08 मार्च 2024

Hindustan Urvarak & Rasayan Ltd (HURL) Sindri Fertiliser Plant | राष्ट्र को समर्पित | लेखक : सुभाष चन्द्र


 

देश की बदहाली का दाग नेहरू को लगाए जयराम रमेश,.... मोदी को नहीं 

Hindustan Urvarak & Rasayan Ltd (HURL) Sindri Fertiliser Plant |  राष्ट्र को समर्पित |

जितना नेहरू का गुणगान करोगे, उतने नेहरू “बेपर्दा” होते जाएंगे -

पिछले 10 वर्ष में जो भी कुछ काम हुआ उसके लिए कांग्रेस के नेता घुमा फिरा कर नेहरू को श्रेय दे देते हैं और साबित करते हैं कि इसमें मोदी की उपलब्धि नहीं है - यहां तक चंद्रयान - 3 की सफलता के लिए भी नेहरू को हार पहना दिया और कह दिया मोदी का कोई योगदान नहीं है लेकिन कांग्रेस फिर देश की बदहाली के लिए नेहरू को जिम्मेदार क्यों नहीं मानती - एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान को देना और हज़ारों एकड़ भूमि पर चीन के कब्जे के लिए नेहरू को तमगा क्यों नहीं पहनाते  

अभी एक हफ्ते पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 plants को पुनर्जीवित करके झारखंड का Hindustan Urvarak & Rasayan Ltd (HURL) Sindri Fertiliser Plant राष्ट्र को समर्पित किया - इस पर कांग्रेस ने बड़बोले नेता जयराम रमेश ने 2 फोटो शेयर करते हुए बताया कि सिंदरी प्लांट तो 1952 में नेहरू जी शुरू किया था और मोदी पर तंज कसते हुए कहा - 

"Today of course, the Prime Minister is in Sindri claiming credit -Prime Minister Narendra Modi on Friday dedicated to the nation ₹8,900-crore fertiliser plan in Sindri and said it was 'Modi ki guarantee' which he fulfilled in six years.

सिंदरी कारखाने में आमोनियम नाइट्रेट का प्रोडक्शन सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर 1951 को शुरू हो चुका था लेकिन इसका उद्घाटन 1952 में नेहरू के हाथों कराया गया था -

प्रधानमंत्री मोदी के हर काम से जलने वाले कांग्रेसी नेहरू को रोते फिरते हैं और किसी भी हद तक झूठ बोलते हैं - सिंदरी कारखाना 1991 में घाटे की वजह से BIFR (Board of Industrial and Financial Reconstruction) में चला गया था -

गोरखपुर, रामगुंडम, तलचर और कोरबा समेत सिंदरी कारखाना BIFR को रेफर हो गए थे और उन्हें 1992 में Sick घोषित कर दिया गया था -

यदि आज सिंदरी कारखाना मोदी द्वारा फिर से शुरू करने पर भी नेहरू को श्रेय देना चाहते हो तो 1991 - 1992 उसके Sick होने के लिए भी नेहरू को जिम्मेदार कहने की हिम्मत करो 

5 सितंबर, 2002 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने सिंदरी समेत गोरखपुर, तालचर और रामागुंडम के खाद कारखाने को बंद करने का निर्णय लिया और 31 दिसंबर, 2002 को ये सभी प्लांट बंद हो गए -

मोदी सरकार ने 21 मई 2015 को बंद पड़े सिंदरी खाद कारखाने को पुनर्जिवित करने के लिए 10,500 करोड़ रुपए की कैबिनेट से मंजूरी ली थी। जिसका शिलान्यास 25 मई 2018 को किया गया और अब 6 साल से भी कम समय में काम पूरा होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इसका उद्घाटन किया तो नेहरू जी याद आ गए जयराम रमेश को - 

मोदी द्वारा उद्घाटन किए गए हिंदुस्तान उर्वरक & रसायन लिमिटेड (HURL) Sindri Fertiliser Plant को पुनर्जीवित करने में 8939.25 crores रुपए से ज्यादा खर्च आया है - यानी नेहरू के पैदा किए गए मृत कारखाने में जान डालने में जनता का करीब 9 हजार करोड़ रुपया लग गया मगर  कारखाना फिर से शुरू करने का श्रेय नेहरू को देंगे बेशर्म कांग्रेसी -

इतना खर्च करने के बाद कर्मचारियों को एक और सुविधा दी जाएगी - वर्ष 2002 के 31 दिसंबर को फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की सिंदरी यूनिट, गोरखपुर, रामागुंडम, तलचर यूनिट को बंद कर लगभग सभी कर्मचारियों को वीआरएस के तहत सेवानिवृत्त कर दिया गया था। उस वक्त कर्मचारियों का 1992,1997 एवं 2002 का वेतन पुनरीक्षण बाकी था - उन VRS ले चुके कर्मचारियों को सभी Pay Revision के arrear भी दिए जाएंगे जो कभी कांग्रेस सरकार में उम्मीद नहीं की जा सकती -

कांग्रेस के लोग बेहतर है मोदी के प्रति ईर्ष्या की वजह से हुई नेत्रहीनता को त्याग दें तो अच्छा है - लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष होना चाहिए मगर जो विपक्ष कांग्रेस देना चाहती है वह किसी काम का नहीं है क्योंकि अब कांग्रेस मोदी का विरोध करते करते देश विरोध पर आ गई है -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 08/03/2024 

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सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,


Kashmir is Changing and Developing | कश्मीर बदल रहा है और विकसित हो रहा है। लेखक : नलीन चंद्र


 


कई कवियों ने सर्वश्रेष्ठ वर्णमालाओं के साथ कश्मीर की सुंदरता का वर्णन किया है। लेकिन यहां कुछ साल पहले तक खून बह रहा था। अब समय के साथ यह बदल गया है। 

कश्मीर बदल रहा है और विकसित हो रहा है। 


आज जो तस्वीरें देखने को मिल रही हैं, वे खास हैं। हम सभी उस दिन के भी गवाह हैं जब प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कश्मीर की एक अलग तस्वीर देखी गई थी। देश का सबसे खूबसूरत हिस्सा अलगाववाद की आग में जल रहा था। मुठभेड़ों, बम विस्फोटों, पथराव, नारों की बौछार और कर्फ्यू की खबरें सुर्खियों में रहती थीं, लेकिन आज की तस्वीरें अलग हैं। 


2019 के बाद से, कश्मीर के इर्द-गिर्द की कहानी, विशेष रूप से पश्चिमी प्रेस में, कश्मीर की सुरक्षा और सैनिकों की तैनाती के साथ-साथ संचार में व्यवधान के इर्द-गिर्द रही है। 

लेकिन कश्मीर आगे बढ़ गया है, और प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा पिछले पांच वर्षों में कश्मीर की प्रगति को उजागर करने के लिए बातचीत को बदलने का एक प्रयास है। 


भारतीय प्रधानमंत्री ने 2019 के बाद घाटी की अपनी पहली यात्रा पर कश्मीर का दौरा किया, जब अनुच्छेद 370, जम्मू और कश्मीर को इसका विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को निरस्त कर दिया गया था। प्रधानमंत्री जम्मू की यात्रा कर रहे हैं। वास्तव में, वह पिछले सप्ताह वहां थे, लेकिन हाल ही में उनकी श्रीनगर की यात्रा पांच वर्षों में पहली है। इस यात्रा ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है क्योंकि यह इरादे का एक बयान है।


अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीरी निवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से विकास परियोजनाओं और पहलों पर चर्चा करने के लिए स्थानीय नेताओं और समुदाय के सदस्यों से मुलाकात की। उन्होंने 


इस क्षेत्र में कई नई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और निवेशों की भी घोषणा की, जो आर्थिक विकास और समृद्धि पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने का संकेत है। इस यात्रा को संबंधों को सामान्य बनाने और लंबे समय से राजनीतिक अशांति और संघर्ष से त्रस्त क्षेत्र में एकता और प्रगति की भावना को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा गया। कश्मीर की अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हजरतबल तीर्थ परियोजना और सोनमर्ग स्की ड्रैग लिफ्ट के एकीकृत विकास का उद्घाटन करेंगे।


इस वर्तमान शासन के दौरान, कश्मीर ने विद्युतीकृत रेलवे लाइनों का आगमन देखा है, जिसकी पिछली सरकारों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कार्यान्वयन ने कश्मीर के लोगों के लिए आशा और आशावाद की भावना लाई है, जो लंबे समय से अविकसित और बुनियादी सुविधाओं की कमी से पीड़ित हैं। विद्युतीकृत रेलवे लाइनों ने न केवल क्षेत्र के भीतर संपर्क में सुधार किया है, बल्कि व्यापार और पर्यटन के अवसर भी खोले हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है। 


विकास और प्रगति पर इस नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से कश्मीरी निवासियों में गर्व और लचीलापन की भावना पैदा हुई है, जो अब एक उज्जवल भविष्य की ओर देख रहे हैं। इसके अलावा, बाकी दुनिया हिमालय के दुर्गम इलाकों में रेलवे लाइन बनाने जैसी भारत की अद्भुत क्षमताओं से चकित है। सुरंगें और पुल न केवल इंजीनियरिंग के चमत्कार हैं, बल्कि विकास और समृद्धि के लिए सबसे दूरदराज के क्षेत्रों को भी जोड़ने की भारत की प्रतिबद्धता के प्रतीक हैं। कश्मीर में विद्युतीकृत रेलवे लाइन को ले जाने वाला चिनाब नदी पर बना पुल समुदायों को बदलने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने में बुनियादी ढांचे के विकास की शक्ति का प्रमाण है।


इन परियोजनाओं का उद्देश्य क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देना और बुनियादी ढांचे में सुधार करना है। प्रधानमंत्री की यात्रा कश्मीर के विकास और प्रगति के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का संकेत है। यह घाटी के लोगों के लिए एक आशाजनक संकेत है, जो लंबे समय से संघर्ष और अस्थिरता से पीड़ित हैं। ये परियोजनाएं न केवल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देंगी बल्कि कश्मीर की सुंदरता और क्षमता को बाकी दुनिया के सामने भी प्रदर्शित करेंगी। यह क्षेत्र धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से एक उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ रहा है और लोगों को आने वाले वर्षों में शांति और समृद्धि की उम्मीद है।


कश्मीर में बुनियादी ढांचा अब कितना अच्छा हो गया है, इसका अंदाजा पड़ोसी पीओके के निवासियों की प्रतिक्रिया से लगाया जा सकता है। वे सीमा के भारतीय हिस्से में, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे के मामले में जो प्रगति और विकास देख रहे हैं, उससे वे चकित हैं। रेलवे लाइन ने न केवल शेष भारत के साथ संपर्क में सुधार करने का वादा किया है, बल्कि व्यापार के लिए कश्मीर में किसानों और कारीगरों का मनोबल भी बढ़ाया है। इस क्षेत्र में पर्यटन पहले से ही बढ़ रहा है, अधिक आगंतुक आश्चर्यजनक दृश्यों और अनुभव को देखने के लिए आ रहे हैं।


इसके विपरीत, पीओके के लोगों के लिए चिनाब पुल जैसी संरचना को देखना, महसूस करना या अनुभव करना एक दूर का सपना है। भारतीय पक्ष की प्रगति की तुलना में पीओके में बुनियादी ढांचे और विकास की कमी स्पष्ट है। पीओके के लोग एक बेहतर नागरिक जीवन और कश्मीर में अपने समकक्षों की तरह एक सामान्य मानव जाति की तरह विकसित होने के अवसरों के लिए तरसते हैं। 


इस भावना ने भारत को युद्ध छेड़ने के बिना पीओके पर फिर से कब्जा करने की अनुमति दी है। सीमा के दोनों किनारों के बीच रहने की स्थिति में भारी अंतर ने पीओके में लोगों के बीच बदलाव और सुधार की इच्छा को बढ़ावा दिया है। बेहतर भविष्य और समान अवसरों की आशा एकीकरण के लिए एक प्रेरक शक्ति बन गई है और इसने पीओके में लोगों के बीच बदलाव और प्रगति की इच्छा को बढ़ावा दिया है।  


चिनाब नदी पर बना पुल भारतीय शक्ति, प्रौद्योगिकी और निश्चित रूप से धन में भारत की विशेषज्ञता के प्रतीक के रूप में खड़ा है। 


पीओके के लोगों ने एक ऐसे भविष्य की कल्पना करना शुरू कर दिया है जहां वे पीछे न रह जाएं, जहां उनकी सीमा पार अपने साथी नागरिकों के समान अवसरों और संसाधनों तक पहुंच हो। 


प्रधानमंत्री की यात्रा को कश्मीरी लोगों की जरूरतों और चिंताओं को दूर करने और क्षेत्र के लिए अधिक शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य की दिशा में काम करने की सरकार की प्रतिबद्धता के सकारात्मक संकेत के रूप में देखा गया।


प्रधानमंत्री ने इस अवसर का उपयोग घाटी में विकास परियोजनाओं पर बात करने के लिए किया। अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने 70 करोड़ डॉलर से अधिक की 53 अन्य परियोजनाओं की घोषणा की।


यह यात्रा भारत के आगामी आम चुनाव से पहले भी हो रही है।


इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था। भारत में आम चुनाव नजदीक हैं, तारीखों की घोषणा कुछ ही हफ्तों में की जा सकती थी, इसलिए प्रधानमंत्री की कश्मीर यात्रा इससे अधिक उपयुक्त समय पर नहीं हो सकती थी।


राजनीति से परे, पीएम मोदी की यात्रा का गहरा महत्व था। इससे पहले, जम्मू और कश्मीर एक पुनर्गठन अधिनियम के माध्यम से एक राज्य था। इसे एक केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया था, और परिवर्तनों पर भारतीय संसद की मंजूरी की मुहर लगी थी। इसने दिसंबर में कानूनी परीक्षा भी पास की।


पिछले साल, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्तीकरण को बरकरार रखा।


भारतीय प्रधान मंत्री की यात्रा उस आदेश के दो महीने बाद आती है, और वह यहां एक विशेष मिशन पर थे-दिल जीतने के लिए।


उनके संबोधन से पहले पहुंच दिखाई दे रही थी; प्रधानमंत्री ने स्थानीय लोगों से मुलाकात की, जिनमें से कई घाटी की अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए बनाई गई सरकारी योजनाओं के लाभार्थी थे। 


