07 मार्च 2024

Ravindra Kelkar | Freedom Fighter | रवीन्द्र केलकर | कोंकणी साहित्यकार (March 7, 1925-August 27, 2010)

 



#Ravindra_Kelkar | #Freedom_Fighter |  #रवीन्द्र_केलकर | #कोंकणी_साहित्यकार  (March 7, 1925-August 27, 2010) 

🇮🇳 ‘कोंकणी साहित्य की ग्रंथसूची’ को कोंकणी, हिंदी और कन्नड़ में प्रस्तुत कर रवीन्द्र केलकर ने सिद्ध कर दिया था कि कोंकणी का महत्व स्वीकारा जाना चाहिए। 🇮🇳

🇮🇳 रवीन्द्र केलकर (जन्म- 7 मार्च, 1925; मृत्यु- 27 अगस्त, 2010) कोंकणी साहित्य के सबसे मजबूत स्तंभ थे। '#पद्म_भूषण से सम्मानित रवीन्द्र केलकर ने अंग्रेज़ी, हिंदी, कोंकणी, #मराठी और #गुजराती #भाषा में अनेक कृतियों की रचना की। इस महान हस्ती को वर्ष 2006 का 'ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। रवीन्द्र केलकर की प्रमुख रचनाओं में 'आमची भास कोंकणीच', 'बहुभाषिक भारतान्त भाषान्चे समाजशास्त्र' शामिल हैं। रवीन्द्र केलकर को 1977 में उनकी पुस्तक 'हिमालयवंत के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' भी मिला।

🇮🇳 रवींद्र केलकर का जन्म #दक्षिण_गोवा के #कोकुलिम में #डॉ_राजाराम_केलकर के यहाँ 7 मार्च, सन 1925 को हुआ। #पणजी में आरंभिक शिक्षा के दौरान ही रवींद्र केलकर 1946 में #गोवा_मुक्ति_संग्राम से जुड़ गए। इस दौरान वे कई स्थानीय और राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में थे। 

🇮🇳 शिक्षाविद, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी #लक्ष्मण_राव_सरदेसाई ने उनके भीतर देशभक्ति को जगाया। उन्हीं दिनों स्वाधीनता सेनानियों ने एक सरकारी स्कूल को जला डाला था और इसमें रवीन्द्र केलकर की गिरफ्तारी हो सकती थी, इसलिए वो भागकर मुंबई आ गए। यहाँ वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं और #गॉंधीजी के संपर्क में आए।

🇮🇳 #राम_मनोहर_लोहिया का प्रभाव--

राम मनोहर लोहिया से मिलने के बाद रवीन्द्र केलकर ने जाना कि जनता को जगाने के लिए अपनी #मातृभाषा को माध्यम बनाकर कैसे लड़ा जा सकता है। बाद में वे #मुंबई से #वर्धा चले आए। छह साल तक वर्धा में रहते हुए एक पत्रिका का संपादन किया। 1949 में दिल्ली के गॉंधी स्मारक संग्रहालय में लाइब्रेरियन के रूप में काम करने लगे। देश आजाद हो चुका था, लेकिन गोवा पर अभी भी पुर्तगाली आधिपत्य था। रवींद्र केलकर ने एक साल में ही दिल्ली की नौकरी छोड़ दी और चले पड़े गोवा को आज़ाद कराने।

🇮🇳 गोवा की आज़ादी--

गोवा पहुँचकर उन्होंने गॉंधीवादी अहिंसक रास्ते से गोवा की मुक्ति के लिए संघर्ष आरंभ किया। उन्होंने जन जागरण के लिए हिंदी, मराठी और कोंकणी में लेख लिखे। मुंबई से उन्होंने ‘गोमांतभारती’ साप्ताहिक पत्रिका निकाली, जो रोमन लिपि में कोंकणी में प्रकाशित होती थी। 1961 में भारतीय सेना ने गोवा को आजाद करा लिया। इसके बाद उन्होंने कोंकणी भाषा और गोवा को महाराष्ट्र से अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। उनके आंदोलन का ही परिणाम था कि भारत सरकार ने गोवा को महाराष्ट्र में शामिल करने के बजाय केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया।

🇮🇳 पूर्ण राज्य के लिए आंदोलन--

कोंकणी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने और गोवा को पूर्ण राज्य बनाने के लिए रवीन्द्र केलकर का संघर्ष और योगदान अप्रतिम है। 1962 में प्रकाशित उनकी ‘आमची भास कोंकणिच’ पुस्तक से उन्होंने लोगों से कोंकणी भाषा की अस्मिता के लिए आह्वान किया। ‘कोंकणी साहित्य की ग्रंथसूची’ को कोंकणी, हिंदी और कन्नड़ में प्रस्तुत कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कोंकणी का महत्व स्वीकारा जाना चाहिए। उन्हीं के संघर्षों के फलस्वरूप 1975 में साहित्य अकादेमी ने कोंकणी को स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता दी। 1987 में जब गोवा को पृथक राज्य घोषित किया गया तो राज्य विधानसभा ने कोंकणी को राज्य की आधिकारिक भाषा स्वीकार किया। यही नहीं, उन्हीं के प्रयासों के फलस्वरूप 1992 में कोंकणी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।

