12 फ़रवरी 2024

महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती | Dayanand Saraswati | (1824-1883)




महान समाज सुधारक, राष्ट्र-निर्माता, प्रकाण्ड विद्वान, सच्चे संन्यासी, ओजस्वी सन्त और स्वराज के संस्थापक #महर्षि_स्वामी_दयानंद_सरस्वती जी की को उनकी जयंती  (12 फरवरी, 1824)  पर विनम्र श्रद्धांजलि !

स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) भारत के महान चिंतक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे। उन्होंने 1875 में एक महान आर्य सुधारक संगठन 'आर्य समाज' की स्थापना की। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। स्वामी जी ने अपने महान ग्रंथ 'सत्यार्थ प्रकाश' में सभी मतों में व्याप्त बुराइयों का खंडन किया है।


🇮🇳🔶 #महर्षि_दयानंद_सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक थे। उनकी पहचान महान समाज सुधारक, राष्ट्र-निर्माता, प्रकाण्ड विद्वान, सच्चे संन्यासी, ओजस्वी सन्त और स्वराज के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं। बाल्यावस्था के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटीं, जिन्होंने उन्हें सच्चे भगवान, मौत और मोक्ष का रहस्य जानने के लिए संन्यासी जीवन जीने को विवश कर दिया। उन्होंने इन रहस्यों को जानने के लिए पूरा जीवन लगा दिया और फिर जो ज्ञान हासिल हुआ, उसे पूरे विश्व को अनेक सूत्रों के रूप में बताया। इन सूत्रों को जानने से पहले स्वामी दयानंद सरस्वती जी के बारे में जानना जरूरी है|


🇮🇳🔶 मूलशंकर से शुरू की सांसारिक यात्रा!

🔶 स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म #गुजरात के #राजकोट जिले के #काठियावाड़ क्षेत्र में #टंकारा गाँव के निकट #मौरवी नामक स्थान पर भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, नवमी, गुरूवार, विक्रमी संवत् 1881 (12 फरवरी, 1824) को साधन संपन्न एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुछ विद्वानों के अनुसार उनके पिता का नाम #अंबाशंकर और माता का नाम #यशोदा_बाई था। उनके बचपन का नाम मूलशंकर था। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। वे तीन भाईयों और दो बहनों में सबसे बड़े थे। उन्होंने #मात्र पाँच वर्ष की आयु में ‘देवनागरी लिपि’ का ज्ञान हासिल कर लिया था और संपूर्ण यजुर्वेद कंठस्थ कर लिया था। बचपन में घटी कुछ घटनाओं नेे उन्हें मूलशंकर से स्वामी दयानंद बनने की राह पर अग्रसित कर दिया। 

🇮🇳🔶 वे मुख्य घटनाएँ, जिन्होंने मूलशंकर से स्वामी दयानंद बनने की राह पर अग्रसित किया!

🔶 पहली घटना: मूल शंकर के पिता शिव के परम भक्त थे। वर्ष 1837 के माघ माह में पिता के कहने पर बालक मूलशंकर ने भगवान शिव का व्रत रखा। तब उनकीं उम्र मात्र 14 वर्ष की थी। जागरण के दौरान अर्द्धरात्रि में उनकी नजर मन्दिर में स्थित शिवलिंग पर पड़ी, जिस पर चुहे उछल कूद मचा रहे थे। एकाएक बालक मूलशंकर के मन में विचार आया कि यदि जिसे हम भगवान मान रहे हैं, वह इन चूहों को भगाने की शक्ति भी नहीं रखता तो वह कैसा भगवान? 

🔶 दूसरी घटना: जब मूलशंकर 16 वर्ष के थे तो उनकीं चौदह वर्षीय छोटी बहन की मौत हो गई। वे अपनी बहन से बेहद प्यार करते थे। पूरा परिवार व सगे-संबंधी विलाप कर रहे थे और मूलशंकर भी गहरे सदमे व शोक में भाव-विहल थे। तभी उनके मनोमस्तिष्क में कई तरह के विचार पैदा हुए। इस संसार में जो भी आया है, उसे एक न एक दिन यहां से जाना ही पड़ेगा, अर्थात् सबकी मृत्यु होनी ही है और मौत जीवन का शाश्वत सत्य है। अगर ऐसा है तो फिर शोक किस बात का? क्या इस शोक और विलाप की समाप्ति का कोई उपाय हो सकता है? 

