21 फ़रवरी 2024

Nutan Samarth Bahl | Famous Actresses| Born June 4, 1936; Died February 21, 1991| नूतन समर्थ बहल | मशहूर अभिनेत्री

 




Nutan Samarth Bahl (Born June 4, 1936; Died February 21, 1991) नूतन समर्थ बहल (जन्म- 4 जून, 1936; मृत्यु: 21 फ़रवरी, 1991) #हिन्दी #सिनेमा की सबसे प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में से एक रही हैं। भारतीय सिनेमा जगत में नूतन को एक ऐसी अभिनेत्री के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने फ़िल्मों में अभिनेत्रियों के महज शोपीस के तौर पर इस्तेमाल किए जाने की परंपरागत विचार धारा को बदलकर उन्हें अलग पहचान दिलाई। सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आंगन की, सीमा, #सरस्वती चंद्र, और मिलन जैसी कई फ़िल्मों में अपने उत्कृष्ट अभिनय से नूतन ने यह साबित किया कि नायिकाओं में भी अभिनय क्षमता है और अपने अभिनय की बदौलत वे दर्शकों को #सिनेमा हॉल तक लाने में सक्षम हैं।

🇮🇳 जीवन परिचय--

नूतन का जन्म 4 जून, 1936 को एक पढ़े लिखे परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती #शोभना_समर्थ और पिता का नाम श्री #कुमारसेन_समर्थ था। घर में #फ़िल्मी माहौल रहने के कारण नूतन अक्सर अपनी माँ के साथ शूटिंग देखने जाया करती थी। इस वजह से उनका भी रुझान #फ़िल्मों की ओर हो गया और वह भी अभिनेत्री बनने के ख्वाब देखने लगी।

🇮🇳 सिने कैरियर की शुरूआत--

नूतन ने बतौर बाल कलाकार फ़िल्म 'नल दमयंती' से अपने सिने कैरियर की शुरूआत की। इस बीच नूतन ने अखिल भारतीय सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लिया जिसमें वह प्रथम चुनी गई लेकिन बॉलीवुड के किसी निर्माता का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। बाद में अपनी #माँ और उनके मित्र मोतीलाल की सिफारिश की वजह से नूतन को वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म 'हमारी बेटी' में अभिनय करने का मौका मिला। इस फ़िल्म का निर्देशन उनकी माँ शोभना समर्थ ने किया। इसके बाद नूतन ने 'हमलोग', 'शीशम', 'नगीना' और 'शवाब' जैसी कुछ फ़िल्मों में अभिनय किया लेकिन इन फ़िल्मों से वह कुछ ख़ास पहचान नहीं बना सकी।

🇮🇳 'सीमा' से मिली पहचान--

वर्ष 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सीमा' से नूतन ने विद्रोहिणी नायिका के सशक्त किरदार को रूपहले पर्दे पर साकार किया। इस फ़िल्म में नूतन ने सुधार गृह में बंद कैदी की भूमिका निभायी जो चोरी के झूठे इल्जाम में जेल में अपने दिन काट रही थी। फ़िल्म 'सीमा' में #बलराज_साहनी सुधार गृह के अधिकारी की भूमिका में थे। बलराज साहनी जैसे दिग्गज कलाकार की उपस्थित में भी नूतन ने अपने सशक्त अभिनय से उन्हें कड़ी टक्कर दी। इसके साथ ही फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये नूतन को अपने सिने कैरियर का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म अभिनेत्री का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

🇮🇳 बहुआयामी प्रतिभा--

नूतन ने देवानंद के साथ 'पेइंग गेस्ट' और 'तेरे घर के सामने' में नूतन ने हल्के-फुल्के रोल कर अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया। वर्ष 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म सोने की चिडि़या के हिट होने के बाद फ़िल्म इंडस्ट्री में #नूतन के नाम के डंके बजने लगे और बाद में एक के बाद एक कठिन भूमिकाओं को निभाकर वह फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गई। वर्ष 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म 'दिल्ली का ठग' में नूतन ने स्विमिंग कॉस्टयूम पहनकर उस समय के समाज को चौंका दिया। फ़िल्म बारिश में नूतन काफ़ी बोल्ड दृश्य दिए जिसके लिए उनकी काफ़ी आलोचना भी हुई लेकिन बाद में विमल राय की फ़िल्म 'सुजाता' एवं 'बंदिनी' में नूतन ने अत्यंत मर्मस्पर्शी अभिनय कर अपनी बोल्ड अभिनेत्री की छवि को बदल दिया। सुजाता, बंदिनी और दिल ने फिर याद किया जैसी फ़िल्मों की कामयाबी के बाद नूतन ट्रेजडी क्वीन कही जाने लगी। अब उनपर यह आरोप लगने लगा कि वह केवल दर्द भरे अभिनय कर सकती हैं लेकिन छलिया और सूरत जैसी फ़िल्मों में अपने कॉमिक अभिनय कर नूतन ने अपने आलोचकों का मुँह एक बार फिर से बंद कर दिया। वर्ष 1965 से 1969 तक नूतन ने दक्षिण भारत के निर्माताओं की फ़िल्मों के लिए काम किया। इसमें ज्यादातर सामाजिक और पारिवारिक फ़िल्में थी। इनमें गौरी, मेहरबान, खानदान, मिलन और भाई बहन जैसी #सुपरहिट फ़िल्में शामिल है।