🇮🇳 सम्मान और पुरस्कार--

◆ रवींद्र केलकर संघर्षशील और जुझारू कलम के योद्धा थे। कोंकणी में उन्होंने महाभारत के दो खंडों का अनुवाद भी किया। उनके यात्रा संस्मरणों की पुस्तक ‘हिमालयांत’ को 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।

◆ गुजराती निबंधकार झवेरचंद मेघानी की पुस्तक का कोंकणी में अनुवाद करने के लिए उन्हें 1990 में दोबारा साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।

◆ उन्हें 2006 का ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिला, ऐसा पहली बार हुआ था जब कोंकणी भाषा में लिखने वाले लेखक को यह सम्मान प्राप्त हुआ था। अस्वस्थता के कारण उन्हें यह सम्मान 2010 में दिया जा सका।

◆ साल 2007 में उन्हें जीवनपर्यंत साहित्य सेवा के लिए साहित्य अकादमी का फैलो चुना गया।

◆ रवीन्द्र केलकर को 2008 में पद्म भूषण से नवाजा गया।

🇮🇳 रवीन्द्र केलकर की मृत्यु 27 अगस्त, 2010 को हुई।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार और #पद्मभूषण से सम्मानित; लेखनी के माध्यम से #गोवा_मुक्ति_संग्राम से जुडे #स्वतंत्रतासेनानी एवं कोंकणी, हिन्दी, मराठी व गुजराती साहित्य के क्षेत्र में कार्य करने वाले सुप्रसिद्ध #कोंकणी #साहित्यकार #रवीन्द्र_केलकर जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. 


International Women's Day March 8 | अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस | 8 मार्च



#International_Womens_Day | #अंतर्राष्ट्रीय #महिला_दिवस

8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विश्व स्तर पर मनाया जाता है। लेकिन महिलाओं को सशक्त बनाने वाले इस दिन को मनाने की शुरुआत सबसे पहले साल 1909 में हुई थी। दरअसल, साल 1908 में अमेरिका में एक मजदूर आंदोलन हुआ, जिसमें करीब 15 हजार महिलाएं भी शामिल हुई | 

International Women's Day is celebrated globally on #8March. But celebrating this day that empowers women was first started in the year 1909. In fact, in the year 1908, there was a #labor_movement in America, in which about 15 thousand women also participated.


यूरोप में महिलाओं ने 8 मार्च को पीस एक्टिविस्ट्स को सपोर्ट करने के लिए रैलियां निकाली थीं। इस वजह से 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई। बाद में 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मान्यता दे दी।


Women in Europe took out rallies on March 8 to support peace activists. For this reason, celebration of International Women's Day started on March 8. Later in 1975, the United Nations recognized International Women's Day.


महिलाओं के अधिकारों और मताधिकार की वकालत करने के लिए, क्लारा ज़ेटकिन (जर्मनी में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए 'महिला कार्यालय' की नेता)  ने 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान वार्षिक महिला दिवस की स्थापना का प्रस्ताव रखा।


To advocate for women's rights and suffrage, #Clara_Zetkin (leader of the 'Women's Office' for the Social Democratic Party in #Germany) proposed the establishment of an annual Women's Day during the International #Conference for #Working_Women in Copenhagen in 1910.


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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06 मार्च 2024

Opposition is the Enemy of Sanatan | सनातन धर्म का शत्रु है विपक्ष | लेखक : सुभाष चन्द्र

 



अहसान फरामोश फर्जी गांधी, देश से बस मांगता फिरता है - सारा विपक्ष सनातन का शत्रु  बना हुआ है - उदयनिधि स्टालिन को सीधी सजा का ऐलान करे सुप्रीम कोर्ट |

समूचा विपक्ष सनातन धर्म और भगवान राम का शत्रु बना हुआ है - जिस किसी के मुंह में जो आ रहा है बक रहा है - आज ममता की #TMC के एक विधायक रामेंदु सिन्हा राय ने कह दिया कि श्रीराम मंदिर “अपवित्र” और कहा कि किसी हिन्दू को उस मंदिर में पूजा नहीं करनी चाहिए - #DMK का #A_Raja खुलकर बोला है कि हम राम के शत्रु हैं और पहले उसी ने उदयनिधि स्टालिन के सुर में सुर मिलाते हुए सनातन धर्म की तुलना #HIV और #Leprosy से की थी जबकि उदयनिधि स्टालिन ने #सनातन_धर्म को डेंगू मलेरिया और कोरोना कहते हुए कहा था कि इसका  विरोध नहीं होना चाहिए बल्कि इसे ख़त्म कर देना चाहिए  - 