🔶 तीसरी घटना: जब विक्रमी संवत 1899 में उनके प्रिय चाचा ने उनके सामने बेहद व्यथा एवं पीड़ा के बीच दम तोड़ा। युवा मूलशंकर के मनोमस्तिष्क में अब सिर्फ एक ही विचार बार-बार कौंध रहा था कि जब जीवन मिथ्या है और मृत्यु एकमात्र सत्य है। ऐसे में क्या मृत्यु पर विजय नहीं पाई जा सकती? क्या मृत्यु समय के समस्त दुःखों से बचा नहीं जा सकता? क्या मृत्यु पर विजय पाई जा सकती है? यदि हाँ तो कैसे? इस सवाल का जवाब पाने के लिए युवा मूलशंकर खोजबीन में लग गया।

🇮🇳🔶 यह मिला मृत्यु पर विजय पाने का रहस्य!

🔶 काफी मशक्कत के बाद उन्हें एक आचार्य ने सुझाया कि मृत्यु पर विजय #योग से पाई जा सकती है और ‘योगाभ्यास’ के जरिए ही अमरता को हासिल किया जा सकता है। आचार्य के इस जवाब ने युवा मूलशंकर को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने ‘योगाभ्यास’ के लिए घर छोड़ने का फैसला कर लिया। जब पिता को उनकी इस मंशा का पता चला तो उन्होंने मूलशंकर को मालगुजारी के काम में लगा दिया और इसके साथ उन्हें विवाह-बन्धन में बांधने का फैसला कर लिया ताकि वह विरक्ति से निकलकर मोह-माया में बंध सके। जब उनके विवाह की तैयारियाँ जोरों पर थीं तो मूलशंकर ने घर को त्यागकर सच्चे भगवान, मौत और मोक्ष का रहस्य जानने का दृढ़संकल्प ले लिया। ज्येष्ठ माह, विक्रमी संवत् 1903, तदनुसार मई, 1846 की सांय को उन्होंने घर त्याग दिया। इसके बाद वे अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए दर-दर भटकते रहे। इस दौरान उन्हें समाज में व्याप्त कर्मकाण्डों, अंधविश्वासों, कुरीतियों, पाखण्डों और आडम्बरों से रूबरू होने का पूरा मौका मिला। वे व्यथित हो उठे। 

🇮🇳🔶 मूलशंकर से दयानंद सरस्वती!

🔶 मूलशंकर ने संन्यासी बनने की राह पकड़ ली और अपना नाम बदलकर ‘शुद्ध चौतन्य ब्रह्माचारी’ रख लिया। वे सन् 1847 में घूमते-घूमते नर्मदा तट पर स्थित स्वामी पूर्णानंद सरस्वती के आश्रम में जा पहुँचे और उनसे 24 वर्ष, 2 माह की आयु में ‘संन्यास-व्रत’ की दीक्षा ले ली। ‘संन्यास-दीक्षा’ लेने के उपरांत उन्हें एक नया नाम दिया गया, ‘दयानंद सरस्वती’। अब दयानंद सरस्वती को आश्रम में रहते हुए बड़े-बड़े साधु-सन्तों से अलौकिक ज्ञान प्राप्त करने, वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अन्य धार्मिक साहित्यों के गहन अध्ययन करने, अटूट योगाभ्यास करने और योग के महात्म्य को साक्षात जानने का भरपूर मौका मिला। उन्होंने अपनी योग-साधना के दृष्टिगत विंध्याचल, हरिद्वार, गुजरात, राजस्थान, मथुरा आदि देशभर के अनेक महत्वपूर्ण पवित्र स्थानों की यात्राएं कीं। इसी दौरान जब वे कार्तिक शुदी द्वितीया, संवत् 1917, तदनुसार, बुधवार, 4 नवम्बर, सन् 1860 को यम द्वितीया के दिन मथुरा पहुंचे तो उन्हें परम तपस्वी दंडी स्वामी विरजानंद के दर्शन हुए। वे एक परम सिद्ध संन्यासी थे। पूर्ण विद्या का अध्ययन करने के लिए उन्होंने स्वामी जी को अपना गुरू बना लिया। सन् 1860-63 की तीन वर्षीय कालावधि के दौरान दयानंद सरस्वती ने अपने गुरु की छत्रछाया में संस्कृत, वेद, पाणिनीकृत अष्टाध्यायी आदि का गहन अध्ययन पूर्ण किया।

🇮🇳🔶 गुरु-दक्षिणा !

