थापना में भी वैद्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वर्ष 1969 में स्थापित इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष सर विष्णु वासुदेव नार्लीकर थे।

🇮🇳 प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य को स्वतंत्रता के बाद भारत में गाँधीवादी दर्शन के अनुयायी के रूप में जाना जाता है। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य गॉंधीजी के विचारों से प्रेरित होकर आजादी के आन्दोलन में भी शामिल रहे। उन्होंने गाँधीवादी विचारों को अपनाते हुए खादी का कुर्ता और टोपी को धारण किया। उपकुलपति के पद पर रहते हुए भी सरकारी कार का उपयोग करने से मना कर दिया और विश्वविद्यालय आने-जाने के लिए साइकिल का ही उपयोग करते रहे।

🇮🇳 12 मार्च, 2010 को 91 वर्ष की आयु में प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का निधन हो गया। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य के योगदान को देखते हुए विज्ञान संचार के लिए समर्पित संस्था विज्ञान प्रसार द्वारा उन पर एक वृत्तचित्र का भी निर्माण किया गया है।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं शिक्षाविद #mathematician and educationist #प्रहलाद_चुन्नीलाल_वैद्य #Prahlad_Chunnilal_Vaidya जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Dr. Harmohinder Singh Bedi | डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी |

 



40 बच्चों को पीएचडी और 60 को एमफिल कराने एवं पंजाबी-हिंदी को जोड़कर नई पहचान दिलाने वाले डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी को भारत सरकार ने पद्म श्री (2022) से सम्मानित किया है। 🇮🇳

🇮🇳 हिंदी लेखक और शिक्षाविद हरमोहिंदर सिंह बेदी का जन्म 12 मार्च, 1950 को हुआ था। हरमोहिंदर सिंह बेदी का प्रेम हिंदी के प्रति उनके पिता #प्रीतम_सिंह_बेदी के कारण जागा। पिता रेलवे में स्टेशन मास्टर थे तो उन्हें कभी हिमाचल तो कभी पंजाब में पढ़ने का मौका मिला। ग्रेजुएशन करते समय हरमोहिंदर सिंह बेदी होशियारपुर में थे। तब उनके लेख व कविताएं छपनी शुरू हो चुकी थीं। इसके बाद उन्होंने गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी से एमए हिंदी की, जहां उनके गुरु बने हिंदी के क्रिटिक्स #डॉ_रमेश_कुंतल। डॉ. रमेश के साथ उन्हें पंजाब में हिन्दी साहित्य पर काम करने का मौका मिला। यह वह पंजाब था, जब हिमाचल का एक बड़ा हिस्सा हरियाणा पंजाब में ही था।

🇮🇳 डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने पंजाबी और हिंदी के बीच पुल बनाने का काम किया। इसके लिए उन्होंने एमए हिंदी करने के साथ-साथ भागलपुर यूनिवर्सिटी से डी लिट और पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से एमए पंजाबी भी की। एमए पंजाबी करने का मकसद हिंदी और पंजाबी के बीच के पुल को जानना था। अपने जीवन काल में 'हिंदी सेवी पुरस्कार' प्राप्त करने के अलावा उन्हें 'शिरोमणि हिंदी पुरस्कार', 'राज भाषा पुरस्कार' भी प्राप्त किया। हिंदी साहित्य में 150 सालों से काम कर रही संस्था 'हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग' की तरफ से उन्हें 'साहित्य महामहोपाध्याय' की डिग्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।

🇮🇳 डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी का ज्ञान मात्र भारत ही नहीं, विदेशों को भी प्राप्त हुआ। उनके 16 शोधपत्र विदेशी जरनलों में भी छप चुके हैं। इसके अलावा भारत में छपने वाला कोई भी ऐसा जरनल नहीं बचा, जिसमें उनके शोध पत्र को जगह न मिली हो। अपने जीवन काल में उन्होंने कनाडा, डेनमार्क, नार्वे, पाकिस्तान, भूटान और सिंगापुर में भी अपने शोधपत्र पढ़े। भारत में 200 से अधिक शोधपत्र वह पढ़ चुके हैं। इसके अलावा अभी तक वह 40 बच्चों को पीएचडी और 60 स्टूडेंट्स को एमफिल के शोध करवा चुके हैं।