इसके अलावा भी स्वामी प्रसाद मौर्य और #लालू की पार्टी और अन्य दलों के नेताओं ने सनातन धर्म, रामचरितमानस और भगवान राम के लिए अपमानजनक शब्द बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी - राहुल “कालनेमि” या उसके “फर्जी गांधी” परिवार के किसी सदस्य ने किसी बात का विरोध नहीं किया बल्कि राहुल ने तो कुछ दिन पहले यहां तक कहा कि “भारत माता की जय” और “जय श्रीराम” का नारा लगाने वाले एक दिन भूखे मर जाएंगे -


अभी एक नया वीडियो सामने आया है जिसमें राहुल कालनेमि लोगों से पूछ रहा है कि “ये जो सोने की चिड़िया है, जिसे भारत माता कहते हैं और दुनिया भी इसे सोने की चिड़िया कहती है उसमे से मुझे कितना सोना मिला”


यह अहसान फरामोश देश से केवल मांगना जानता है लेकिन कभी यह नहीं बताता कि इसने देश के लिए क्या किया - कितना सोना मिला यह जानने के लिए राहुल “कालनेमि” को पता होना चाहिए कि एक नाकाबिल निकम्मे आशिक व्यक्ति की वजह से देश के टुकड़े हुए और वह प्रधानमंत्री बन गया और उसी वजह से आज यह आवारा सा फर्जी गांधी मौज कर रहा है - 


राहुल “कालनेमि” बताएं कि पिछले चुनाव में उसने जो 15 करोड़ की संपत्ति घोषित की थी वह कहां से आई और जो सोनिया गांधी ने इस राज्यसभा के चुनाव में 12.80 करोड़ की संपत्ति घोषित की है वह कहां से आई - जीजा जी और बहन के पास करोड़ो की जमीन कहां से आई - समस्या यह है कि ये “फर्जी गांधी” खानदान देश को लूटना ही जानता है -


कल सुप्रीम कोर्ट में #उदयनिधि  #स्टालिन की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने अपील करते हुए कहा कि स्टालिन के खिलाफ 6 राज्यों में दायर सभी मुकदमों को एक जगह कर दिया जाए और इसके लिए उसने अर्नब गोस्वामी और नूपुर शर्मा के cases का हवाला दिया जबकि सच्चाई यह है कि दोनों के खिलाफ अलग अलग राज्यों में cases कांग्रेस ने ही दर्ज कराए थे और अर्नब के cases club करने का विरोध खुद अभिषेक #मनु_सिंघवी ने किया था -


कल सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और #जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने #उदयनिधि_स्टालिन को बड़े संयमित अंदाज में कहा कि आप मंत्री हैं आपको पता होना चाहिए कि जो आपने कहा उसके परिणाम क्या हो सकते थे, बयान देते हुए सावधानी बरतनी चाहिए थी -


दूसरी तरफ यह शालीनता #नूपुर_शर्मा के लिए नहीं दिखाई गई, उसके लिए तो जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत ने अदालत के इतिहास की सबसे भयंकर “#hate_speech” देते हुए उसे देश को आग लगाने के लिए जिम्मेदार कह दिया था -


अब सवाल उठता है कि 22 सितंबर, 2023 को जो नोटिस बहुत हीलाहवाली के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उदयनिधि स्टालिन को दिया था, उसका जवाब देने की बजाय उसने cases को club करने की अपील की जिसका मतलब है वह अपने बयान को गलत नहीं बता रहा - इसलिए ऐसे में उस पर कहीं कोई case चलाने की बजाय सुप्रीम कोर्ट को सीधे सजा का ऐलान कर देना चाहिए - #सुप्रीम_कोर्ट ऐसा करने में सक्षम है अगर इच्छा शक्ति हो -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र  | मैं हूं मोदी का परिवार | “मैं वंशज श्री राम का” 05/03/2024 

#Political, #sabotage,   #Congress,  #Kejriwal  #judiciary  #delhi #sharadpanwar, #laluyadav, #spa #uddavthakre, #aap  #FarmerProtest2024  #KisanAndolan2024  #SupremeCourtofIndia #Congress_Party  #political_party #India #movement #indi #gathbandhan #Farmers_Protest  #kishan #Prime Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal, #DMK  #A_Raja #Defamation_Case #top_stories#supreme_court #arvind_kejriwal #apologises #sharing #fake_video #against #bjp 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,


05 मार्च 2024

How long will Kejriwal be able to survive? | केजरीवाल कब तक बच पाएगा | लेखक : सुभाष चन्द्र