यह प्रधानमंत्री की मुख्य बात थी। 


2019 से प्रधानमंत्री के लिए कश्मीर का विकास एक प्रमुख फोकस क्षेत्र रहा है। उनकी सरकार ने सैकड़ों विकास परियोजनाओं पर जोर दिया है।


इस यात्रा के साथ प्रधानमंत्री ने इस एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। उन्होंने लाखों डॉलर की 53 और परियोजनाओं की घोषणा की। इन सभी पहलों में से एक सबसे अलग हैः प्रसिद्ध डल झील के पास हजरतबल तीर्थ में एकीकृत विकास परियोजना। हाल ही में पीएम मोदी ने इसका उद्घाटन किया था। यह परियोजना स्थानीय समुदाय तक एक बड़ी पहुंच का हिस्सा है।


मुसलमानों के लिए इसका गहरा महत्व है। वर्षों से, इस मंदिर ने पैगंबर मुहम्मद की दाढ़ी के पवित्र बालों को संरक्षित किया है।


शुक्रवार को रमजान जैसे विशेष अवसरों पर सामूहिक प्रार्थना के लिए स्थानीय लोग अक्सर यहां आते हैं। मंदिर में बड़ी संख्या में आगंतुक आते हैं; पूरे स्थल को बदल दिया गया है। नए और आधुनिक सुविधाओं को जोड़ने के साथ प्रवेश प्रांगण में सुधार किया गया है।


प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि श्रीनगर अब भारत के पर्यटन उद्योग का केंद्र बन गया है और ये परियोजनाएं अब घाटी के पुनर्विकास में योगदान दे रही हैं।

"लेखक के निजी विचार हैं "

 







लेखक : नलीन चंद्र  (Naleen Chandra)  08/03/2024 

#Government_of_India, #revoked, #special_status, #autonomy, #Article_370, #Indian_Constitution, #Jammu_Kashmir,#Kashmir, #dispute, #India, #Pakistan, #China, #370

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Maha Shivaratri | महाशिवरात्रि



महाशिवरात्रि भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह #भगवान #शिव का प्रमुख पर्व है। #माघ फागुन फाल्गुन #कृष्ण पक्ष #चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ था। #पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग के उदय से हुआ।

Maha Shivaratri is a #Hindu #festival #celebrated annually in honour of the deity #Shiva, between February and March. According to the #Hindu_calendar, the festival is observed on the fourteenth day of the dark half of the #lunar month of Phalguna or #Magha.

मान्यता है कि महाशिवरात्रि  के दिन भगवान शिव का मां पार्वती से विवाह संपन्न हुआ था।

It is believed that on the day of Mahashivratri, Lord Shiva's marriage with Mother Parvati took place.

#महाशिवरात्रि_मंत्र  | #Mahashivratri_Mantra 

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

ॐ नमः शिवाय

ॐ हौं जूं स:

चंद्र बीज मंत्र- 'ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:'

चंद्र मूल मंत्र- 'ॐ चं चंद्रमसे नम:'

महामृत्युंजय मंत्र को #भगवान #शिव को प्रसन्न करने वाला #मंत्र माना जाता है. #महाशिवरात्रि के दिन इस मंत्र के जाप से रोग और #अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है.  इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को लंबी आयु प्राप्त होती है. यह मंत्र #मांगलिक_दोष, #नाड़ी_दोष, #कालसर्प_दोष और #भूत_प्रेत_दोष से भी छुटकारा दिलाता है.

महामृत्युंजय मंत्र- 'ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||' 

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं | Happy Maha Shivratri

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07 मार्च 2024

Veer Shiromani Amar Shaheed Thakur Dariyav Singh | वीर शिरोमणि अमर शहीद ठाकुर दरियाव सिंह

 



🇮🇳 #Veer #Shiromani #Amar #Shaheed #Thakur_Dariyav_Singh #वीर_शिरोमणि_अमर_शहीद_ठाकुर_दरियाव_सिंह  का जन्म सन 1795 ई० में गंगा यमुना पवित्र नदी के मध्य भूभाग में बसे खागा नगर में तालुकेदार #ठाकुर_मर्दन_सिंह के पुत्र रत्न के रूप में हुआ| आदिकाल में इनके वंशज महापराक्रमी सूर्यवंश के वत्स गोत्रीय क्षत्रिय खड्ग सिंह चौहान ने इस भूभाग के राजा को परास्त करके उनके राज्य को अपने अधिकार में लेकर एक नये नगर का निर्माण कराया था, जो बाद में उन्ही के नाम पर #खागा नाम से प्रसिद्ध हुई, वर्तमान में यह उत्तरप्रदेश के #फतेहपुर जनपद की एक तहसील है|

🇮🇳 इनके वंशज राजस्थान से आये रोर समूह के क्षत्रियो में चौहान क्षत्रिय थे और इनके समाज में रीति रिवाज एवम संस्कारों के कठोर नियमों का पालन अनिवार्य था | 18वीं शताब्दी के मध्य तक सती प्रथा लागू थी | ग्राम #सरसई में सती माता का मन्दिर आज भी विद्यमान है | इनके समाज के लोग रक्त की शुद्धता बनाये रखने के लिये राजस्थान से आये रोर समूह के क्षत्रियों में ही वैवाहिक सम्बन्ध करते थे | 18वीं शताब्दी के अंत तक इनके परिवार में कन्या का विवाह रोर समूह के सिर्फ रावत, रावल, परमार, सेंगर  क्षत्रियों में ही होता था और बधू सिर्फ रोर समूह के गौतम, परिहार, चंदेल और बिसेन क्षत्रियों के यहाँ से ही लाते थे | महारथी ठाकुर दरियाव सिंह का ननिहाल ग्राम #बुदवन, खागा,जनपद फतेहपुर में गौतम क्षत्रिय #ठाकुर_श्रीपाल_सिंह के यहाँ था और इनकी ससुराल ग्राम #सिमरी, जनपद #रायबरेली में गौतम क्षत्रिय के यहाँ थी | इनकी पत्नी का नाम #सुगंधा था | इनके दो परम वीर पुत्र और दो कन्याएं थी | जिनमें ज्येष्ठ पुत्र का नाम #ठाकुर_सुजान_सिंह और छोटे पुत्र का नाम #ठाकुर_देवी_सिंह था | इनकी बड़ी कन्या का विवाह ग्राम #किशनपुर जनपद फतेहपुर में रावत (गोत्र भरद्वाज) क्षत्रियों के यहाँ हुई थी | छोटी कन्या का विवाह ग्राम किशनपुर में ही रावल (गोत्र काश्यप) क्षत्रियों के यहाँ हुई थी जो कि ग्राम #इकडला के निवासी थे | इतिहास जानने के बाद ऐसा ज्ञात होता है कि शायद ठाकुर सुजान सिंह और ठाकुर देवी सिंह की ससुराल जनपद रायबरेली में परिहार क्षत्रियों के यहाँ हुई थी | 6 मार्च  को ठाकुर देवी सिंह को छोडकर परिवार के सभी सदस्य फाँसी द्वारा मृत्यु दण्ड पाकर वीरगति को प्राप्त होने के उपरांत उन कठिन समय में ठाकुर देवी सिंह अज्ञातवास को चले गये थे और ठाकुर सुजान सिंह, ठाकुर देवी सिंह की पत्नियों को अपने अपने पिता के यहाँ शरण लेनी पड़ी थी |