🇮🇳 फ़िल्म 'सुजाता' और 'बंदिनी'--

विमल राय की फ़िल्म 'सुजाता' एवं 'बंदिनी' नूतन की यादगार फ़िल्में रही। वर्ष 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म सुजाता नूतन के सिने कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। फ़िल्म में नूतन ने अछूत कन्या के किरदार को रूपहले पर्दे पर साकार किया1 इसके साथ ही फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये वह अपने सिने कैरियर में दूसरी बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित की गई। वर्ष 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म 'बंदिनी 'भारतीय सिनेमा जगत् में अपनी संपूर्णता के लिए सदा याद की जाएगी। फ़िल्म में नूतन के अभिनय को देखकर ऐसा लगा कि केवल उनका चेहरा ही नहीं बल्कि हाथ पैर की उंगलियां भी अभिनय कर सकती है। इस फ़िल्म में अपने जीवंत अभिनय के लिये नूतन को एक बार फिर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इस फ़िल्म से जुड़ा एक रोचक पहलू यह भी है फ़िल्म के निर्माण के पहले फ़िल्म अभिनेता अशोक कुमार की निर्माता विमल राय से अनबन हो गई थी और वह किसी भी कीमत पर उनके साथ काम नहीं करना चाहते थे लेकिन वह नूतन ही थी जो हर कीमत में अशोक कुमार को अपना नायक बनाना चाहती थी। नूतन के जोर देने पर अशोक कुमार ने फ़िल्म 'बंदिनी' में काम करना स्वीकार किया था।

🇮🇳 नूतन और उनके नायक--

नूतन ने अपने सिने कैरियर में उस दौर के सभी दिग्गज और नवोदित अभिनेताओं के साथ अभिनय किया। राजकपूर के साथ फ़िल्म 'अनाड़ी' में भोला-भाला प्यार हो या फिर अशोक कुमार के साथ फ़िल्म 'बंदिनी' में संजीदा अभिनय या फिर पेइंग गेस्ट में देवानंद के साथ छैल छबीला रोमांस हो नूतन हर अभिनेता के साथ उसी के रंग में रंग जाती थी। वर्ष 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सरस्वती चंद्र' की अपार सफलता के बाद नूतन #फ़िल्म_इंडस्ट्री की नंबर वन नायिका के रूप मे स्थापित हो गई। वर्ष 1973 में फ़िल्म 'सौदागार' में अमिताभ बच्चन जैसे नवोदित अभिनेता के साथ काम करके नूतन ने एक बार फिर से अपना अविस्मरणीय अभिनय किया। अस्सी के दशक में नूतन ने चरित्र भूमिकाएँ निभानी शुरू कर दी और कई फ़िल्मों में माँ के किरदार को रुपहले पर्दे पर साकार किया। इन फ़िल्मों में 'मेरी जंग', 'नाम' और 'कर्मा' जैसी ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है। फ़िल्म 'मेरी जंग' के लिए अपने सशक्त अभिनय के लिए नूतन सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित की गई। फ़िल्म 'कर्मा' में नूतन ने अभिनय सम्राट #दिलीप_कुमार के साथ काम किया। इस फ़िल्म में नूतन पर फ़िल्माया यह गाना दिल दिया है जाँ भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए.. श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ।

🇮🇳 सम्मान और पुरस्कार--

नूतन की प्रतिभा केवल अभिनय तक ही नहीं सीमित थी वह गीत और ग़ज़ल लिखने में भी काफ़ी दिलचस्पी लिया करती थीं। हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सर्वाधिक फ़िल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त करने का कीर्तिमान नूतन के नाम दर्ज है। नूतन को अपने सिने कैरियर में पाँच बार (सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आँगन की, सीमा, मिलन) फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नूतन को वर्ष 1974 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

🇮🇳 निधन--

लगभग चार दशक तक अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के बीच ख़ास पहचान बनाने वाली यह महान् अभिनेत्री 21 फ़रवरी, 1991 को इस दुनिया से अलविदा कह गई।

साभार: bharatdiscovery.org

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए सर्वाधिक पाँच बार (सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आँगन की, सीमा, मिलन) फ़िल्म फेयर पुरस्कार एवं #पद्मश्री से सम्मानित; हिन्दी सिनेमा की #सुप्रसिद्ध अभिनेत्री #नूतन जी की पुण्यतिथि पर उन्हें सिनेप्रेमियों की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व 🇮🇳🌹🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#Nutan_Samarth_Bahl   #21_February  #Famous #Actresses #nutan

20 फ़रवरी 2024

World Day of Social Justice | 20 February | विश्व सामाजिक न्याय दिवस




🇮🇳 कानून को #न्यायालय की चार दीवारी से बाहर आना होगा। जो व्यक्ति अशिक्षा, आर्थिक अभाव या किसी भी अन्य कारणों से न्यायालय तक नहीं पहुँच पाता है, उसे भी #न्याय मिले इस बात को सभी को मिलकर सुनिश्चित करना है। 🇮🇳

🇮🇳 #विश्व_सामाजिक_न्याय_दिवस  #World_Social_Justice_Day #20 February विश्व में हर वर्ष 20 फरवरी को मनाया जाता है।

🇮🇳 यह दिवस विभिन्न सामाजिक मुद्दों, जैसे– बहिष्कार, बेरोजगारी तथा गरीबी से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है।