 


How long will Kejriwal be able to survive?  |  केजरीवाल कब तक बच पाएगा  | 

हर मोर्चे पर फेल हो रहा है | 

कुछ मामले केजरीवाल के बता रहे हैं कि अब सितारे पूरी तरह गर्दिश में हैं दिल्ली के राजा के -

#ED ने केजरीवाल को शराब घोटाले में पूछताछ के लिए 8वां समन 27 फरवरी के लिए जारी किया था लेकिन दिल्ली का ठग नहीं गया और बाद में ED को पत्र भेज कर 12 मार्च के बाद की तारीख देने के लिए कहा और यह भी कहा कि वह #video_conference से ED के सवालों के जवाब देने के लिए तैयार है 


केजरीवाल शायद अभिषेक मनु सिंघवी के पढ़ाए पाठ पढ़ रहा जबकि #सिंघवी खुद हिमाचल में पिट चुका है और सुप्रीम कोर्ट हाल ही में तमिलनाडु के अधिकारियों को ED के समन पर हाजिर होने के लिए निर्देश देते हुए कह चुका है कि ED के समन को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता - ED #PMLA के #section_50_(2) के अंतर्गत किसी को भी #Evidence और #record प्रस्तुत करने के लिए स्वयं पेश होने के लिए समन जारी करता है और section 50 (3 ) के अंतर्गत जिसे समन जारी होता है उसे स्वयं पेश होना होता है या अपने अधिकृत प्रतिनिधि के जरिए भी हाजिर हो सकता है - 


केजरीवाल को निजी रूप में हाजिर होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ED के समक्ष पेशी एक न्यायिक प्रक्रिया होती है और ED के सामने बयान देना अदालत के समक्ष शपथ पत्र पर बयान देने  जैसा होता है जिस पर पेश होने वाले के sign भी होने जरूरी होते है - Video Conference से हाजिर होने पर sign कहां करेगा और इसलिए पेश होना ही होगा लेकिन उसे डर है कि अगर पेश हो गया तो ED गिरफ्तार कर लेगी -


केजरीवाल चाहे तो ED के अधिकारियों को अपने घर भी बुला सकता है जैसे हेमंत सोरेन ने बुलाया था लेकिन ED तो उसे घर से भी उठा कर ले जा सकती है जैसे हेमंत सोरेन को ले गई - इसलिए केजरीवाल के दिन अब पूरे हो गए -


दूसरे केस में कल #सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल की “आप” को दिल्ली हाई कोर्ट की जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर बनाए गए कार्यलय को 15 जून, 2024 तक खाली करने के आदेश दे दिए और केस की सुनवाई में CJI चंद्रचूड़ ने अभिषेक मनु सिंघवी पर लज्जित करने वाला तंज भी कस दिया कि आपको तो अदालत के साथ होना चाहिए था, आप उस तरफ कैसे चले गए, आपको तो “आप” का केस लड़ना ही नहीं चाहिए था - गनीमत है कोर्ट ने “आप” कार्यालय को ध्वस्त करने के आदेश नहीं दिए 


इसके अलावा एक तीसरा कांड और हो गया - चंद्रचूड़ जी की मेहरबानी से चंडीगढ़ के महापौर का चुनाव रद्द हो गया और “आप” के प्रत्याशी को महापौर विजेता घोषित कर दिया गया था लेकिन कल भाजपा के उम्मीदवार Senior Deputy Mayor और Deputy Mayor का चुनाव जीत गए,  उन्हें 19 वोट मिले और “आप-कांग्रेस” गठबंधन को 16 वोट मिले - यह झटका देखा जाए तो कांग्रेस और आप से ज्यादा CJI चंद्रचूड़ को लगा माना जाएगा और इससे भी बड़ा झटका और लग सकता है जब चंद्रचूड़ जी की मेहरबानी से बना “आप” का मेयर अविश्वास प्रस्ताव से हटा दिया जाएगा और भाजपा का मेयर सत्ता में होगा -


अब कुछ दिनों में कांग्रेस और आप एक दूसरे को जूते मारते नज़र आएंगे - “तुमने हमें मरवा दिया” और वो नज़ारा देखने वाला होगा -

"लेखक के निजी विचार हैं "

 लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 05/03/2024 

#Political, #sabotage,   #Congress,  #Kejriwal  #judiciary  #delhi #sharadpanwar, #laluyadav, #spa #uddavthakre, #aap  #FarmerProtest2024  #KisanAndolan2024  #SupremeCourtofIndia #Congress_Party  #political_party #India #movement #indi #gathbandhan #Farmers_Protest  #kishan #Prime Minister  #Rahulgandhi  #PM_MODI #Narendra _Modi #BJP #NDA #Samantha_Pawar #George_Soros #Modi_Govt_vs_Supreme_Court #Arvind_Kejriwal #Defamation_Case #top_stories#supreme_court #arvind_kejriwal #apologises #sharing #fake_video #against #bjp #dhruv_rathee_video 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,