🇮🇳 सन 1808 ई० तक इस भूभाग पर इनका अपना स्वतन्त्र राज्य था, इसके बाद में यह भूभाग अंग्रेजों के आधीन हुआ | ठाकुर दरियांव सिंह धर्म परायण साहसी स्वाभिमानी रणविद्या में निपुण एवं कुशल संगठन कौशल के महारथी थे | सन 1857 ई० में इस पराक्रमी वीर के नेतृत्व में यहाँ की जनता ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर 8 जून सन 1857 को अंग्रेजों को परास्त कर जनपद के इस भूभाग को अपने अधिकार में लेकर स्वतंत्रता का परचम लहराया था | इसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 8 जून को यहाँ की जनता बड़े धूम धाम से इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाती है | परन्तु कुछ ही मास बाद यह भूभाग पुन: अंग्रेजों के आधीन हुआ और चंद विश्वासघातियों के कारण यह वीर अपने परिवार एवं मित्रों सहित बंदी बनाये गए और 6 मार्च 1858 को फाँसी द्वारा मृत्यु दण्ड पाकर यह वीर मातृभूमि स्वाधीनता हेतु अपने परिवार सहित शहीद होकर वीरगति को प्राप्त हुए और इनकी सम्पति को अंग्रेजों द्वारा गद्दारों को पुरस्कार स्वरुप दे दी गयी थी | आज भी इनके भब्य गढ़ी के ध्वंसा अवशेष इनके त्याग, पराक्रम, वीरता, संघर्ष और बलिदान का इतिहास संजोये हुए हैं| 

🇮🇳 1857 की विद्रोह की चिंगारी ने जिले की अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया। #बिठूर के #नाना_साहब के निर्देशन पर क्रांतिकारियों ने पहले खागा राजकोष पर अधिकार कर अंग्रेजों से सत्ता छीनी, फिर फतेहपुर में दबाव बनाया तो कलक्टर मि. टक्कर ने आत्महत्या कर ली। सरकारी बंगले को फूँकने के बाद क्रांतिकारियों ने जेल से कैदियों को मुक्त कराया और 9 जून को समूचे जनपद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। नाना जी की सलाह पर डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला को यहाँ का चकलेदार (प्रशासक) बनाया गया।

🇮🇳 खागा के ठाकुर दरियाव सिंह, बिठूर के नाना साहब, अवध के केशरी #राणा_बेनीमाधव_सिंह ने गुप्त बैठकें कर जनपदों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। 4 जून को #कानपुर और 7 जून को #इलाहाबाद स्वतंत्र घोषित हो गए। इसके बाद 200 विद्रोहियों ने फतेहपुर में डेरा डाल दिया। 8 जून को ठाकुर दरियाव सिंह के सेनानायक व उनके पुत्र सुजान सिंह ने खागा के राजकोष में कब्जा कर लिया और स्वतंत्रता का ध्वज लहरा दिया। 9 जून को फतेहपुर कचहरी और राजकोष में कब्जा जमाने के लिए सारे सैनिकों ने धावा बोला, जिसमें रसूलपुर के जोधा सिंह अटैया, जमरावा के ठाकुर शिवदयाल सिंह कोराई के बाबा गयादीन दुबे भी फौज फाटे के साथ शामिल हुए। क्रांतिकारियों का दबाव बढ़ा तो अंग्रेज कलक्टर मि. टक्कर ने बंगले में ही आत्महत्या कर ली और दीवार में लिख दिया कि कोराई के गयादीन दुबे की वादा खिलाफी पर जान दी है। 10 जून को विद्रोही जेल पहुँचे और बंदियों को मुक्त कराया।

🇮🇳 बिठूर में नाना साहब को फतेहपुर के स्वतंत्र होने की जैसे ही खबर लगी, उन्होंने स्वतंत्र सरकार के चकलेदार (प्रशासक)के रूप में डिप्टी कलक्टर हिकमत उल्ला खां को नियुक्त कर दिया। फतेहपुर व कानपुर में पूर्ण अधिकार मिलने की खुशी में बिठूर में तोपें दागी गई और क्रांतिकारियों ने सभी जिले के कोतवालों को यह हुक्म दिया कि नगर व गाँवों में डुग्गी पिटवाकर यह बता दिया जाए कि अब अपनी सरकार है।




🇮🇳 एक माह तक जिले में स्वतंत्र सरकार चली। उधर अंग्रेजी हुकूमत विद्रोहियों को कुचलने की पूरी रणनीति तैयार कर रही थी। 11 जून को मेजर रिनार्ड को फतेहपुर में अधिकार जमाने के लिए इलाहाबाद से रवाना किया गया। सेना की एक टुकड़ी के साथ उसने जीटी रोड के #कटोघन गॉंव में पड़ाव डाल दिया। इसकी सूचना जैसे ही ठाकुर दरियाव सिंह को मिली, नाना साहब को जानकारी दी फिर दोनों तरफ से मोर्चेबंदी शुरू हो गई। 11 जुलाई को मेजर रिनार्ड ने खागा में आक्रमण कर दिया। दरियाव सिंह के महल को तोपों से ध्वस्त कर दिया लेकिन कोई गिरफ्तार नहीं हो पाया। अंग्रेजी सेनाओं का दबाव बढ़ा तो जिले के क्रांतिकारियों ने यमुना पार कर #बांदा को सुरक्षित ठिकाना बना लिया।

साभार: thakurdsingh.com 

Jagran.com

🇮🇳 मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले, धर्म परायण साहसी, स्वाभिमानी, रणविद्या में निपुण एवं कुशल संगठन कौशल के महारथी अमर बलिदानी #ठाकुर_दरियाव_सिंह जी को उनकी पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Shri Shri Paramahansa Yogananda | श्री श्री परमहंस योगानन्द | 5 जनवरी 1893 - 7 मार्च 1952

 


🇮🇳🔶#अध्यात्म_और_योग #spirituality_and_yoga 🔶🇮🇳

🇮🇳🔶 श्री श्री परमहंस योगानन्द #Shri_Shri_Paramahansa_Yogananda  का जन्म, 5 जनवरी 1893 को, उत्तर प्रदेश के शहर #गोरखपुर में एक धर्म-परायण व समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम #मुकुन्द_लाल_घोष रखा। उनके सगे-संबंधियों को यह स्पष्ट दिखता था कि बचपन से ही उनकी चेतना की गहराई एवं आध्यात्म का अनुभव साधारण से कहीं अधिक था।

🇮🇳🔶 #योगानन्दजी के माता-पिता प्रसिद्ध गुरु, #लाहिड़ी_महाशय, के शिष्य थे जिन्होंने आधुनिक भारत में क्रियायोग के पुनरुत्थान में प्रमुख भूमिका निभायी थी। जब योगानन्दजी अपनी माँ की गोद में ही थे, तब लाहिड़ी महाशय ने उन्हें आशीर्वाद दिया था और भविष्यवाणी की थी, “छोटी माँ, तुम्हारा पुत्र एक योगी बनेगा। एक आध्यात्मिक इंजन की भाँति, वह कई आत्माओं को ईश्वर के साम्राज्य में ले जाएगा।”