🇮🇳 इसके तहत वैश्विक सामाजिक न्याय विकास सम्मेलन आयोजित कराने तथा 24वें महासभा सत्र का आह्वान करने की घोषणा की गयी। इस अवसर पर यह घोषणा की गयी कि 20 फरवरी को प्रत्येक वर्ष विश्व न्याय दिवस मनाया जायेगा। प्रत्येक वर्ष विभिन्न कार्यों एवं क्रियाकलापों का आयोजन किया जायेगा। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि- इस दिवस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गरीबी उन्मूलन के लिए कार्य करना चाहिए। सभी स्थानों पर लोगों के लिए सभ्य काम एवं रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए तभी सामाजिक न्याय संभव है।


🇮🇳 इस अवसर पर विभिन्न संगठनों, जैसे- संयुक्त राष्ट्र एवं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा लोगों से सामाजिक न्याय हेतु अपील जारी की जाती है।

🇮🇳 सामाजिक न्याय का अर्थ है, लिंग, आयु, धर्म, अक्षमता तथा संस्कृति की भावना को भूलकर समान समाज की स्थापना करना। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2007 में इस दिवस की स्थापना की गयी।

🇮🇳 सन 2009 से इस दिवस को पूरे विश्व में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है। रोटी, कपड़ा, मकान, सुरक्षा, चिकित्सा, अशिक्षा, गरीबी, बहिष्कार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने की आवश्यकता को पहचानने के लिए विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाने की शुरूआत की गयी है।

🇮🇳 सी.एम.एस.(#Centers for #Medicare & #Medicaid #Services ) विगत 55 वर्षों से लगातार विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य हेतु #विश्व_एकता व #विश्व_शान्ति का बिगुल बजा रहा है, परन्तु यू.एन.ओ. के ऑफिसियल एन.जी.ओ. का दर्जा मिलने के बाद विश्व पटल पर इसकी प्रतिध्वनि और जोरदार ढंग से सुनाई देगी। सी.एम.एस. की सम्पूर्ण शिक्षा पद्धति का मूल यही है कि सभी को सामाजिक न्याय सहजता से मिल सके, मानवाधिकारों का संरक्षण हो, भावी पीढ़ी को सम्पूर्ण मानव जाति की सेवा के लिए तैयार किया जा सके, यही कारण है सर्वधर्म समभाव, विश्व मानवता की सेवा, विश्व बन्धुत्व व विश्व एकता के सद्प्रयास इस विद्यालय को एक अनूठा रंग प्रदान करते हैं, जिसकी मिसाल शायद ही विश्व में कहीं और मिल सके। 

🇮🇳 कानून को न्यायालय की चार दीवारी से बाहर आना होगा। जो व्यक्ति अशिक्षा, आर्थिक अभाव या किसी भी अन्य कारणों से न्यायालय तक नहीं पहुँच पाता है, उसे भी न्याय मिले इस बात को सभी को मिलकर सुनिश्चित करना है।

साभार: indiaolddays.com

आप सभी को #विश्व_सामाजिक_न्याय_दिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ !

🇮🇳🌹🙏

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#World_Day_of_Social_Justice   #20_February  #social #justice #court

Krantikari Jaydev Kapoor | अमर क्रांतिकारी | जयदेव_कपूर | (24 अक्टूबर, 1908 - 19 सितंबर, 1994)

 


#Krantikari #Jaydev_Kapoor #अमर क्रांतिकारी #जयदेव_कपूर (24 अक्टूबर, 1908 - 19 सितंबर, 1994)

🇮🇳 #जयदेव का जन्म 1908 में दीवाली की पूर्व संध्या पर हरदोई, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता शालिग्राम कपूर आर्य समाज के सदस्य थे। जयदेव ने छोटे महाराज और ठाकुर राम सिंह के संरक्षण में कुश्ती सीखी

🇮🇳 #अंडमान की कुख्यात #कालापानी जेल में नंगे बदन पर रोज कोड़ों की मार झेलते रहे हरदोई के लाल जयदेव, पर कभी उफ्फ तक नहीं की 🇮🇳

🇮🇳 देश की आजादी में कई ऐसे क्रांतिकारियों का योगदान रहा है जिन्होंने इस राष्ट्र को स्वाधीनता के प्रकाश में लाने के लिए अपना पूरा जीवन अंधकार से भरी जेल की तंग कालकोठरियों में गुजार दिया, बावजूद इसके उनकी शहादत इस स्वाधीन राष्ट्र जो उनके पुण्य बलिदानों का प्रतिफल है, में उचित सम्मान पाने के लिए आज संघर्ष कर रही है.  

🇮🇳 #माँ_भारती के पैरों में पड़ी परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ने के उद्देश्य से संघर्ष करने वाले ऐसे ही एक क्रांतिकारी #जयदेव_कपूर जी को हम आज याद कर रहे हैं. जयदेव कपूर उत्तरप्रदेश के #हरदोई के रहने वाले थे. #कानपुर के डीएवी हॉस्टल में रहते हुए वह क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए और जल्द ही उनकी एक टोली में शामिल हो गए. इस दौरान वे #चन्द्रशेखर_आजाद और फिर शहीद-ए-आजम #भगतसिंह के संपर्क में आए.