🔶 पूर्ण विद्याध्ययन के बाद दयानंद सरस्वती ने अपने गुरु की पसन्द को देखते हुए ‘गुरु-दक्षिणा’ में आधा सेर लौंग भेंट करनी चाहीं। इस पर स्वामी विरजानंद ने दयानंद सरस्वती से बतौर गुरु-दक्षिणा, कुछ वचन मांगते हुए कहा कि देश का उपकार करों, सत्य शास्त्रों का उद्धार करो, मतमतान्तरों की अविद्या को मिटाओ और वैदिक धर्म का प्रचार करो। तब स्वामी दयानंद ने अपने गुरु के वचनों की आज्ञापालन का संकल्प लिया और गुरु का आशीर्वाद लेकर आश्रम से निकल पड़े। उन्होंने देशभर का भ्रमण और वेदों के ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेद-शास्त्रों के आधार पर आध्यात्मिक ज्ञान, योग, हवन, तप और ब्रह्मचर्य की शिक्षा प्रदान की। उन्होंने अलौकिक ज्ञान, समृद्धि और मोक्ष का अचूक मंत्र दिया, ‘वेदों की ओर लौटो’। उन्होंने बताया कि ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है। जिस प्रकार तिलों में तेल समाया रहता है, उसी प्रकार भगवान सर्वत्र समाए रहते हैं। आत्मा में ही परमात्मा का निवास है। परमेश्वर ने ही इस संसार (प्रकृति) को बनाया है। उन्होंने ‘मुक्ति’ के रहस्य बताते हुए कहा कि जितने दुःख हैं, उन सबसे छूटकर एक सच्चिदानंदस्वरूप परमेश्वर को प्राप्त होकर सदा आनंद में रहना और फिर जन्म-मरण आदि दुःखसागर में न गिरना, ‘मुक्ति’ है। ‘मुक्ति’ पाने का मुख्य साधन सत्य का आचरण है।

🇮🇳🔶 कालजयी रचना है ‘सत्यार्थ-प्रकाश’!

🔶 स्वामी दयानंद ने देश में रूढ़ियों, कुरीतियों, आडम्बरों, पाखण्डों आदि से मुक्त एक नए स्वर्णिम समाज की स्थापना के उद्देश्य से 10 अप्रैल, सन 1875 (चौत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत 1932) को गिरगांव मुम्बई व पूना में ‘आर्य समाज’ नामक सुधार आन्दोलन की स्थापना की। 24 जून, 1877 (जेष्ठ सुदी 13 संवत् 1934 व आषाढ़ 12) को संक्राति के दिन लाहौर में ‘आर्य समाज’ की स्थापना हुई, जिसमें आर्य समाज के दस प्रमुख सिद्धान्तों को सूत्रबद्ध किया गया। ये सिद्धांत आर्य समाज की शिक्षाओं का मूल निष्कर्ष हैं। उन्होंने सन् 1874 में अपने कालजयी ग्रन्थ ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ की रचना की। वर्ष 1908 में इस ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया। इसके अलावा उन्होंने हिन्दी में ‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका’, ‘संस्कार-विधि’, ‘आर्याभिविनय’ आदि अनेक विशिष्ट ग्रन्थों की रचना की। स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘आर्योद्देश्यरत्नमाला’, ‘गोकरूणानिधि’, ‘व्यवाहरभानू’ ‘पंचमहायज्ञविधि’, ‘भ्रमोच्छेदल’, ‘भ्रान्तिनिवारण’ आदि अनेक महान ग्रन्थों की रचना की। विद्वानों के अनुसार, कुल मिलाकर उन्होंने 60 पुस्तकें, 14 संग्रह, 6 वेदांग, अष्टाध्यायी टीका, अनके लेख लिखे। स्वामी दयानंद सरस्वती के तप, योग, साधना, वैदिक प्रचार, समाजोद्धार और ज्ञान का लोहा बड़े-बड़े विद्वानों और समाजसेवियों ने माना।

--(राजेश कश्यप) | स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक)

Source: prabhasakshi.com

महान समाज सुधारक, राष्ट्र-निर्माता, प्रकाण्ड विद्वान, सच्चे संन्यासी, ओजस्वी सन्त और स्वराज के संस्थापक #महर्षि_स्वामी_दयानंद_सरस्वती जी की को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि !





साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #Maharishi_Swami_Dayanand_Saraswati #Arya_Samaj #social_reformer #Satyarth_Prakash 

11 फ़रवरी 2024

Scam of Rs 3250 crore | 3250 रु. करोड़ का घोटाला होगा और “गिरफ़्तारी” भी नहीं हो सकती ?

 



3250 करोड़ का घोटाला होगा  और “गिरफ़्तारी” भी नहीं हो सकती,

क्यों न माना जाए अदालत में “न्यौछावर” चल रही है -

“बरी ही कर दीजिए कोचरों को फिर” #चंदा कोचर 


#ICICI बैंक की पूर्व #CEO और #MD #चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर के 3250 करोड़ के #Videocon_Loan #Fraud #Case में बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस रेवती मोहिते खेरे और जस्टिस पीके चह्वाण ने पहले 9 जनवरी, 2023 को दोनों अंतरिम जमानत देते हुए #CBI को फटकार लगाईं कि उनकी गिरफ़्तारी कानून के प्रावधानों के अनुरूप नहीं की गई - गिरफतारी का आधार केवल जांच में “असहयोग एवं पूरी तरह जानकारी न देना बताया गया” जबकि यह गिरफ़्तारी का पर्याप्त कारण नहीं माना जा सकता -


अब परसों 6 फरवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस NR Borkar की पीठ ने जनवरी, 2023 के अंतरिम जमानत के आदेश की पुष्टि कर दी और कहा कि कोचर दंपति की गिरफ़्तारी CRPC के section 41 A और section 46 के अनुपालन न करने की वजह से गैर कानूनी थी -


CRPC का section 41 पुलिस के सामने पेश होने के नोटिस देने की बात करता है और section 46 वर्णन करता है गिरफ़्तारी किस तरह की जाए - यानी इन दो छोटे छोटे तकनीकी मुद्दों पर पहले हाई कोर्ट के 2 जजों ने जमानत दे दी और अब अन्य 2 जजों ने सवा साल लगा दिया उस आदेश की पुष्टि करने के लिए जिसकी मेरे विचार में कोई आवश्यकता थी ही नहीं -


पहले 9 जनवरी को कोचर दंपति को जमानत दी गई थी हाई कोर्ट से और उसके बाद 21 जनवरी, 2023 को Videocon के मालिक वेणुगोपाल धूत को भी जमानत दे दी गई थी - 


लेकिन अचरज की बात है कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ ने CBI से 11 अक्टूबर, 2023 को इस बात के लिए नाराज़गी जताई थी कि वह (CBI) कोचर दंपति की अंतरिम जमानत को बार बार बढ़ाने का विरोध क्यों नहीं कर रही जबकि CBI ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की हुई थी - इसका मतलब यह भी निकलता है कि सुप्रीम कोर्ट की नज़र में एक तरह कोचर दंपति को अंतरिम जमानत देना गलत था जबकि हाई कोर्ट एक के बाद एक फैसले में कोचर दंपति को राहत दे रहा है -


इतने बड़े घोटाले को भी लगता है बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक तरह दबाने की कोशिश की है - 3250 करोड़ रुपए की रकम कोई छोटी रकम नहीं होती जो Technical Issues पर हाई कोर्ट के जज आरोपियों की गिरफ़्तारी भी रोकने के लिए आमादा हो गए - Technicalities में कमी रह गई, तो उन्हें पूरा करने के लिए कहा जा सकता है न कि गिरफ़्तारी को ही अवैध बता दिया जाये -


Any person of prudent mind can reach at a conclusion that some corrupt practices are going on in the high court to protect the culprits - यदि कोई समझे कि बड़े पैमाने पर हाई कोर्ट में “न्यौछावर” चल रही है तो कुछ गलत नहीं होगा - 3250 करोड़ के मामले में कुछ भी हो सकता है -


कोचर दंपति के वकील ने अपनी दलील में कहा कि वह FIR रद्द करने की मांग नहीं कर रहे, अभी वह केवल गिरफ्तारी को अवैध कह रहे हैं - कल को हाई कोर्ट के जज कोई नया Technical Ground तलाश कर सारा केस ही ख़त्म करने के आदेश दे सकते हैं - 