Sardar Nanak Singh | अमर बलिदानी सरदार नानक सिंह जी | 11 सितंबर 1903-4 मार्च 1947



भारत की विविधता इंद्रधनुष के रंगों की तरह है। यदि इनमें से एक को भी हटा दिया जाए तो इसका आकर्षण और सुंदरता कम हो जाएगी। 🇮🇳

~ अमर बलिदानी सरदार नानक सिंह जी

🇮🇳 जब उन्हें #सरगोधा, जो अब पाकिस्तान में है, में निहत्थे शांतिपूर्ण स्वतंत्रता प्रेमियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया तो उन्होंने अपना शानदार पुलिस कैरियर त्याग दिया। 🇮🇳

🇮🇳 अमर बलिदानी सरदार नानक सिंह का जन्म 11 सितंबर 1903 को #रावलपिंडी, जो अब पाकिस्तान में है, में हुआ था। उनका जन्म #डॉ_वज़ीर_सिंह और उनकी पत्नी #जीवन_कौर के यहाँ हुआ था। अमर बलिदानी नानक सिंह, बीएससी (ऑनर्स) एलएलबी, पश्चिम पंजाब के एक प्रमुख सिख नेता, बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष, अकाली जत्था, मुल्तान के महासचिव, पोस्ट एंड टेलीग्राफ यूनियन, मुल्तान के अध्यक्ष, सांप्रदायिक सद्भाव संस्था के उपाध्यक्ष थे।

🇮🇳 उन्होंने अपना अंतिम सार्वजनिक भाषण 4 मार्च 1947 को #मुल्तान शहर के #कूप_मंडी में #पंजाब के राष्ट्रपति #डॉ_सैफुद्दीन_किचलू के साथ दिया और एकजुट भारत के रूप में स्वतंत्रता प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया। अगले दिन, मुल्तान के डीएवी कॉलेज के 600 छात्रों को बचाते हुए वह 43 साल की उम्र में बलिदान हो गए। 

🇮🇳 छात्रों ने भारत के विभाजन के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण जुलूस निकाला था लेकिन वे सांप्रदायिक दंगों में फँस गये। वह छात्रों को बचाने में कामयाब रहे लेकिन भारत में हिंदू मुस्लिम एकता के लिए उन्होंने अपनी जान गँवा दी। वह अपने पीछे 35 साल की एक युवा विधवा सरदारनी #हरबंस_कौर और आठ छोटे बच्चे छोड़ गए, जिनमें सबसे बड़ी उम्र केवल 14 साल थी।

🇮🇳 अमर बलिदानी नानक सिंह पश्चिमी पंजाब, जो अब पाकिस्तान में है, के एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत की स्वतंत्रता, सांप्रदायिक सद्भाव और एकता के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने धर्म के आधार पर भारत के विभाजन का विरोध किया क्योंकि वे धार्मिक असामंजस्य के परिणामों की भविष्यवाणी कर सकते थे। उन्होंने तत्कालीन मुस्लिम नेताओं को चेतावनी दी कि वे ब्रिटिश 'फूट डालो और राज करो' की नीति, जो फूट डालो और भागो में बदल गई थी, के झाँसे में न आएं। उन्होंने मुस्लिम नेताओं से अनुरोध किया कि स्वतंत्रता के बाद, भारत एक व्यक्ति, एक वोट वाला एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश होगा और परिणामस्वरूप, हम एक साथ मिलकर अपना भाग्य बनाएंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि हम अपने-अपने रास्ते अलग हो गए, तो हमारे बीच कुछ भी समान नहीं होगा और हम प्रतिद्वंद्वी बन जाएंगे और परिणामस्वरूप, क्षेत्र में कभी भी शांति का अनुभव नहीं होगा।

🇮🇳 अमर बलिदानी नानक सिंह ब्रिटिश पुलिस में एक तेजतर्रार पुलिस इंस्पेक्टर थे और अपने उत्कृष्ट कर्तव्य निर्वहन के लिए उन्हें 29 गोल्ड कमेंडेशन सर्टिफिकेट प्राप्त हुए थे। जब उन्हें #सरगोधा, जो अब पाकिस्तान में है, में निहत्थे शांतिपूर्ण स्वतंत्रता प्रेमियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया तो उन्होंने अपना शानदार पुलिस कैरियर त्याग दिया। उन्होंने अपने वरिष्ठ के अनैतिक आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने #जलियांवाला_बाग के समान एक अन्य घटना का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था।

 