🇮🇳 8 अप्रैल 1929 को जब सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकने की योजना बनी तो जयदेव कपूर और #शिव_वर्मा ने भगत सिंह और #बटुकेश्वर_दत्त के एंट्री पास का इंतजाम कर उनको असेम्बली में दाखिल करवाया, जिसके बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंका था. सेंट्रल असेम्बली में बम विस्फोट कांड में षडयंत्रकर्ता के तौर पर पकड़े जाने के बाद जयदेव कपूर को #अंडमान की कुख्यात #कालापानी जेल भेज दिया गया. वहाँ सजा काटने के दौरान जयदेव ने देखा कि जेलर भारतीयों को गाली दे रहा है तो उन्होंने उसे ऐसा घूँसा मारा कि उसके दाँत टूट गए.

🇮🇳 इसका नतीजा ये हुआ कि सजा के तौर पर उन्हें प्रतिदिन नंगे बदन पर 30 कोड़े लगाने का फरमान सुनाया गया. इस कठिन सजा को आजादी के इस परवाने ने हँसते हुए झेल लिया. कोड़े को पानी में भिगोकर इतनी जोर से मारा जाता था कि वह जिस जगह पर पड़ता वहाँ की चमड़ी साथ उधेड़ लाता, लेकिन मजाल कि माँ भारती के इस सच्चे सपूत ने दर्द से उफ्फ तक भी की हो. जयदेव कपूर की ये सहनशीलता देख अंग्रेजी अफसर भी दंग रह जाते. अंडमान जेल की सजा के दौरान बदन पर पड़े कोड़ों  के निशान जयदेव जी के शरीर पर ताउम्र बने रहे. 

🇮🇳 जयदेव कपूर भगतसिंह के करीबी मित्रों में से एक थे.  8 अप्रैल 1829 को असेंबली हाल में बम फेंकने से पहले शहीद भगतसिंह ने जयदेव को अपने जूते भेंट किए थे. साथ ही उन्होंने एक पॉकेट घड़ी भी उन्हें दी थी जो महान क्रांतिकारी #शचीन्द्रनाथ_सान्याल ने उन्हें भेंट की थी.  इन्हें देते हुए भगतसिंह से जयदेव  से आजादी की मशाल को जलाए रखने का वचन लिया था. जयदेव कपूर स्वतंत्रता के बाद भी लगभग 2 वर्ष तक जेल में रहे. सन 1949 में जेल से रिहा होकर उन्होंने शादी कर ली. उसके बाद सन 1949 से  एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में वे वंचितों और शोषितों की आवाज बुलंद करते रहे. 19 सितंबर 1994 को 86 वर्ष की आयु में जयदेव कपूर का निधन हो गया। 

साभार: zeenews.india.com

सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकने की योजना के अन्तर्गत सुप्रसिद्ध क्रांतिकारियों भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को एंट्री पास दिलाने की व्यवस्था करने वाले अमर क्रांतिकारी #जयदेव_कपूर जी को शत् शत् नमन !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#Krantikari_Jaydev_Kapoor #freedomfighter  #inspirational_personality

Swami Shivanand | स्वामी शिवानन्द | जन्म- 16 दिसंबर, 1854; मृत्यु- 20 फ़रवरी, 1934




#Swami_Shivanand (16 December, 1854 -20 February, 1934)

🇮🇳 स्वामी शिवानन्द (जन्म- 16 दिसंबर, 1854; मृत्यु- 20 फ़रवरी, 1934) #रामकृष्ण_मिशन के दूसरे संघाध्यक्ष थे। उनका पूर्व नाम '#तारकनाथ_घोषाल' था। उनके शिष्य उन्हें 'महापुरुष महाराज' के नाम से पुकारते थे। स्वामी शिवानन्द हिन्दू आध्यात्मिक नेता और रामकृष्ण परमहंस के प्रत्यक्ष शिष्य थे।

🇮🇳 स्वामी शिवानन्द का जन्म #पश्चिम_बंगाल के #बरसात नामक ग्राम में हुआ था।

🇮🇳 वह #हिन्दू आध्यात्मिक नेता और रामकृष्ण के प्रत्यक्ष शिष्य थे, जो रामकृष्ण मिशन के दूसरे अध्यक्ष बने।

🇮🇳 उनके भक्त उन्हें महापुरुष महाराज (महान आत्मा) के रूप में संदर्भित करते हैं।

🇮🇳 स्वामी शिवानन्द और सुबोधानंद रामकृष्ण के एकमात्र प्रत्यक्ष शिष्य थे। वह एक ब्रह्मज्ञानी थे।

🇮🇳 शिवानन्द जी को #बेलूर_मठ में श्री रामकृष्ण मंदिर की आधारशिला रखने के लिए जाना जाता था, जिसे विजयानंद ने डिजाइन किया था।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 #रामकृष्ण_परमहंस के प्रत्यक्ष शिष्य, #रामकृष्ण_मिशन के दूसरे संघाध्यक्ष #स्वामी_शिवानन्द जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

Sarat Chandra Bose | शरत चन्द्र बोस | जन्म: 6 सितंबर 1889- मृत्यु 20 फरवरी 1950




Sarat Chandra Bose (Born: 6 September 1889- Died 20 February 1950)

🇮🇳 शरत चन्द्र बोस (जन्म: 6 सितंबर 1889- मृत्यु 20 फरवरी 1950)