🇮🇳 डॉ. हरमोहिंदर सिंह बेदी एक सर्वोत्कृष्ट शिक्षाविद हैं तथा हिंदी साहित्य में पंजाब का सांस्कृतिक एवं धार्मिक योगदान के बारे में शोध ने आपको शैक्षणिक क्षेत्र में विशेष प्रसिद्धि दिलाई है। #पंडित_श्रद्धाराम_फिल्लौरी पर उनकी तीन खंडों में शोध कार्य ने हिंदी साहित्य के इतिहास को नई दिशा प्रदान की है। उन्होंने हिंदी को बढ़ावा देने और विकास के लिए भारत के कोने-कोने की यात्रा की है। विगत दशक से वे सार्क देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए समान सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत के माध्यम से इनमें सांस्कृतिक संबंध विकसित करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

🇮🇳 उन्होंने तीस से भी अधिक पुस्तकों की रचना एवं संपादन कार्य किया है और हिंदी के सभी प्रमुख पत्रिकाओं में उनके लेखों को स्थान प्राप्त हुआ है। वे अनेक हिंदी समाचार पत्रों में नियमित स्‍तंभकार हैं । उनके कवि हृदय व्यक्तित्व (पांच से अधिक कविता संग्रह) और प्रभावी वक्ता गुण से सभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

🇮🇳 अनेक क्षेत्रीय पुरस्कारों एवं सम्‍मानों के साथ-साथ उन्हें हिंदी भाषा के क्षेत्र में योगदान के लिए महामहिम भारत के राष्ट्रपति महोदय द्वारा 'हिंदी सेवी पुरस्कार (2017)' तथा पंजाब सरकार द्वारा 'शिरोमणि हिंदी साहित्यकार (2004)' से भी सम्मानित किया गया है। उन्होंने श्रम एवं नियोजन मंत्रालय तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण मंत्रालय में हिंदी सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं। उन्हें नवीन शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को तैयार करने के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय भाषा परिषद के पैनल में भी शामिल किया गया।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #पद्मश्री, 'हिंदी सेवी पुरस्कार', 'शिरोमणि हिंदी साहित्यकार सम्मान' 'राज भाषा पुरस्कार' और 'साहित्य महामहोपाध्याय' की उपाधि से विभूषित; विश्वविख्यात हिंदी #लेखक #Author और #शिक्षाविद #academician #डॉ_हरमोहिंदर_सिंह_बेदी #Dr_Harmohinder_Singh_Bedi जी को जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ढेरों बधाई एवं शुभकामनाऍं !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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S. Damodaran | एस. दामोदरन | Social Worker | सामाजिक कार्यकर्ता

 


12 मार्च, 1962 को जन्मे एस. दामोदरन #तमिलनाडु राज्य के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं। 

🇮🇳 सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी लगन तथा योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2022 में पद्म श्री से सम्मानित किया है।

🇮🇳 एस. दामोदरन ने 1984 में कॉर्पोरेट सेक्रेटरीशिप में बी.ए. की डिग्री ली, 1986 में एम.कॉम. की डिग्री और 2011 में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में एम.बी.ए. की डिग्री हासिल की।

🇮🇳 वह #तिरुचिरापल्ली स्थित एन.जी.ओ. #ग्रामालय के संस्थापक हैं।

🇮🇳 सन 1987 में स्थापित 'ग्रामालय' शुरू में ग्रामीण लोगों के आर्थिक सुधार पर केंद्रित था। बाद में यह महसूस करते हुए कि अधिक जरूरी और तत्काल चिंता स्वच्छ #पेयजल और #शौचालय सुविधाओं की अनुपलब्धता है, एनजीओ ने अपना ध्यान पानी और स्वच्छता पर स्थानांतरित कर दिया।