🇮🇳 सज़ा के रूप में, उन्हें उत्तर-पश्चिम सीमा पर एक आदिवासी क्षेत्र #डेरा_गाज़ी_खान में तैनात किया गया था। ब्रिटिश अधिकारियों से मोहभंग होने के बाद, उन्होंने पुलिस बल से इस्तीफा दे दिया और मुल्तान में कानूनी प्रैक्टिस शुरू कर दी। वह क्षेत्र के एक सफल और प्रतिष्ठित वकील थे। उन्होंने #नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस और #जनरल_मोहन_सिंह द्वारा शुरू की गई भारतीय राष्ट्रीय सेना (#आजाद_हिंद_फौज) के कैदियों की रक्षा के लिए मामले उठाए। ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा प्रतिशोध के डर से कोई अन्य वकील ऐसे मामलों को लेने की हिम्मत नहीं करेगा।

🇮🇳 अमर बलिदानी नानक सिंह ने अपना पूरा जीवन भारत की शांति, अखंडता और एकता के लिए समर्पित कर दिया और उन्हीं सिद्धांतों के लिए उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया। उनका चित्र अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में भी लगा हुआ है। पंजाब सरकार ने उनके नाम पर एक सड़क का नाम रखा है और सड़क पर उनकी प्रतिमा स्थापित की है।

जय हिन्द।

साभार: shaheednanaksinghfoundation.com

🇮🇳 भारत की एकता और अखंडता की रक्षा के संकल्प के साथ भारत विभाजन रोकने के आंदोलन में डीएवी कॉलेज के 600 छात्रों को बचाते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले देशप्रेमी अमर बलिदानी #सरदार_नानक_सिंह जी को उनके #बलिदान_दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Baba Prithvi Singh Azad | बाबा पृथ्वीसिंह आजाद | 15 सितंबर 1892 - 05 मार्च 1989



14 दिनों तक रोज सामने मौत की बाल्टी देख कर भी डरे नहीं #Baba_Prithvi_Singh_Azad  #पृथ्वीसिंह आजाद 🇮🇳

🇮🇳 भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले कुछ ऐसे क्रांतिकारी भी रहे, जिन्हें आजादी मिलने के बाद भुला दिया गया। या तो उन्हें जानबूझकर भुलाया गया या फिर उनके बारे में कहीं कोई जानकारी दर्ज थी ही नहीं, इसलिए देश उन्हें भूल गया। ऐसे ही क्रांतिवीर थे पृथ्वीसिंह आजाद, जिनके बारे में छुटपुट जानकारी ही देश के सामने आ सकी। बाबा पृथ्वीसिंह आजाद ऐसे क्रांतिवीर थे, जिनके जीवन का प्रत्येक क्षण देश की स्वतंत्रता के लिए अर्पित था। 

🇮🇳 15 सितंबर 1892 को #पंजाब के #सर्कपुर_टावर, जिला #अम्बाला में जन्मे पृथ्वीसिंह आजाद कुछ कमाने के लिए कई देशों की यात्रा करते हुए अमेरिका पहुँचे थे। वहाँ वे भारत की आजादी के लिए लड़ रही 'गदर पार्टी' में शामिल हो गए।

🇮🇳 गदर पार्टी के आह्वान पर वे अपने साथियों के साथ वापस भारत लौटे और अम्बाला की सैनिक छावनियों में भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने की प्रेरणा देने लगे। दुर्भाग्य से 8 दिसम्बर 1914 को उन्हें बंदी बनाकर #लाहौर की सेंट्रल जेल भेज दिया गया। उन्हें लाहौर षड्‌यंत्र केस में अन्य कई क्रांतिकारियों के साथ अभियुक्त बनाया गया।

🇮🇳 न्यायालय ने उक्त केस में 24 क्रांतिकारियों को फाँसी का दंड घोषित किया। उन क्रांतिकारियों में बाबा पृथ्वीसिंह आजाद भी थे। उस समय जेल में फाँसी देने के बाद शवों को नहलाया नहीं जाता था। जेल परिसर में जेल के ही कर्मचारियों द्वारा शव को जला दिया जाता था। अतः राजबंदियों की माँग थी कि जिस दिन हमें फाँसी दें, उसके पहले स्नान करने की व्यवस्था करें। मगर क्रूर अंग्रेजी शासक क्रांतिकारियों को मानसिक प्रताड़ना देने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे।

🇮🇳 जेल में बाबा पृथ्वीसिंह आजाद की कोठरी के सामने रोज एक बाल्टी पानी रख दिया जाता था। क्रांतिकारियों को लगता था कि आज उन्हें फाँसी दी जाएगी। ऐसी मानसिक क्रूरता लगातार 14 दिनों तक की गई। किंतु इससे न तो बाबा पृथ्वीसिंह आजाद डिगे, न ही कोई अन्य क्रांतिकारी।