🇮🇳🔶 अपनी युवावस्था में मुकुन्द ने एक ईश्वर-प्राप्त गुरु को पाने की आशा से, भारत के कई साधुओं और सन्तों से भेंट की। सन् 1910 में, सत्रह वर्ष की आयु में वे पूजनीय सन्त, श्री श्री #स्वामी_श्रीयुक्तेश्वर_गिरि के शिष्य बने। इस महान गुरु के आश्रम में उन्होंने अपने जीवन के अगले दस वर्ष बिताए, और उनसे कठोर परन्तु प्रेमपूर्ण आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की।

🇮🇳🔶 पहली भेंट पर ही, और उसके पश्चात कई बार, श्रीयुक्तेश्वरजी ने अपने युवा शिष्य को बताया कि उसे ही प्राचीन क्रियायोग के विज्ञान को अमेरिका तथा पूरे विश्व भर में प्रसार करने के लिए चुना गया था।

🇮🇳🔶 मुकुन्द द्वारा कोलकाता विश्वविद्यालय से सन् 1915 में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद, उनके गुरु ने उन्हें गरिमामय संन्यास परंपरा के अनुसार संन्यास की दीक्षा दी, और तब उन्हें #योगानन्द नाम दिया गया (जिसका अर्थ है दिव्य योग के द्वारा परमानन्द की प्राप्ति)। अपने जीवन को ईश्वर-प्रेम तथा सेवा के लिए समर्पित करने की उनकी इच्छा इस प्रकार पूर्ण हुई।

🇮🇳🔶 योगानन्दजी ने 1917 में, लड़कों के लिए एक “जीवन कैसे जियें” स्कूल की स्थापना के साथ अपना जीवन कार्य आरंभ किया। इस स्कूल में आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ योग एवं आध्यात्मिक आदर्शों में प्रशिक्षण भी दिया जाता था। कासिमबाज़ार के महाराजा ने स्कूल को चलाने के लिए रांची (जो कि कोलकाता से लगभग 250 मील दूर है) में स्थित अपना ग्रीष्मकालीन महल उपलब्ध कराया था। कुछ साल बाद स्कूल को देखने आए महात्मा गाँधी ने लिखा: “इस संस्था ने मेरे मन को गहराई से प्रभावित किया है।”

🇮🇳🔶 सन् 1920 में एक दिन, रांची स्कूल में ध्यान करते हुए, योगानन्दजी को एक दिव्य अनुभव हुआ जिस से उन्होंने समझा कि अब पश्चिम में उनका कार्य आरंभ करने का समय आ गया है। वे तुरंत कोलकाता के लिए रवाना हो गए, जहां अगले दिन उन्हें बोस्टन में उस साल आयोजित होने वाले धार्मिक नेताओं के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए निमन्त्रण मिल गया। श्री युक्तेश्वरजी ने योगानन्दजी के इस संकल्प की पुष्टि करते हुए कहा कि वह सही समय था, और आगे कहा: “सभी दरवाज़े तुम्हारे लिए खुले हैं। अभी नहीं तो कभी नहीं जा सकोगे।”

🇮🇳🔶 अमेरिका प्रस्थान करने से कुछ समय पहले, योगानन्दजी को #महावतार_बाबाजी के दर्शन प्राप्त हुए। महावतार बाबाजी क्रिया योग को इस युग में पुनःजीवित करने वाले मृत्युंजय परमगुरु हैं। बाबाजी ने योगानन्दजी से कहा, “तुम ही वह हो जिसे मैंने पाश्चात्य जगत में क्रिया योग का प्रसार करने के लिए चुना है। बहुत वर्ष पहले मैं तुम्हारे गुरु युक्तेश्वर से कुंभ मेले में मिला था और तभी मैंने उनसे कह दिया था कि मैं तुम्हें उनके पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजूंगा। ईश्वर-साक्षात्कार की वैज्ञानिक प्रणाली, क्रिया योग, का अंततः सभी देशों में प्रसार हो जायेगा और मनुष्य को अनंत परमपिता का व्यक्तिगत इन्द्रियातीत अनुभव कराने के द्वारा यह राष्ट्रों के बीच सौहार्द्र स्थापित करने में सहायक होगा।”

🇮🇳🔶 युवा स्वामी सितंबर 1920 में बोस्टन पहुँचे। उन्होंने अपना पहला व्याख्यान, धार्मिक उदारतावादियों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में “#धर्म-विज्ञान” पर दिया, जिसे उत्साहपूर्वक सुना गया। उसी वर्ष उन्होंने भारत के योग के प्राचीन विज्ञान और दर्शन एवं इसकी कालजयी ध्यान की परंपरा पर अपनी शिक्षाओं का प्रसार करने के लिए सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) की स्थापना की। पहला एसआरएफ़ ध्यान केंद्र बोस्टन में #डॉ_एम_डब्लयू_लुईस और #श्रीमती_एलिस_हैसी (जो परवर्ती काल में सिस्टर योगमाता बनी) की मदद से शुरू किया गया था, जो आगे चलकर योगानन्दजी के आजीवन शिष्य बने।

🇮🇳🔶 अगले कई वर्षों तक, वे अमेरिका के पूर्वतटीय क्षेत्रों में रहे जहाँ पर उन्होंने व्याख्यान दिये और योग सिखाया; सन 1924 में उन्होंने पूरे अमेरिका का दौरा किया और कई शहरों में योग पर व्याख्यान दिये । सन 1925 की शुरूआत में लॉस एंजेलिस पहुँचकर उन्होंने माउंट वाशिंगटन के ऊपर सेल्फ़-रियलाइजेशन फ़ेलोशिप के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना की, जो कि आगे चल कर उनके बढ़ते काम का आध्यात्मिक और प्रशासनिक केंद्र बन गया।

🇮🇳🔶 सन् 1924 से 1935 तक योगानन्दजी ने व्यापक रूप से भ्रमण किया और व्याख्यान दिए। इस दौरान उन्होंने अमेरिका के कई सबसे बड़े सभागारों – न्यूयॉर्क के कार्नेगी हॉल से लेकर लॉस एंजिलिस के फिल्हार्मोनिक सभागृह तक – में व्याख्यान दिये, जो श्रोताओं  की भीड़ से खचाखच भर जाते थे। लॉस एंजिलिस टाइम्स ने लिखाः “फिल्हार्मोनिक सभागृह में एक अद्भुत दृश्य देखने को मिला जब हज़ारों लोगों को व्याख्यान शुरू होने से एक घण्टा पहले वापिस जाने को बोल दिया गया क्योंकि 3000 सीट का वह हॉल पूरी तरह भर गया था।”

🇮🇳🔶 योगानन्दजी ने दुनिया के महान धर्मों की अंतर्निहित एकता पर ज़ोर दिया, और भगवान के प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभव को प्राप्त करने के लिए सार्वभौमिक रूप से उपयुक्त तरीकों को सिखाया। जो शिष्य साधना में गहरी रुचि दिखाते थे, उनहें वे आत्म-जागृति प्रदान करने वाली क्रियायोग की तकनीक सिखाते थे, और इस तरह पश्चिम में तीस वर्षों के दौरान उन्होंने 1,00,000 से भी अधिक पुरुषों और महिलाओं को क्रिया योग की दीक्षा दी।