🇮🇳 'ग्रामालय' का उद्देश्य #पर्यावरण के अनुकूल शौचालय उपलब्ध कराकर खुले में शौच का उन्मूलन करना है। 

🇮🇳 यह अब जलशक्ति मंत्रालय, भारत सरकार का एक महत्वपूर्ण संसाधन केंद्र है।

🇮🇳 एनजीओ सीएसआर पहल के तहत सरकार, दाताओं और कॉर्पोरेट समूहों के समर्थन से काम कर रहा है।

🇮🇳 'ग्रामालय' के प्रयासों से ही 2003 में #तिरुचि के #थंडावमपट्टी गाँव को भारत के पहले खुले में शौच मुक्त गाँव में बदलने में मदद मिली।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #पद्मश्री से सम्मानित; पर्यावरण और स्वच्छ पेयजल के क्षेत्र में कार्यरत प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता #एस_दामोदरन  #S_Damodaran जी को जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ढेरों बधाई एवं शुभकामनाऍं !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Suniti Chaudhary | सुनीति चौधरी | revolutionary woman | क्रांतिकारी महिला

 


आज हम आपको बताने जा रहे हैं भारत की सबसे कम उम्र की #क्रांतिकारी_महिला #revolutionary_woman #सुनीति_चौधरी  #Suniti_Chaudhary के बारे में। सुनीति चौधरी का जन्म #टिप्पेरा के कोमिला सब-डिविजन में एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में 22 मई,1917 को हुआ था। क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो कर महज 14 वर्ष की  उम्र में ही इन्होंने एक ब्रिटिश मैजिस्ट्रेट की गोली मार कर हत्या कर दी थी। इन पर मुकदमा चला और इन्होंने अपने जीवन के 7 साल जेल में बिताए। और फिर आगे चल कर, स्वतंत्र भारत में ये एक प्रसिद्ध डॉक्टर बनीं।

🇮🇳● साल 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन अपने ज़ोरों पर था। इस दौरान लगातार धरना-प्रदर्शन हो रहे थे। आंदोलनकारियों के जुलूस रोज़ ही निकला करते थे। इसके साथ, पुलिस की क्रूरता भी चरम पर पहुँचती जा रही थी। अंग्रेज़ अफ़सरों के अत्याचारों को देख कर सुनीति के मन में उनसे बदला लेने की भावना प्रबल होती जा रही थी।

🇮🇳● इसी दौरान, फैजुन्निसा बालिका उच्च विद्यालय में उनकी सीनियर #प्रफुल्ल_नलिनी_ब्रह्मा ने उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित किताबों को पढ़ने की न सिर्फ सलाह दी, बल्कि उन किताबों को सुनीति तक पहुँचाया भी। “Life is a sacrifice for the Motherland” (जीवन अपनी मातृभूमि के लिए त्याग का नाम है) – स्वामी विवेकानंद के इन शब्दों ने देश के लिए कुछ करने के इनके विचारों को और भी मजबूती दी।

🇮🇳● आगे चल कर सुनीति आंदोलनात्मक गतिविधियों में खुल कर हिस्सा लेने लगीं। वे डिस्ट्रिक्ट वॉलन्टियर कॉर्पस की मेजर बनीं। जब #नेताजी_सुभाष_चन्द्र_बोस ने विद्यार्थी संगठन को संबोधित करने के लिए शहर का दौरा किया, तब सुनीति लड़कियों की परेड का नेतृत्व कर रही थीं।

🇮🇳● प्रफुल्ल नलिनी ने सुभाष चंद्र बोस से क्रांतिकारी आंदोलन में महिलाओं की भूमिका पर उनके विचारों के बारे में पूछा। बोस ने तुरंत जवाब दिया, “मैं आपको आगे की श्रेणी में देखना चाहूँगा।“