साभार: naidunia.com

🇮🇳 #पद्मभूषण से सम्मानित; संयुक्त राज्य अमेरिका में #ग़दर_पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक और #लाहौर, #कलकत्ता, #मद्रास तथा #सेलुलर जेल समेत विभिन्न जेलों में यातनापूर्ण 10 साल बिताने वाले महान #क्रांतिकारी #बाबा_पृथ्वीसिंह_आजाद जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 



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Revolutionary Sushila Didi | भगत सिंह की 'दीदी' क्रांतिकारी सुशीला दीदी

 




भारत के #स्वतंत्रता संग्राम के #क्रांतिकारी वीरों के बलिदान से हम ज़्यादातर भारतीय परिचित हैं। शहीद- ए- आजम #भगत_सिंह की कुर्बानी की गाथाएं हर गली-मोहल्ले में सुनाई जाती हैं। लेकिन उनका साथ देने वाली महिला क्रांतिकारियों के बारे में लोगों को बहुत ही कम जानकारी है। आज हम आपको उनकी टोली की एक और महिला क्रांतिकारी, सुशीला मोहन यानी कि भगत सिंह की #सुशीला_दीदी #Sushila_Didiके बारे में बता रहे हैं।

🇮🇳 5 मार्च 1905 को पंजाब के #दत्तोचूहड़ (अब पाकिस्तान) में जन्मीं दीदी की शिक्षा जालंधर के आर्य कन्या महाविद्यालय में हुई। उनके पिता अंग्रेजी सेना में नौकरी करते थे। पढ़ाई के दौरान सुशीला क्रांतिकारी दलों से जुड़े छात्र-छात्राओं के संपर्क में आईं। उनका मन भी #देशभक्ति में रमने लगा और देखते ही देखते, वह खुद क्रांति का हिस्सा बन गईं। 

🇮🇳 लोगों को जुलूस के लिए इकट्ठा करना, गुप्त सूचनाएं पहुँचाना और क्रांति के लिए चंदा इकट्ठा करना उनका काम हुआ करता था। यहाँ पर उनका मिलना-जुलना भगत सिंह और उनके साथियों से भी हुआ। यहाँ पर उनकी मुलाक़ात #भगवती_चरण और उनकी पत्नी #दुर्गा_देवी_वोहरा से हुई।

🇮🇳 यह सुशीला दीदी ही थीं जिन्होंने दुर्गा देवी को #दुर्गा_भाभी बना दिया। उन्होंने ही सबसे पहले यह संबोधन उन्हें दिया और फिर हर कोई क्रांतिकारी उन्हें सम्मान से दुर्गा भाभी कहने लगा और सुशीला को सुशीला दीदी।

🇮🇳 कहते हैं कि भगत सिंह भी सुशीला दीदी को बड़ी बहन की तरह सम्मान करते थे। ब्रिटिश सरकार की बहुत सी योजनाओं के खिलाफ सुशीला दीदी ने उनकी मदद की थी।

🇮🇳 #काकोरी_क्रांति #Kakori_Krantiमें जब #राम_प्रसाद_बिस्मिल और उनके साथी पकड़े गए तो उन पर मुकदमा चला। मुकदमे की पैरवी को आगे बढ़ाने के लिए धन की ज़रूरत थी। ऐसे में, सुशीला दीदी ने दस तोला #सोना दिया। बताया जाता है कि यह सोना उनकी माँ ने उनकी शादी के लिए रखा था। पर इस वीरांगना ने इसे अपने देश की आज़ादी के लिए दे दिया क्योंकि उन्हें किसी भी दौलत से ज्यादा आज़ादी से प्यार था। लेकिन यह देश की बदकिस्मती थी कि काकोरी ट्रेन को लूटकर अंग्रेजों की नींद उड़ाने वाले क्रांतिकारियों में से 4 को फाँसी की सजा सुना दी गई।

🇮🇳 इस खबर ने सुशीला दीदी और उनके जैसे बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों को झकझोर दिया था। पर उनके कदम नहीं डगमगाए बल्कि सुशीला दीदी तो अपने घरवालों के खिलाफ चली गईं। उनके पिता ने जब उन्हें राजनीति और क्रांति से दूर रहने के लिए समझाया तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि घर छूटे तो छूटे लेकिन उनके #कदम देश को आज़ादी दिलाये बिना नहीं रुकेंगे।

🇮🇳 पढ़ाई पूरी करने के बाद, सुशीला दीदी कोलकाता में शिक्षिका की नौकरी करने लगीं। यहाँ पर रहते हुए भी वह लगातार क्रांतिकारियों की मदद कर रही थीं। साल था 1928, जब साइमन कमीशन का विरोध करते समय #लाला_लाजपतराय पर लाठियाँ बरसाने वाले ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को मारने के बाद भगतसिंह, दुर्गा भाभी के साथ छद्म वेश में कलकत्ता पहुँचे।