उनके पिता का #जानकी_नाथ_बोस तथा उनकी माता का नाम #प्रभावती था। 

🇮🇳 नेताजी बोस इतना बड़ा व्यक्तित्व बन गए कि लोग उनके #मेज_दादा की चर्चा ही नहीं करते, जिनकी वजह से नेताजी बोस कैरियर और राष्ट्रीय आंदोलन में इस ऊँचाई तक पहुँच पाए, जिनकी मदद से सुभाष बाबू अपनी जिंदगी की तमाम बाधाओं पर पार पाते रहे. उन शरत चंद्र बोस के बारे में आम युवा से पूछेंगे तो शायद यही बता पाए कि उनके भाई थे, इससे ज्यादा नहीं. आज उनकी पुण्यतिथि है, इस मौके पर #सुभाष_चंद्र_बोस के 'ट्रबल शूटर' शरत चंद्र बोस के बारे में जानिए:  

🇮🇳 शरत चंद्र बोस अपने माता पिता की चौथी संतान और दूसरे बेटे थे, जबकि सुभाष चंद्र बोस उनसे 8 साल छोटे थे. शरत चंद्र बोस पर बंग भंग आंदोलन का काफी प्रभाव पड़ा, 18 साल की उम्र में वो कांग्रेस से जुड़ गए. अपने कॉलेज के ऐसे प्रखर वक्ता बन गया, जिनसे पार पाना मुश्किल था. 1911 से 1914 तक इंगलैंड में पढ़ाई करके लौटे तो कोलकाता हाईकोर्ट में बैरिस्टर बन गए. उस दौर में क्रांतिकारी और राजनीतिक कार्यकर्ता आसानी से जेल जाने के तैयार रहते थे क्योंकि उन्हें पता था कि उनको जल्द शरत बाबू छुड़ा लेंगे और उनके परिवार का ख्याल भी रखेंगे.

🇮🇳 उनका घर 1, वुडबर्न पार्क राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया, जब भी #गाँधीजी या #नेहरू जैसे नेता #कोलकाता आते तो उनके घर ही ठहरते. ऐसे में उनके छोटे भाई सुभाष बाबू को ये माहौल और शरत बाबू जैसा संरक्षक मिला तो उनको देश की दशा और राजनीति को करीब से समझने का मौका मिला और भरपूर आत्मविश्वास भी. जब भी कोई मुश्किल सुभाष बाबू के सामने आती, वो फौरन अपने मेज दादा की शरण में आते और चुटकियों में वो मुश्किल हल हो जाती.

🇮🇳 जब सुभाष चंद्र बोस को प्रेसीडेंसी कॉलेज में एक घटना के बाद प्रिंसिपल ने निष्कासित कर दिया, तो शरत बाबू ने अपने सम्पर्कों से उनका एडमीशन स्कॉटिश चर्च कॉलेज में करवाया और वो कैसे सुभाष बाबू की आर्थिक देखभाल करते थे, उसके बारे में आप सुभाष बाबू के एक पत्र से बखूबी समझते हैं. ये पत्र सुभाष चंद्र बोस ने शरद चंद्र बोस को तब लिखा था, जब वो 1921 में आईसीएस (सिविल सर्विस) की परीक्षा पास करने के बाद इस्तीफा दे रहे थे, इस पत्र में सुभाष बाबू ने लिखा था, "जब मैं आपसे अपने इस्तीफे के विषय में आग्रह कर रहा हूँ तो यहाँ मैं अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कुछ नहीं माँग रहा, बल्कि अपने भाग्यहीन देश के लिए माँग रहा हूँ. मुझे पर खर्च किए गए धन को आपको माँ पर किए गए खर्च के रूप में देखना होगा, बिना प्रतिलाभ की आशा किए हुए." 

🇮🇳 जिस कांग्रेस को बंगाल में खड़ा करने के लिए शरत बाबू ने अपना सबकुछ दाँव पर लगा दिया, इतना समय दिया, अंग्रेजों से झगड़ा मोल लिया, इतना पैसा दिया, उसी कांग्रेस के नेताओं ने जब साजिश करके सुभाष चंद्र बोस को लगातार दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने देने की राह में रोड़े अटकाए, 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस ने गाँधीजी के प्रिय #पट्टाभि_सीतारमैया को हराकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, तो कोई भी उनके साथ नहीं खड़ा था, केवल शरत बाबू खड़े थे.

🇮🇳 तब शरत बाबू ने गाँधीजी को गुस्से में एक #पत्र भी लिख डाला था, "त्रिपुरी में जिन 7 दिनों में मैंने रहकर जो कुछ भी देखा, सुना वह मेरी आँखें खोल देने वाला था. जिन लोगों को जनता खुद आपके द्वारा चुने गए शिष्यों, प्रतिनिधियों के रूप में देखती है, उनमें सत्य और अहिंसा का जो दृश्य मैंने देखा, उसने खुद आपके ही शब्दों में मेरी नासिका में दुर्गन्ध भर दी है. राष्ट्रपति (कांग्रेस अध्यक्ष) के विरुद्ध जो प्रचार उन्होंने किया, वह पूरी तरह से निकृष्ट, दुर्भावना से पूर्ण और प्रतिशोधपूर्ण था, जिसमें सत्य और अहिंसा का पूर्णत: अभाव था. त्रिपुरी में जनता के सामने आपके नाम की कसमें खाने वालों ने अपने स्वार्थ सिद्धि करने के लिए और उसको पीड़ा का अधिकतम शर्मनाक लाभ अर्जित करने के लिए उसे गतिरोध के सिवा कुछ नहीं दिया’’.