🇮🇳● इसी बीच, ‘युगांतर’ पार्टी से जुड़ी महिला विंग में युवतियों को क्रांतिकारी कार्यों के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा था। इन कार्यों में प्रमुख था क्रांतिकारियों को सूचना, कागजात, हथियार और पैसे पहुँचाना। यह ज़िम्मेदारी सबसे बहादुर और चालाक युवतियों को दी जाती थी।

उल्लेखनीय है कि लड़कियों को लड़कों के बराबर ज़िम्मेदारी दिए जाने की माँग प्रफुल्ल नलिनी, #शांतिसुधा_घोष और सुनीति चौधरी ने उठाई थी। जब कुछ वरिष्ठ नेताओं ने इन लड़कियों की क्षमता पर संदेह जताया, तो सुनीति ने इसका विरोध करते हुए कहा, “हमारे खंजर और लाठी के खेल का क्या मतलब, अगर हमें वास्तविक लड़ाई में भाग लेने का मौका ही नहीं मिले?”

🇮🇳● आखिरकार, उस समय के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक #बिरेन_भट्टाचारजी ने गुप्त रूप से लड़कियों का साक्षात्कार लिया और इन तीनों लड़कियों के साहस का लोहा माना। इन लड़कियों की ट्रेनिंग त्रिपुरा छात्र संघ के अध्यक्ष #अखिल_चन्द्र_नंदी की देख-रेख में शुरू हुई। ये स्कूल छोड़ शहर से दूर मयनमती पहाड़ी पर गोलियां चलाने का अभ्यास करने लगीं।

🇮🇳● उनकी असल चुनौती लक्ष्य को भेदना नहीं, बल्कि रिवॉल्वर के बैक किक को संभालना था। सुनीति की उंगली ट्रिगर तक पहुँच नहीं पाती थी, पर ये हार मानने को तैयार नहीं थीं। ये बेल्जियन रिवॉल्वर से शॉट मारने के लिए अपनी मध्यमा उंगली का इस्तेमाल करने लगीं।

🇮🇳● इनका निशाना ज़िला मैजिस्ट्रेट चार्ल्स जेफ्री बकलैंड स्टीवन था, जो सत्याग्रह को दबाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार था। उसने सारे प्रमुख नेताओं को जेल में बंद कर दिया था। उसका जवाब देने के लिए कुछ करना ज़रूरी था और संती व सुनीति यही करने वाली थीं।

🇮🇳● 14 दिसंबर, 1931 को सुबह 10 बजे ज़िला मैजिस्ट्रेट के बंगले के बाहर एक गाड़ी आकर रुकी। दो किशोरियाँ उसमें से हँसते हुए उतरीं। दोनों ने शायद ठंड से बचने के लिए रेशमी कपड़े को साड़ी के ऊपर से ओढ़ रखा था। उनके गलियारे तक पहुँचने के पहले ही गाड़ीवाला पूरी रफ्तार से वहाँ से निकल गया।

🇮🇳● उन लड़कियों ने अंदर एक इंटरव्यू स्लिप भेजा, जिसके बाद एसडीओ नेपाल सेन के साथ मैजिस्ट्रेट बाहर निकले। अपने पास आए स्लिप पर स्टीवन ने एक नज़र डाली। #इला_सेन और #मीरा_देवी नाम की इन लड़कियों (जैसा कि उस पत्र पर हस्ताक्षर में लिखा था) ने मैजिस्ट्रेट को स्विमिंग क्लब में आमंत्रित किया था। ‘योर मैजेस्टी’ जैसे चापलूसी से भरे शब्दों का ज़्यादा उपयोग और कुछ गलत अंग्रेजी के इस्तेमाल ने उनकी ईमानदारी पर कोई संदेह नहीं होने दिया। इला ने अपनी पहचान एक पुलिस अफसर की बेटी के रूप में कराई, ताकि ‘मैजेस्टी’ की सहानुभूति उसे मिल जाए।

लड़कियाँ स्वीकृति के लिए अधीर हो रही थीं। इसके लिए उन्होंने स्टीवन से उस पत्र पर हस्ताक्षर करने का अनुरोध किया। वह अपने चेंबर में गया और जल्दी ही हस्ताक्षर किए कागज़ ले कर लौट आया।

