क्या चाहते हैं मीलॉर्ड - मैंने कहा था
सब जगह समान आदेश लागू हों और कल ही भ्रम पैदा कर दिया -
मैंने सुप्रीम कोर्ट के चेन्नई की अवैध मस्जिद और मदरसे को हटाने के आदेश पर लिखा था कि आदेश अच्छा है लेकिन यह सभी जगह लागू होना चाहिए और कई उदाहरण भी दिए थे जहां उन्हें लागू होना चाहिए -
लेकिन कल ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने लखनऊ के अकबरनगर में 24 “अवैध कॉलोनियों” को ध्वस्त करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को ख़ारिज करने के लिए दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चेन्नई मामले से बिलकुल विपरीत ऐसी टिपण्णी कर दी जो “अवैध निर्माण” को प्रोत्साहन देती है -
जस्टिस खन्ना की पीठ ने बहुत खतरनाक बात कही जिसमें कहा गया - “किसी भी शख्स के सिर पर छत होना उसका मूलभूत अधिकार है लेकिन अगर किफायती दाम पर लोगों को आवास उपलब्ध कराने में सरकारी नीतियां असमर्थ रहती हैं, तो ऐसे में अनाधिकृत कॉलोनियों का बनना तय है”
इसका मतलब साफ़ है सुप्रीम कोर्ट जनता के प्रति सारी जिम्मेदारी सरकार पर थोप देना चाहता है चाहे किसी भी समुदाय के लोग भारत में अपनी जितनी मर्जी आबादी बढ़ाते रहें और रोहिंग्या एवं बांग्लादेशियों की तरह घुसपैठ करते रहें - सुप्रीम कोर्ट कल को यह भी कहेगा क्या कि सरकार यदि सभी को नौकरी नहीं देती तो युवा “आतंकी” बनने का अधिकार रखते हैं -
अगर जजों के बंगलों के नजदीक लोग “अवैध घर” बना कर रहने लगें तब क्या होगा, एक दिन में तुड़वा देंगे तब -
वैसे एक बात सामने आई है कि इन सभी अवैध निर्माण करने वालों में अधिकांश एक ही समुदाय के लोग हैं जिनके लिए शायद सुप्रीम कोर्ट के दिल में ज्यादा तड़प होती है जैसे हल्द्वानी में रोक लगाते हुए थी -
एक तरफ कोर्ट ने यह मूर्खतापूर्ण टिप्पणी की तो दूसरी तरफ जस्टिस खन्ना ने यह भी कहा कि लोगों ने स्वीकार किया है (जिनमे कुछ गरीब भी हैं) कि ये जमीन सरकार की है और सरकारी जमीन पर निर्माण अवैध है और उन्हें 4 मार्च की रात 12 बजे तक अपना सामान निकालने का समय दिया - इसका मतलब यह भी हुआ कि सुप्रीम कोर्ट स्वयं विपरीत नजरिया अपना रहा है क्योंकि अगर सरकारी जमीन पर निर्माण हुआ है तो वह चेन्नई मस्जिद की तरह हटा देने के आदेश से अलग मामला नहीं हो सकता -
मीलॉर्ड को इस संदर्भ में याद करा दिया जाना चाहिए कि छत्तीसगढ़ में 2013 में प्रधानमंत्री गरीब आवास योजना के तहत 2013 में 400 घरों में से 335 आवास दिए गए थे बाकी 65 पर निगम ने ताला लगा रखा था लेकिन बाहरी रोहिंग्या मुसलमानों ने उन 65 घरो पर अवैध कब्ज़ा कर लिया और 60 अन्य परिवारों को डरा धमका का उनके मकानों पर भी बलात कब्ज़ा कर लिया - और वहां कुछ घरों में मज़ारनुमा आकृति देकर झाड़फूंक का काम करना शुरू कर दिया -
अब मीलॉर्ड इस पर भी कभी पंचायत लगा कर बैठेंगे तो क्या बताएंगे छत किसका अधिकार है, जिसे प्रधानमंत्री योजना में घर मिला या जिसने बलात कब्ज़ा कर लिया -
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और टिप्पणियों के बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं और इसलिए न्यायाधीश भावनाओं में बह कर टिप्पणियां न किया करें - कई बार यह भी कहा जाता है कि अवैध निर्माण ध्वस्त करने से पहले नोटिस क्यों नहीं दिया गया (जो दिया जाता है) मगर दंगाइयों से कभी कोई नहीं पूछता कि लोगों की गाड़ियां जलाने या सरकारी संपत्ति जलाने से पहले नोटिस क्यों नहीं देते -
CAA के दंगाइयों से वसूली से तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने उत्तरप्रदेश सरकार को रोक कर जैसे सरकारी संपत्ति जलाने को ही उचित ठहरा दिया था - तब भी चंद्रचूड़ ने कहा था “ये तो निरीह गरीब हैं, ये नुकसान की भरपाई कैसे करेंगे”
"लेखक के निजी विचार हैं "
लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 01/03/2024
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