🇮🇳🔶 जो उनके शिष्य बने, उनमें विज्ञान, व्यवसाय और कला के कई प्रमुख व्यक्ति थे, जैसे बागवानी विशेषज्ञ लूथर बरबैंक, ओपेरा गायिका अमेलिता गली कुर्चि, जॉर्ज ईस्टमैन (कोडक कैमरा के आविष्कारक), कवि एडविन मार्खम, और ऑर्केस्ट्रा निर्देशक लियोपोल्ड स्टोकोव्स्की। सन 1927 में अमेरिका के राष्ट्रपति केल्विन कूलिज ने उन्हें औपचारिक रूप से व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया।वे समाचार पत्रों में योगानन्दजी की गतिविधियों के बारे में पढ़कर, उनमें रुचि लेने लगे थे।

🇮🇳🔶 सन् 1929 में, मैक्सिको की दो महीने की यात्रा के दौरान, उन्होंने लैटिन अमेरिका में अपने कार्य के भविष्य के बीज बोए। मेक्सिको के राष्ट्रपति, डॉ एमिलियो पोरटेस गिल ने उनका स्वागत किया। वे योगानन्दजी की शिक्षाओं के आजीवन प्रशंसक बन गए।

🇮🇳🔶 1930 के दशक के मध्य तक, #परमहंसजी के वे आरंभिक शिष्य उनके संपर्क में आ चुके थे, जो आगे चलकर उन्हें सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप कार्य का विस्तार करने और उनके जीवनकाल समाप्त होने के बाद क्रिया योग मिशन को आगे बढ़ाने में मदद करने वाले थे। इन शिष्यों में वे दो भी शामिल थे, जिन्हें उन्होंने अपने आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के रूप में सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के अध्यक्ष के पद के लिए नियुक्त किया था: #राजर्षि_जनकानंद (जेम्स जे लिन), जो 1932 में कंसास शहर में गुरुजी से मिले; और #श्री_दया_माता, जिन्होंने एक वर्ष पूर्व साल्ट लेक सिटी में उनकी कक्षाओं में भाग लिया था।

🇮🇳🔶 अन्य शिष्य जिन्होंने 1920 और 1930 के दशकों के दौरान उनके व्याख्यान कार्यक्रमों में भाग लिया और एसआरएफ़ के कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए आगे आये, वे थे डॉ और श्रीमती एम डब्ल्यू लुईस, जिन्होंने 1920 में बोस्टन में उनसे मुलाकात की; ज्ञानमाता (सिएटल, 1924); तारा माता (सैन फ्रांसिस्को, 1924); दुर्गा माता (डेट्रॉइट, 1929); आनंद माता (साल्ट लेक सिटी, 1931); श्रद्धा माता (टैकोमा, 1933); और शैलसुता माता (सांता बारबरा, 1933)।

🇮🇳🔶 इस प्रकार, योगानन्दजी के शरीर छोड़ने के कई वर्षों बाद तक भी सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप को उन शिष्यों का निर्देशन प्राप्त होता रहा जिन्होंने परमहंस योगानन्दजी से व्यक्तिगत आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

🇮🇳🔶 उनके कार्य के शुरुआती वर्षों में योगानन्दजी के कुछ ही व्याख्यान और कक्षाएं अभिलेखित की गईं। लेकिन, 1931 में जब #श्री_दया_माता (जो बाद में उनके विश्वव्यापी संगठन की अध्यक्षा बनीं) उनके आश्रम में शामिल हुईं, उन्होंने योगानन्द जी के सैकड़ों व्याख्यानों, कक्षाओं और अनौपचारिक बातचीतों को ईमानदारी से अभिलेखित करने का पवित्र कार्य किया, ताकि उनके ज्ञान और प्रेरणा को उनकी मूल शक्ति और पवित्रता के साथ संरक्षित रखा जा सके और आने वाली पीढ़ियों के लिए सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप द्वारा प्रकाशित किया जा सके।

🇮🇳🔶 सन् 1935 में, योगानन्दजी अपने महान गुरु के अंतिम दर्शन के लिए भारत लौटे (बायें)। श्री युक्तेश्वर जी ने 9 मार्च, 1936 को अपना शरीर छोड़ा।) यूरोप, फिलिस्तीन और मिस्र के रास्ते जहाज़ और कार से यात्रा करते हुए, वे 1935 की गर्मियों में मुंबई पहुंचे।

🇮🇳🔶 अपनी जन्मभूमि के साल भर की यात्रा के दौरान योगानन्दजी ने भारत के अनेक शहरों में व्याख्यान दिये और क्रियायोग की दीक्षा दी। उन्हें कई महापुरुषों से मिलने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ, जैसे : महात्मा गाँधी, जिन्होंने क्रियायोग की दीक्षा लेने का अनुरोध किया; नोबेल पुरस्कार विजेता, भौतिक-शास्त्री सर #सी_वी_रमन; और भारत की कुछ सुविख्यात आध्यात्मिक विभूतियाँ, जैसे #रमण_महर्षि और #आनन्दमयी_माँ।

🇮🇳🔶 उसी वर्ष श्री युक्तेश्वर जी ने उन्हें भारत की सर्वोच्च आध्यात्मिक उपाधि, परमहंस से विभूषित किया। परमहंस का शाब्दिक अर्थ “सर्वोत्तम हंस” है। (हंस आध्यात्मिक प्रज्ञा का प्रतीक माना जाता है)। यह उपाधि उसे दी जाती है जो परमात्मा के साथ एकत्व की चरम अवस्था में स्थापित हो चुका है।

🇮🇳🔶 भारत में बिताए समय के दौरान, योगानन्दजी ने इस देश में उनके द्वारा स्थापित संस्था, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया, के लिए एक सुदृढ़ आर्थिक नींव बनाई। संस्था का कार्य क्षिणेश्वर में स्थित मुख्यालय और रांची में स्थित मूल आश्रम के द्वारा आज भी वृद्धि पर है, और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में इसके कई सारे स्कूल, आश्रम, और ध्यान केंद्र हैं, और कई सारे धर्मार्थ कार्य आयोजित किए जाते हैं।

🇮🇳🔶 सन् 1936 के अंतिम भाग में वे अमेरिका वापिस लौट गए, जहाँ वे जीवनपर्यंत रहे।

🇮🇳🔶 1930 के दशक में, परमहंस योगानंदजी ने देश भर में दिए जा रहे अपने सार्वजनिक व्याख्यानों को कम कर दिया ताकि वे अपना अधिकतर समय भावी पीढ़ियों तक अपना सन्देश पहुँचाने के लिए लेख लिखने में, और योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के आध्यात्मिक तथा लोकोपकारी कार्य की एक सुदृढ़ नींव रखने में बिता सकें।

🇮🇳🔶 जो व्यक्तिगत मार्गदर्शन और निर्देश उन्होंने अपनी कक्षाओं के छात्रों को दिया था, उसे उनके निर्देशन में योगदा सत्संग पाठमाला की एक व्यापक श्रृंखला में व्यवस्थित किया गया था।