🇮🇳● इसके बाद उसका घर गोलियों की आवाज़ से गूँज उठा। इस क्रूर मैजिस्ट्रेट ने अपनी आँखें बंद होने के पहले देखा कि ये वही दो लड़कियाँ थीं, जिन्होंने अब रेशमी कपड़ा उतार दिया था और उसके सीने पर पिस्तौल ताने खड़ी थीं।

🇮🇳● एसडीओ के आते-आते बहुत देर हो चुकी थी। जब लोग इन लड़कियों को पकड़ने जमा हुए, तब शांति और सुनीति ने किसी भी तरह का विरोध नहीं किया और भीड़ की मार को सहती चली गईं।

🇮🇳● ये हर तरह की यातना सहने के लिए खुद को तैयार कर के आई थीं। उनके दर्द सहने की क्षमता को परखने के लिए उनकी उंगलियों में पिन चुभोए गए, पर ये टूटी नहीं और न ही इन्होंने अपने गुप्त संगठन के बारे में एक शब्द बोला। उनके चेहरे पर उस समय भी शिकन तक नहीं उभरी, जब हथियारों की खोज के बहाने उनसे शारीरिक छेड़छाड़ की गई।

🇮🇳● यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। क्रांतिकारियों ने इन बहादुर लड़कियों के बारे में पर्चे बांटे। मेजर के यूनिफ़ॉर्म में सुनीति की फोटो और उसके नीचे लिखी गई पंक्ति लोगों के दिलों मे बस गई। यह पंक्ति थी – रोकते अमार लेगेछे आज सोर्बोनाशेर नेशा – तबाही की ज्वलंत इच्छा आज मेरे लहू में दौड़ रही है।

🇮🇳● यह मिशन तो सफल रहा, पर इन लड़कियों को अभी लंबी लड़ाई लड़नी थी।

🇮🇳● जब अदालत में मुकदमा शुरू हुआ तो उन्हें देख कर सब हतप्रभ रह गए। वे मुस्कुरा रही थीं। जब उन्हें बैठने के लिए कुर्सी देने से इनकार किया गया तो वे जज और कोर्ट के अन्य सदस्यों की ओर पीठ करके खड़ी हो गईं। उन्होंने किसी भी ऐसे इंसान को सम्मान देने से मना कर दिया, जो शिष्टाचार के सामान्य नियमों का भी पालन नहीं कर सकता था।

🇮🇳● जब एसडीओ सेन गवाह के रूप में कोर्ट में आए और बनावटी कहानी गढ़ने लगे, तब इन्होंने इतनी ज़ोर से ‘बड़ा झूठा! बड़ा झूठा!’ बोलना शुरू कर दिया कि पूरे कोर्ट रूम में हलचल मच गई। उन्हें अपमानित कर कोई भी उनके आक्रोश से बच नहीं पाया। उनके मन में कोर्ट को लेकर कोई भय नहीं था।

 ये पुलिस वैन से कोर्ट रूम तक जाते समय और फिर वापसी में देशभक्ति की गीत गातीं और उन लोगों को देख कर मुस्कुराती रहीं, जो वहाँ इकट्ठे हुए थे और इन्हें दूर से ही आशीर्वाद दे रहे थे।

🇮🇳● इनकी यह मुस्कुराहट उस समय थम गई, जब कोर्ट का फैसला आया। तब भीड़ ने इनके व्यक्तित्व का अलग ही पहलू देखा – अत्यंत दुखी और निराश। इन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनायी गई थी, जिसका मतलब था कि इन्हें शहीद होने से रोक लिया गया था। रास्ते में इन्हें चिल्लाते सुना गया – “फांसी मिलनी चाहिए थी! फांसी इससे कई गुना बेहतर होती!” पत्रकार इन्हें देख कर अचंभित थे।