🇮🇳 सुभाष बाबू भी उन्हें कम सम्मान नहीं देते थे, जब वियना में उनका एक मुश्किल ऑपरेशन होना था, डॉक्टर ने पूछा कोई संदेश देना चाहते हैं, तो वो मुस्कराए और लिखा, "मेरे देशवासियों के लिए मेरा प्यार और मेरे बड़े भाई के प्रति मेरा आभार." जब 1941 में सुभाष चंद्र बोस ने शरत बाबू की सलाह पर ही भारत छोड़ने का निर्णय लिया तो जापान से उन्हें एक पत्र भेजा और उन्हें आभार व स्नेह लिखा और साथ ही लिखा कि, "ऐसा ही स्नेह मेरी बेटी और पत्नी को भी मिले, जिन्हें पीछे छोड़कर जा रहा हूँ."

🇮🇳 ऐसे रिश्ते थे दोनों भाइयों के, ऐसे में #आजाद_हिंद_फौज के चलते सुभाष बाबू इतने बड़े सूर्य बन गए कि उनके सामने बाकी लोग दीपक लगते हैं. शरत बाबू को भी लोग इसीलिए कम जानते हैं, वरना शरत बाबू ही थे जो हर वो नींव तैयार करते रहे, जिस पर सुभाष चंद्र बोस ने सीढ़ियाँ बनाईं. शरत बाबू अलग-अलग केसों में आजादी की लड़ाई के लिए 8 साल तक जेल में रहे, बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, संविधान सभा में भी चुने गए. जब तक रहे देश और समाज के लिए काम करते रहे.

साभार: zeenews.india.com

🇮🇳 नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई एवं मार्गदर्शक, स्वतन्त्रता सेनानी #शरत_चन्द्र_बोस जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#Sarat_Chandra_Bose #freedomfighter  #inspirational_personality

19 फ़रवरी 2024

Freedom Fighter | Gokulbhai Bhatt | स्वतंत्रता_सेनानी | क्रांतिकारी गोकुलभाई भट्ट | 19 February 1898 – 6 October 1986




#स्वतंत्रता_सेनानी 

#Gokulbhai_Daulatram_Bhatt (19 #February 1898 – 6 #October 1986) was a #freedom_fighter and a #social_worker from #Rajasthan state in #India.

🇮🇳 भारत की आज़ादी के दौरान राजस्थान की देशी रियासतों के लोगों में #राष्ट्रीय_चेतना फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी गोकुलभाई भट्ट की आज 19 फरवरी को जयंती है। गोकुलभाई को ‘राजस्थान का गाँधी’ के नाम से भी पुकारा जाता है। वह एक कुशल वक्ता, कवि, बहुभाषाविद, पत्रकार और लेखक थे। इसके अलावा गोकुलभाई एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। वह भारत की संविधान सभा के सदस्य थे और बॉम्बे राज्य का प्रतिनिधित्व करते थे। गोकुलभाई भट्ट कुछ समय तक सिरोही रियासत के मुख्यमंत्री भी बने थे। उन्होंने राज्य में जल संरक्षण पर काफी जोर दिया और लोगों को जागरूक भी बनाया। ऐसे में इस मौके पर जानते हैं उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…


🇮🇳 गोकुलभाई भट्ट का जन्म 19 फरवरी, 1898 को राजस्थान की तत्कालीन #सिरोही रियासत के #हाथल गॉंव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम गोकुलभाई दौलतराम भट्ट था। उनके पिता #दौलतराम तथा माता #चम्पाबाई सात्विक विचारों वाले थे। उनके पिता बंबई (मुंबई) के व्यवसायी के यहाँ नौकरी करते थे, इस कारण से उनका बचपन बंबई में बीता। उनकी आरंभिक शिक्षा बंबई में ही हुई थी। उन्होंने कृषि विज्ञान में आगे पढ़ाई के लिए यूएसए जाने का विचार किया, लेकिन बाद में वह #गाँधीजी के देश के प्रति समर्पण भाव को देखकर प्रभावित हुए। उन्होंने देश की आजादी और समाज सेवा में अपना जीवन लगा दिया।

🇮🇳 क्रांतिकारी गोकुलभाई भट्ट पर वर्ष 1920 में ‘#असहयोग_आंदोलन’ के दौरान #गॉंधीजी द्वारा की गई घोषणाओं का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार किया और आगे पढ़ने का विचार ही त्याग दिया। वह देश की आज़ादी में कूद पड़े। गोकुलभाई को पहली बार 6 अप्रैल, 1921 को बंबई सरकार ने गिरफ्तार किया। इसके बाद भी उन्होंने गॉंधीजी के हर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। वर्ष 1930 के ‘नमक सत्याग्रह’ के दौरान वह नमक कानून तोड़ने के सिलसिले में गिरफ्तार हुए। गोकुलभाई भट्ट जेल से रिहा होने के बाद भूमिगत रहे और आंदोलन में संलग्न रहे, जिसके कारण उन्हें पुन: गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने वर्ष 1942 में #भारत_छोड़ो_आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और 8 अगस्त, 1944 को बंबई में गिरफ्तार हुए तथा 4 साल जेल में रहे।