🇮🇳🔶 जब वे भारत की यात्रा पर थे, उस दौरान उनके प्रिय शिष्य श्री श्री राजर्षि जनकानंद ने अपने गुरु के लिए कैलिफ़ोर्निया के एन्सिनीटस में प्रशांत महासागर के साथ सटा हुआ एक सुंदर आश्रम बनवाया था। यहाँ गुरुदेव ने अपनी आत्मकथा और अन्य लेखन पर काम करते हुए कई साल बिताए, और रिट्रीट कार्यक्रम शुरू किया जो आज भी जारी है।

🇮🇳🔶 उन्होंने कई सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप मंदिरों (एन्सिनीटस, हॉलीवुड और सैन डिएगो) की भी स्थापना की, जहाँ वे नियमित रूप से बहुविविध आध्यात्मिक विषयों पर एसआरएफ़ के श्रद्धालु सदस्यों और मित्रों के समूहों कों प्रवचन देते थे। बाद में इनमें से कई प्रवचन, जिन्हें श्री श्री दया माता ने स्टेनोग्राफी शैली में दर्ज किया था, योगानन्दजी के तीन खंडों में “संकलित प्रवचन एवं आलेख” के रूप में तथा योगदा सत्संग पत्रिका में वाइएसएस/एसआरएफ़ द्वारा प्रकाशित किये गए हैं।

🇮🇳🔶 योगानन्दजी की जीवन कथा, योगी कथामृत, 1946 में प्रकाशित हुई थी (और बाद के संस्करणों में उनके द्वारा इसका विस्तार किया गया था)। अपने प्रथम प्रकाशन के समय से, यह पुस्तक एक सदाबहार सर्वश्रेष्ठ पाठकगण की प्रिय बनकर, निरंतर प्रकाशन में रही है और इसका 50 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इसे व्यापक रूप से आधुनिक आध्यात्मिक गौरव ग्रन्थ माना जाता है।

🇮🇳🔶 1950 में, परमहंसजी ने लॉस एंजिल्स में अपने अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय में पहला सेल्फ़-रियलाइज़शन फ़ेलोशिप विश्व सम्मेलन आयोजित किया। यह एक सप्ताह का कार्यक्रम आज भी हर साल दुनिया भर से हज़ारों लोगों को आकर्षित करता है। उन्होंने उसी वर्ष पैसिफ़िक पैलिसैड्स, लॉस एंजिल्स में एसआरएफ़ लेक श्राइन आश्रम का लोकार्पण भी किया, जो एक झील के किनारे दस एकड़ के ध्यान के उद्यानों में बनाया गया एक सुंदर आश्रम है जहाँ #महात्मा_गाँधी की अस्थिओं का एक भाग भी संजो कर रखा गया है। आज एसआरएफ़ लेक श्राइन कैलिफ़ोर्निया के सबसे प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों में से एक बन गया है।

🇮🇳🔶 परमहंस योगानन्द जी के अंतिम वर्ष काफी हद तक एकांत में बिताए गए थे, क्योंकि उन्होंने अपने लेखन को पूरा करने के लिए गहनता से काम किया — जिसमें #भगवद्गीता तथा जीसस क्राइस्ट के चार गोस्पेल्स में दी गयी शिक्षाओं पर उनकी विस्तृत टीका शामिल हैं, और पहले के कार्यों जैसे कि Whispers from Eternity और योगदा सत्संग पाठमाला का पुनःअवलोकन। उन्होंने श्री श्री दया माता, #श्री_श्री_मृणालिनी_माता, और उनके कुछ अन्य घनिष्टतम शिष्यों को आध्यात्मिक और संगठनात्मक मार्गदर्शन प्रदान करने का काम भी किया, जो उनके चले जाने के बाद दुनिया भर में उनका काम करने में सक्षम होंगे ।

🇮🇳🔶 गुरूजी ने उनसे कहा:

“मेरा शरीर नहीं रहेगा, लेकिन मेरा काम चलता रहेगा। और मेरी आत्मा जीवित रहेगी। यहां तक कि मेरे यहाँ से चले जाने के बाद भी मैं आप सभी के साथ मिलकर भगवान के संदेश की सहायता से संसार के उद्धार के लिए काम करूंगा।

“जो लोग सेल्फ़-रियलाइजे़शन फे़लोशिप में वास्तव में आन्तरिक आध्यात्मिक सहायता हेतु आये हैं वह उसे प्राप्त करेंगे जो वो ईश्वर से चाहते हैं। चाहे वे मेरे शरीर में रहते हुए आयें, या बाद में, एस आर एफ् गुरुओं के माध्यम से भगवान की शक्ति उसी भांति उन भक्तों में प्रवाहित होगी, और उनके उद्धार का कारण बनेगी …. अमरगुरु बाबाजी ने सभी सच्चे एस आर एफ भक्तों की प्रगति की रक्षा और मार्गदर्शन करने का वचन दिया है। लाहिड़ी महाशय और श्रीयुक्तेश्वरजी, जिन्होंने अपने शरीरों को त्याग दिया है, और मैं स्वयं, अपना शरीर छोड़ने के बाद भी —सभी वाई एस एस-एस आर एफ के सच्चे सदस्यों की सदा रक्षा और निर्देशन करेंगे। “

🇮🇳🔶 7 मार्च, सन् 1952, को परमहंस जी ने महासमाधि में प्रवेश किया, एक ईश्वर प्राप्त गुरु का मृत्यु के समय शरीर से सचेतन प्रस्थान। उन्होंने लॉस एंजेलिस के बिल्टमोर होटल में संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत डॉ बिनय आर सेन के सम्मान में एक भोज में एक लघु भाषण देना समाप्त ही किया था।

🇮🇳🔶 उनके शरीर छोड़ने के समय एक असाधारण घटना हुई । फारेस्ट लॉन मेमोरियल-पार्क के निदेशक द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाणित पत्र के अनुसार : “उनकी मृत्यु के बीस दिन बाद भी उनके शरीर में किसी प्रकार की विक्रिया नहीं दिखाई पड़ी….शवागार के वृत्ति-इतिहास से हमें जहाँ तक विदित है, पार्थिव शरीर के ऐसे परिपूर्ण संरक्षण की अवस्था अद्वितीय है …. योगानन्दजी की देह निर्विकारता की अद्भुत अवस्था में थी। ”

🇮🇳🔶 वर्षों पूर्व, परमहंस योगानन्दजी के गुरु, स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी ने उन्हें दिव्य प्रेम के अवतार के रूप में संदर्भित किया था। बाद में, उनके शिष्य और पहले आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, राजर्षि जनकानंद ने उन्हें प्रेमावतार या “दिव्य प्रेम का अवतार” की उपाधि दी।

🇮🇳🔶 परमहंस योगानन्दजी की महासमाधि की पच्चीसवीं वर्षगाँठ के अवसर पर, मानवता के आध्यात्मिक उत्थान में उनके दूरगामी योगदान को भारत सरकार द्वारा औपचारिक मान्यता दी गई। उनके सम्मान में एक विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया गया था, साथ में एक श्रद्धांजलि जिसमें यह भी लिखा था:

🇮🇳🔶 “ईश्वर प्रेम तथा मानव-सेवा के आदर्श ने परमहंस योगानन्द के जीवन में सम्पूर्ण अभिव्यक्ति पाई….यद्यपि उनके जीवन का अधिकतर भाग भारत से बाहर व्यतीत हुआ, फिर भी उनका स्थान हमारे महान् सन्तों में है। उनका कार्य हर जगह परमात्मा प्राप्ति के मार्ग पर लोगों को आकर्षित करता हुआ, निरन्तर वृद्धि एवं अधिकाधिक दीप्तिमान हो रहा है।”

साभार: yssofindia.org

🇮🇳 विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत #परमहंस_योगानन्द जी के महासमाधि दिवस की वर्षगाँठ के अवसर पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


Pandit Govind Ballabh Pant | पंडित गोविंद बल्‍लभ पंत | 10 September 1887 – 7 March 1961 | उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री

 



🇮🇳#पंडित_गोविंद_बल्लभ_पंत (10 सितंबर 1887 - 7 मार्च 1961) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे।

🇮🇳#Pandit_Govind_Ballabh_Pant (10 September 1887 – 7 March 1961) was an Indian #freedom_fighter and the first Chief Minister of Uttar Pradesh.


🇮🇳#उत्तर प्रदेश के प्रथम #मुख्यमंत्री एवं #स्वतंत्रता_सेनानी थे। इनका मुख्यमंत्री कार्यकाल 15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1954 तक रहा। बाद में ये भारत के गृहमंत्री भी (1955 -1961) बने।


🇮🇳पं. गोविंद वल्लभ पंत जी का जन्म 10 सितंबर, 1887 को #उत्तराखंड राज्य के #अल्मोडा जिले के खूंटे (धामस) नामक गांव में पं. के घर हुआ था। इनकी माँ का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके दादा बद्री दत्त जोशी ने की। 


🇮🇳1905 में उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये।। रामसे कॉलेज से 10वीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद पंडित ने 12 साल की उम्र में बाल दत्त जोशी की बेटी गंगा से शादी कर ली थी। 


उन्होंने आगे की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की जो पंडित जवाहरलाल नेहरू, पं. जवाहरलाल नेहरू जैसी 'भारत की महान हस्तियों' का अद्भुत संगम था। मोतीलाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू, श्री सतीश चंद्र बनर्जी और सुंदर लाल!'


🇮🇳अध्ययन के साथ-साथ वे #कांग्रेस के #स्वयंसेवक का कार्य भी करते थे। 1907 में बी. ए. और 1 909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की। इसके उपलक्ष्य में उन्हें कॉलेज की ओर से “#लैम्सडेन अवार्ड” दिया गया।


🇮🇳#पंडित_जवाहरलाल_नेहरू के सान्निध्य में पंडित गोविंद बल्लभ पंत इस तरह प्रभावित हुए कि एक बार काशीपुर में रहते हुए पंत जी धोती कुर्ता और #महात्मा_गांधी टोपी पहनकर कोर्ट में चले गये। ब्रिटिश मजिस्ट्रेट ने उनके ड्रेस-कोड पर आपत्ति जताई, जिसका जवाब पंत जी ने दिया। उस समय पंत जी 500 रूपये प्रति माह कमाते थे!


🇮🇳ब्रिटिश सरकार पंडित पंत से इतनी डरती थी कि स्वतंत्रता आंदोलन के कारण काशीपुर को काली सूची में डाल दिया गया था और पंत जी के कारण 'अंग्रेजी सरकार काशीपुर को 'गोविंद गढ़' के नाम से संबोधित करती थी!'


🇮🇳1914 से समाज सुधारक के रूप में उभरे पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने #भूमि_सुधार, #मुफ्त अनिवार्य #शिक्षा, #हिंदू हाई स्कूल की स्थापना के लिए काम किया। इसके साथ ही उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी के #असहयोग_आंदोलन के तहत कुमाऊं में स्वदेशी का प्रचार-प्रसार करने का काम किया।


 🇮🇳विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के अलावा उन्होंने 'लगान बंदी' के खिलाफ आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1928 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने पंडित 'जवाहरलाल नेहरू' के नेतृत्व में लखनऊ में साइमन कमीशन का बहिष्कार किया!


🇮🇳#लाहौर में #साइमन-कमीशन का विरोध करते समय अंग्रेजों के आदेश पर लाठीचार्ज के कारण लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई!


🇮🇳'1921, 1930, 1932 और 1934 - स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोविंद बल्लभ पंत को लगभग सात साल की कैद हुई!'


🇮🇳7 मार्च, 1961 को पंडित गोविंद बल्लभ पंत की हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई।


🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


Sachchidanand Hiranand Vatsyayan "Agyeya" | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" | 7 March, 1911- 4 April, 1987





🇮🇳 सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च,1911-4 अप्रैल,1987) कवि, कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और सफल अध्यापक थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के #देवरिया जिले के #कुशीनगर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहारऔर मद्रास में बीता।

🇮🇳 प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देख रेख में घर पर ही संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा व साहित्य के अध्ययन के साथ हुई। बी.एस.सी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़ गये। 

🇮🇳 1930 से 1936 तक विभिन्न जेलों में कटे। आप पत्र, पत्रिकाओं से भी जुड़े रहे । 1964 में आँगन के पार द्वार पर उन्हें साहित्य अकादमी का और 1978 में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला । 

🇮🇳 आप की प्रमुख कृतियां हैं; 

★ कविता संग्रह: भग्नदूत 1933, चिन्ता 1942, इत्यलम् 1946, हरी घास पर क्षण भर 1949, बावरा अहेरी 1954, इन्द्रधनुष रौंदे हुये ये 1957, अरी ओ करुणा प्रभामय 1959, आँगन के पार द्वार 1961, कितनी नावों में कितनी बार (1967), क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970), सागर मुद्रा (1970), पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974), महावृक्ष के नीचे (1977), नदी की बाँक पर छाया (1981), ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986), प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में,1946)। 



★ कहानियाँ: विपथगा 1937, परम्परा 1944, कोठरी की बात 1945, शरणार्थी 1948, जयदोल 1951; 

★ चुनी हुई रचनाओं के संग्रह: पूर्वा (1965), सुनहरे शैवाल (1965), अज्ञेय काव्य स्तबक (1995), सन्नाटे का छन्द, मरुथल; 

★ संपादित संग्रह: तार सप्तक, दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक, पुष्करिणी (1953) ।

🇮🇳 आपने उपन्यास, यात्रा वृतान्त, निबंध संग्रह, आलोचना, संस्मरण, डायरियां, विचार गद्य: और नाटक भी लिखे ।

साभार: hindi-kavita.com

🇮🇳 साहित्य अकादमी पुरस्कार और भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित; स्वतंत्रता सेनानी तथा हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और सफल अध्यापक  #साहित्यकार #सच्चिदानंद_हीरानंद_वात्स्यायन_अज्ञेय जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

 #Sahitya_Akademi_Award,  and #Bharatiya_gyanpith_Award,  #freedom_fighter and famous #Hindi_poet, #storyteller, #essayist, #editor, #teacher, #Literature #Sachchidanand_Hiranand_Vatsyayan_Agyeya 

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

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