🇮🇳● अधिकारियों ने इन्हें तोड़ने की कोई कोशिश नहीं छोड़ी। प्रफुल्ल को मुख्य साजिशकर्ता के रूप में चिह्नित कर जेल में डाल दिया गया। बाद में उन्हें उनके ही घर में कड़ी निगरानी में रखा गया, जहाँ 5 साल बाद सही चिकित्सा नहीं मिलने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

🇮🇳● शांति को जेल में दूसरी श्रेणी के अन्य क्रांतिकारियों के साथ रखा गया, जबकि सुनीति को तीसरी श्रेणी में भेज दिया गया, जहाँ चोर और जेबकतरों को रखा जाता था।

यहाँ खराब खाना और गंदे कपड़े उन्हें मिलते थे। पर मानवाधिकारों का पूरी तरह हनन होने के बाद भी सुनीति स्थिर और शांत रहीं। वह पुलिस द्वारा अपने माता-पिता पर हो रहे अत्याचारों और अपने बड़े भाई की गिरफ्तारी की खबर को सुन कर भी रोज़मर्रा के काम में व्यस्त रहतीं। अपने छोटे भाई का कलकत्ता की गलियों में फेरीवाला बनने और अंत में भूख और बीमारी के कारण मर जाने की खबर भी सुनीति को तोड़ नहीं पाई।

🇮🇳● छोटे अपराधी उनके नम्र स्वभाव के कारण उन्हें पसंद करते थे। #बीना_दास ने एक घटना के बारे में लिखा है कि कैसे रमजान में रोजे के बाद एक औरत ने सुनीति से अपना नमक-पानी का घोल पीने की ज़िद की, क्योंकि उन्हें लगता था कि यह नवयुवती इसकी अधिक हकदार है।

🇮🇳● यह यातना आखिरकार 6 दिसंबर,1939 को खत्म हुई। द्वितीय विश्व-युद्ध के पहले आम माफ़ी की वार्ता के बाद इन सभी को रिहा कर दिया गया था। तब तक सुनीति 22 वर्ष की हो चुकी थीं। क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त रहने के कारण उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं ली थी।

पर क्रांतिकारी कभी कुछ नया करने से पीछे नहीं हटते। अब इन्होंने पूरे ज़ोर-शोर से पढ़ाई शुरू कर दी और आशुतोष कॉलेज से प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स (आई. एससी) प्रथम श्रेणी से पास किया। साल 1944 में इन्होंने मेडिसिन एंड सर्जरी में डिग्री के लिए कैम्पबेल मेडिकल स्कूल में दाखिला लिया। एमबी (आधुनिक एमबीबीएस) करने के बाद इन्होंने आंदोलन के एक सक्रिय कार्यकर्ता और भूतपूर्व राजनैतिक कैदी #प्रद्योत_कुमार_घोष से शादी कर ली।

🇮🇳● सुनीति का दयालु और समर्पण भरा स्वभाव उनके डॉक्टरी के पेशे से मेल खाता था। जल्द ही वे चंदननगर की एक प्रतिष्ठित डॉक्टर बन गईं। लोग उन्हे प्यार से ‘लेडी माँ’ बुलाने लगे।

🇮🇳● 1951-52 के आम चुनावों में डॉ. सुनीति घोष को कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ने की पेशकश की गई। राजनीति में दिलचस्पी नहीं होने के कारण इन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

🇮🇳● सुनीति ने अपने भाइयों की भी उनके व्यवसाय में मदद की और लकवा से पीड़ित अपने माता-पिता का सहारा भी बनीं। इन्हें बच्चों और प्रकृति से प्रेम था। इन्होंने अपने बच्चों को बागवानी, तैराकी और प्रकृति विज्ञान की शिक्षा दी। 12 जनवरी, 1988 को इस क्रांतिकारी महिला ने दुनिया को अलविदा कहा। इनके देशप्रेम, बहादुरी और दयालुता के किस्से आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।

~ निधि निहार दत्ता 

संपादन – मनोज झा 

साभार: thebetterindia.com

अमर क्रांतिकारी वीरांगना को शत् शत् नमन !