🇮🇳 समाज सेवक गोकुलभाई भट्ट ने मुख्यत: #खादी #ग्रामोद्योग, #शराबबंदी, #गोसेवा #प्राकृतिक_चिकित्सा, भूदान-ग्रामदान, ग्राम स्वराज का प्रचार-प्रसार किया। इसके अलावा उनका राजस्थान में #विनोबा_भावे के ‘#भूदान_आंदोलन’ को सफल बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

🇮🇳 गोकुलभाई भट्ट ने 22 जनवरी, 1939 को सिरोही प्रजामंडल की स्थापना की थी। देश की आजादी के बाद उन्होंने राजस्थान के एकीकरण के दौरान सिरोही जिले के विभाजन और माउंट आबू को गुजरात को सौंपने का जमकर विरोध किया। इसके परिणामस्वरूप माउंट आबू राजस्थान का हिस्सा बना। हालांकि, जिले का कुछ हिस्सा गुजरात में सम्मिलित किया गया। 

🇮🇳 गोकुलभाई भट्ट को वर्ष 1971 में भारत सरकार द्वारा देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1982 को उन्हें ‘जमनालाल बजाज’ पुरस्कार से नवाजा गया। आज़ादी के बाद वर्ष 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें पाली संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया था, लेकिन गोकुलभाई को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

🇮🇳 राजस्थानियों में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने वाले गोकुलभाई भट्ट का 6 अक्टूबर, 1986 को निधन हो गया।

साभार: chaltapurza.com

🇮🇳 #पद्मभूषण से सम्मानित; राजस्थान के प्रसिद्ध क्रांतिकारी, एक कुशल वक्ता, #कवि, बहुभाषाविद, #पत्रकार, #लेखक तथा #समाजसेवक #गोकुलभाई_भट्ट जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#Gokulbhai_Bhatt  #freedomfighter  #inspirational_personality

Gopal Krishna Gokhale | Freedom Fighter | गोपाल कृष्ण गोखले |स्वतंत्रता_सेनानी | 9 मई, 1866 - 19 फ़रवरी, 1915




#स्वतंत्रता_सेनानी Gopal Krishna Gokhale

🇮🇳 गोपाल कृष्ण गोखले (जन्म: 9 मई, 1866 ई., कोल्हापुर, महाराष्ट्र; मृत्यु: 19 फ़रवरी, 1915 ई.) अपने समय के अद्वितीय संसदविद और राष्ट्रसेवी थे। यह एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक भी थे। 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम के नौ वर्ष बाद गोखले का जन्म हुआ था। यह वह समय था, जब स्वतंत्रता संग्राम असफल अवश्य हो गया था, किंतु भारत के अधिकांश देशवासियों के हृदय में स्वतंत्रता की आग धधकने लगी थी।

🇮🇳 गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1866 ई. को #महाराष्ट्र में #कोल्हापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता #कृष्णराव_श्रीधर_गोखले एक ग़रीब किंतु स्वाभिमानी ब्राह्मण थे। पिता के असामयिक निधन ने गोपाल कृष्ण को बचपन से ही सहिष्णु और कर्मठ बना दिया था। स्नातक की डिग्री प्राप्त कर गोखले #गोविन्द_रानाडे द्वारा स्थापित 'देक्कन एजुकेशन सोसायटी' के सदस्य बने। बाद में ये महाराष्ट्र के 'सुकरात' कहे जाने वाले गोविन्द रानाडे के शिष्य बन गये। शिक्षा पूरी करने पर गोपालकृष्ण कुछ दिन 'न्यू इंग्लिश हाई स्कूल' में अध्यापक रहे। बाद में पूना के प्रसिद्ध फर्ग्यूसन कॉलेज में इतिहास और अर्थशास्त्र के प्राध्यापक बन गए।

🇮🇳 गोपाल कृष्ण तब तीसरी कक्षा के छात्र थे। अध्यापक ने जब बच्चों के गृहकार्य की कॉपियाँ जाँची, तो गोपाल कृष्ण के अलावा किसी के जवाब सही नहीं थे। उन्होंने गोपाल कृष्ण को जब शाबाशी दी, तो गोपाल कृष्ण की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। सभी हैरान हो उठे। गृहकार्य उन्होंने अपने बड़े भाई से करवाया था। यह एक तरह से उस निष्ठा की शुरुआत थी, जिसके आधार पर गोखले ने आगे चलकर अपने चार सिद्धांतों की घोषणा की-

🔴 सत्य के प्रति अडिगता

🔴 अपनी भूल की सहज स्वीकृति

🔴 लक्ष्य के प्रति निष्ठा

🔴 नैतिक आदर्शों के प्रति आदरभाव

🇮🇳 #बाल_गंगाधर_तिलक से मिलने के बाद गोखले के जीवन को नई दिशा मिल गई। गोखले ने पहली बार कोल्हापुर में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया। सन 1885 में गोखले का भाषण सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए थे, भाषण का विषय था-