🇮🇳 उस समय भगवती चरण भी कलकत्ता में ही थे। लखनऊ स्टेशन से ही भगत सिंह ने भगवती और सुशीला दीदी को पत्र लिख दिया था। कलकत्ता स्टेशन पर सुशीला दीदी और भगवती उन्हें लेने के लिए पहुंचे।

🇮🇳 कलकत्ता में सुशीला दीदी ने भगत सिंह को वहीं ठहराया, जहाँ वह खुद रह रहीं थी ताकि ब्रिटिश सरकार को पता न चल सके। सुशीला दीदी की मदद से भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारी ने अपनी अगली योजना पर काम किया।

🇮🇳 8 अप्रैल 1929 को #भगतसिंह और #बटुकेश्वर_दत्त को केन्द्रीय असेम्बली में बम विस्फोट करने के लिए भेजना तय किया गया और उस समय #सुशीला_दीदी, #दुर्गा_भाभी और भगवती चरण के साथ लाहौर में ही थीं। अपने मिशन पर निकलने से पहले भगत सिंह उनसे मिलने भी आए थे।

🇮🇳 लेकिन जैसा कि हम सब जानते हैं कि इस हमले में भगत सिंह की गिरफ्तारी हो गई। भगतसिंह और उनके साथियों पर जब ‘लाहौर षड्यन्त्र केस’ चला तो दीदी भगतसिंह के बचाव के लिए चंदा जमा करने कलकत्ता पहुँचीं। भवानीपुर में सभा का आयोजन हुआ और जनता से ‘भगतसिंह डिफेन्स फंड’ के लिए धन देने की अपील की गई। कलकत्ता में दीदी ने अपने इस अभियान के लिए अपनी महिला टोली के साथ एक नाटक का मंचन करके भी 12 हजार रूपए जमा किए थे। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और पूरा समय क्रांतिकारी दल को देने लगीं।

🇮🇳 अन्य क्रांतिकारियों के साथ-साथ सुशीला भी अंग्रेजों की नज़र में आने लगीं थीं। उनके खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश जारी हो चुका था। लेकिन इसकी परवाह किए बिना भी उन्होंने #जतिंद्र_नाथ की मृत्यु के बाद, दुर्गा भाभी के साथ मिलकर भारी जुलूस निकाला। जन-जन के दिल में क्रांति की आग को भड़काया। उन्हें साल 1932 में गिरफ्तार भी किया गया। छह महीने की सजा के बाद उन्हें छोड़ा गया और उन्हें अपने घर पंजाब लौटने की हिदायत मिली।

🇮🇳 साल 1933 में उन्होंने अपने एक सहयोगी वकील #श्याम_मोहन से विवाह किया, जो खुद स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए थे। साल 1942 के आंदोलन में दोनों पति-पत्नी जेल भी गए। श्याम मोहन को दिल्ली में रखा गया और दीदी को लाहौर में। इतनी यातनाएं सहने के बाद भी उनके मन से देश को आज़ाद कराने का जज्बा बिल्कुल भी कम नहीं हुआ। आखिरकार, महान वीर-वीरांगनाओं की मेहनत रंग लायी और साल 1947 में देश को आज़ादी मिली।

🇮🇳 आज़ादी के बाद की ज़िंदगी, सुशीला दीदी ने दिल्ली में #गुमनामी में ही गुजारी। उन्होंने कभी भी अपने बलिदानों के बदले सरकार से किसी भी तरह की मदद या इनाम की अपेक्षा नहीं रखी। 

🇮🇳 3 जनवरी 1963 को भारत की इस बेटी ने दुनिया को अलविदा कहा। दिल्ली के चाँदनी चौक में एक सड़क का नाम ’सुशीला मोहन मार्ग’ रखा गया था, पर शायद ही कोई इस नाम के पीछे की कहानी से परिचित हो।

🇮🇳 अक्सर यही होता आया है… हमारा इतिहास महिलाओं के बलिदान और उनकी बहादुरी को अक्सर भूल जाता है। बहुत सी ऐसी नायिकाएं हमेशा छिपी ही रह जाती हैं। सुशीला मोहन भी उन्हीं नायिकाओं में से एक हैं!

🇮🇳 देश की आज़ादी के लिए मर-मिटने वाली ऐसी वीरांगनाओं को कोटि कोटि प्रणाम!

~ निशा डागर 

साभार: thebetterindia.com

🇮🇳 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना जीवन समर्पित करने वाली; त्याग, साहस और देशप्रेम की प्रतिमूर्ति अमर #वीरांगना #सुशीला_मोहन जी को उनकी जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

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🇮🇳 जय मातृभूमि 🇮🇳

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था 

#Revolutionary  #Sushila_Didi #05March

सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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