🇮🇳💐🙏

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

 साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 

11 मार्च 2024

Why .....China is a developing country, not a developed country. | क्यों...चीन एक विकासशील देश है, विकसित देश नहीं। लेखक : सुभाष चन्द्र





ये कैसा गड़बड़झाला है - विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति “चीन” विकासशील देश है विकसित देश नहीं - फरवरी, 2024 में विश्व की पहली आर्थिक महाशक्ति IMF के अनुसार 27,974 बिलियन डॉलर की GDP के साथ अमेरिका है और 2nd largest आर्थिक महाशक्ति 18566 बिलियन डॉलर की #GDP के साथ चीन है जबकि जर्मनी, जापान और भारत की GDP क्रमशः 4730, 4291 और 4112 बिलियन डॉलर है - ब्रिटेन 6th, फ्रांस 7th और कनाडा 10th नंबर पर हैं - परंतु अमेरिका, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस और कनाडा को विकसित देशों की श्रेणी में रखा गया लेकिन 2nd #largest_economy होने के बावजूद चीन को विकासशील देशों (#Developing_Nation) की श्रेणी में रखा गया है जिसका कोई औचित्य समझ नहीं आता World Bank के अनुसार चीन के 85 करोड़ लोग (850 million) #Extreme_Poverty से बाहर लाए जा चुके है - चीन का #Poverty_Rate 1981 के 88% से गिर कर 2015 में मात्र 0.7 % रह गया था - चीन को विकासशील देश कहने का कोई कारण समझ नहीं आता - जो देश 18 राष्ट्रों को वर्षों से किसी न किसी तरह के सीमा विवाद में उलझा कर रख सकता है; जो अनेक देशों को कर्ज के मकड़जाल में फंसा कर blackmail कर सकता है; जो देश #Veto_Power से #UN #Security #council में हर विषय में रोड़े अटका सकता है; जो देश हर लोकतांत्रिक देश में पैसे के दम पर अस्थिरता पैदा कर सकता है; जो देश विश्व के किसी देश में एटोमिक ताकत के बल पर अशांति पैदा कर सकता और पाकिस्तान एवं उत्तरी कोरिया को विश्व के लिए खतरा बना सकता है; जो अमेरिका जैसे शक्तिशाली मुल्क को हर समय युद्ध के लिए ललकार सकता है और जो भारत की हजारों एकड़ भूमि पर कब्ज़ा किये बैठा है, वह देश किस मायने से Developing Nation कहलाया जा सकता है - यह विकासशील देश चीन, पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को कोरोना देकर चौपट करने की ताकत रखता है और अपनी capital market से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को अस्थिर कर सकता है, वह किसी तरह से भी विकासशील देश नहीं हो सकता बल्कि वह तो सम्पूर्ण रूप से विकसित राष्ट्र है- चीन के पास अमेरिका के 5244 और रूस के 5889 Nuclear Warheads के बाद सबसे अधिक 500 Nuclear Weapons हैं और आज यह देश नेहरू से वरदान में मिली Veto Power के बल पर भारत के Veto Power के अधिकार को रोके बैठा है - कोई ऐसा वैश्विक संगठन नहीं है जिसमे चीन अपनी दादागिरी न दिखाता हो - चीन ने 2016 में 48 सदस्यों के Nuclear Supplier Group में प्रवेश को रोक दिया था और भारत के इस प्रवेश को रोकने वाला NSG में वह अकेला देश था - #WTO ने विकसित और विकासशील देशों की कोई परिभाषा तय नहीं की है लेकिन जो भी विकासशील देश माने जाते हैं उन्हें WTO में कुछ सुविधाएं मिलती है - लिहाजा चीन हर तरफ से मौज में रहना चाहता है, एक विकसित देश की तरह दुनिया पर रौब भी दिखाना चाहता है और विकासशील देश की तरह सुविधाएं भी लेना चाहता है - #IMF और #World_Bank को इस पर पुनर्विचार जरूर करना चाहिए -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 11/03/2024 

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सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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