अंग्रेजी हुकूमत के अधीन भारत।

🇮🇳 न्यायमूर्ति #महादेव_गोविन्द_रानाडे के संपर्क में आने से गोपाल कृष्ण सार्वजनिक कार्यों में रुचि लेने लगे। उन दिनों पूना की 'सार्वजनिक सभा' एक प्रमुख राजनीतिक संस्था थी। गोखले ने उसके मंत्री के रूप में कार्य किया। इससे उनके सार्वजनिक कार्यों का विस्तार हुआ। कांग्रेस की स्थापना के बाद वे उस संस्था से जुड़ गए। कांग्रेस का 1905 का बनारस अधिवेशन गोखले की ही अध्यक्षता में हुआ था। उन दिनों देश की राजनीति में दो विचारधाराओं का प्राधान्य था। लोकमान्य तिलक तथा #लाला_लाजपत_राय जैसे नेता गरम विचारों के थे। संवैधानिक रीति से देश को स्वशासन की ओर ले जाने में विश्वास रखने वाले गोखले नरम विचारों के माने जाते थे। आपका क्रांति में नहीं, सुधारों में विश्वास था।

🇮🇳 गोखले का राजनीति में पहली बार प्रवेश 1888 ई. में इलाहाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में हुआ। 1897 ई. में दक्षिण शिक्षा समिति के सदस्य के रूप में गोखले और वाचा को इंग्लैण्ड जाकर 'वेल्बी आयोग' के समक्ष गवाही देने को कहा गया। 1902 ई. में गोखले को 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउन्सिल' का सदस्य चुना गया। उन्होंने नमक कर, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में भारतीयों को अधिक स्थान देने के मुद्दे को काउन्सिल में उठाया। उग्रवादी दल ने उनकी संयम की गति की बड़ी आलोचना की। उन्हें प्रायः शिथिल उदारवादी बताया गया। सरकार ने उन्हें कई बार उग्रवादी विचारों वाले व्यक्ति तथा छद्म विद्रोही की संज्ञा दी।

🇮🇳 महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें 'भारत का ग्लेडस्टोन' कहा जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी थे।

🇮🇳 1905 में गोखले ने 'भारत सेवक समाज' (सरवेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी) की स्थापना की, ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इसीलिए इन्होंने सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा लागू करने के लिये सदन में विधेयक भी प्रस्तुत किया था। इसके सदस्यों में कई प्रमुख व्यक्ति थे। उन्हें नाम मात्र के वेतन पर जीवन-भर देश सेवा का व्रत लेना होता था। गोखले ने राजकीय तथा सार्वजनिक कार्यों के लिए 7 बार इंग्लैण्ड की यात्रा की।

🇮🇳 'केसरी' और 'मराठा' अख़बारों के माध्यम से लोकमान्य तिलक जहाँ अंग्रेज़ हुकूमत के विरुद्ध लड़ रहे थे, वहीं 'सुधारक' को गोखले ने अपनी लड़ाई का माध्यम बनाया हुआ था। 'केसरी' की अपेक्षा 'सुधारक' का रूप आक्रामक था। सैनिकों द्वारा बलात्कार का शिकार हुई दो महिलाओं ने जब आत्महत्या कर ली, तो 'सुधारक' ने भारतीयों को कड़ी भाषा में धिक्कारा था-

★ तुम्हें धिक्कार है, जो अपनी माता-बहनों पर होता हुआ अत्याचार चुप्पी साधकर देख रहे हो। इतने निष्क्रिय भाव से तो पशु भी अत्याचार सहन नहीं करते। ★

🇮🇳 इन शब्दों ने भारत में ही नहीं, इंग्लैंड के सभ्य समाज में भी खलबली मचा दी थी। 'सर्वेन्ट ऑफ़ सोसायटी' की स्थापना गोखले द्वारा किया गया महत्त्वपूर्ण कार्य था। इस तरह गोखले ने राजनीति को आध्यात्मिकता के ढाँचे में ढालने का अनूठा कार्य किया। इस सोसाइटी के सदस्यों को ये 7 शपथ ग्रहण करनी होती थीं-

🇮🇳1. वह अपने देश को सर्वोच्च समझेगा और उसकी सेवा में प्राण न्योछावर कर देगा।

🇮🇳2. देश सेवा में व्यक्तिगत लाभ को नहीं देखेगा।

🇮🇳3. प्रत्येक भारतवासी को अपना भाई मानेगा।

🇮🇳4. जाति समुदाय का भेद नहीं मानेगा।

🇮🇳5. सोसाइटी उसके और उसके परिवार के लिए जो धनराशि देगी, वह उससे संतुष्ट रहेगा तथा अधिक कमाने की ओर ध्यान नहीं देगा।

🇮🇳6. पवित्र जीवन बिताएगा। किसी से झगड़ा नहीं करेगा।

🇮🇳7. सोसाइटी का अधिकतम संरक्षण करेगा तथा  सोसाइटी  के उद्देश्यों पर पूरा ध्यान देगा।

साभार: bharatdiscovery.org

🇮🇳 प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक #गोपाल_कृष्ण_गोखले जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏

वन्दे मातरम् 🇮🇳

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व

#आजादी_का_अमृतकाल

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#Gopal_Krishna_Gokhale #freedomfighter  #inspirational_personality

Makar Sankranti मकर संक्रांति

  #मकर_संक्रांति, #Makar_Sankranti, #Importance_of_Makar_Sankranti मकर संक्रांति' का त्यौहार जनवरी यानि पौष के महीने में मनाया जाता है। ...