जिस तरह कोचर दंपति का यह “fraud case” बॉम्बे हाई कोर्ट डील कर रहा है, वह निंदनीय है - सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वह तुरंत संज्ञान ले कर उन सभी आरोपियों की जमानत खारिज करे जिन्होंने जनता के पैसे को लूटा है - अदालत इस तरह प्रधानमंत्री मोदी के भ्रष्टाचार पर उठाए जा रहे क़दमों में रोड़े बिछाने का काम न करे -

"लेखक के निजी विचार हैं "



लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 11/02/2024 

#scam #ICICI_Bank #बैंक_घोटाला #scam_3250_crore #arrest #prime_ministers   #dispute  #pm_modi #cbi #fraud #CJI #court #videocon


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,




Haldwani - हल्द्वानी : गांधी नेहरू के सपनों का भारत दिखाई दे रहा आज


 

गांधी नेहरू के सपनों का भारत  दिखाई दे रहा आज -हल्द्वानी के असली अपराधी तो 

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हैं -एक बार फिर चंद्रचूड़ & Co खड़ी हुई  दंगाइयों के साथ -

जो हल्द्वानी में हुआ वह गांधी नेहरू के सपने थे क्योंकि ऐसे ही दिन भारत में लाने के लिए दोनों ने पाकिस्तान बनने के बाद भी मुसलमानों को जबरन भारत में रखा था - जो मुस्लिमों ने हल्द्वानी में दिखाया वह कोई नई बात नहीं है और ऐसा कुछ दिन पहले हरियाणा के मेवात में भी हुआ, उसके कुछ दिन पहले लखनऊ और दिल्ली में किया गया जब CAA के विरोध में आग लगाई गई - 

यह सब कांग्रेस की मोहब्बत की दुकान के व्यापार का हिस्सा है जब देश के किसी भी भाग में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ा जा रहा है - कुछ दिन पहले मणिपुर को भी कांग्रेस ने आग लगाईं थी - 

गांधी नेहरू दोनों की खुराफाती खोपड़ी ने देश के आज़ाद होते ही दूसरे विभाजन की तैयारी की भूमिका बना दी थी और इसलिए मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोक दिया - आज वे ही देश की सत्ता को चुनौती दे रहे हैं 

लेकिन ऐसे आतताइयों को हिम्मत देने वाला तो सुप्रीम कोर्ट है जिसके न्यायाधीश उनके साथ खड़े रहते हैं - सिब्बल, प्रशांत भूषण और अन्य फर्जी सेकुलर वकील सुप्रीम कोर्ट के जजों के हैंडल चलाते हैं जिसकी वजह से आज देश में हर जगह सरकारी जमीन पर कब्जे हो रखे हैं - लखनऊ के CAA दंगों के 274 आरोपियों से नुक़सान की भरपाई के नोटिस चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश चुनाव के दूसरे चरण के दिन वापस करने के आदेश दिए थे और एक तरह से दंगाइयों के सरकारी संपत्ति को आग लगाने को सही बता दिया था -

पिछले वर्ष हल्द्वानी के बनफूलपुरा में दिसंबर, 2022 के अवैध कब्जे को हटाने के आदेश पर प्रशांत भूषण के Mention करने पर CJI चंद्रचूड़, जस्टिस SA Nazeer और जस्टिस PS Narsimha की बेंच ने 5 जनवरी, 2023 को स्टे कर दिया और 7 फरवरी, 2023  की तारीख लगा दी - 

उसी दिन की खबर में बताया गया था कि जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जे को हटाने के नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा है कि हाई कोर्ट का आदेश पर जिस तरह लोगों को प्रशासन हटाने की कोशिश कर रहा है, वह गलत है, उनके पुनर्वास की व्यवस्था होनी चाहिए - मानवता के आधार पर यह जरूरी है क्योंकि दावा किया गया है कि वे लोग वहां 60 - 70 वर्ष से रह रहे हैं –

अब अंजाम देख लीजिए मीलार्ड के लचर आदेशों का - इन आदेशों ने क्षेत्र के मुसलमानों को एक वर्ष में इतना सशक्त होने का मौका दे दिया कि ठीक एक साल बाद 8 फरवरी, 2024 को पूरे क्षेत्र को आग के हवाले कर दिया - जजों के केवल यह देखा कि जो लोग हटाए जाने हैं वे अधिकांश मुस्लिम हैं मगर उन नेत्रहीन जजों ने यह नहीं देखा कि वे लोग कहां से आए हैं  क्योंकि इनमें अधिकांश बांग्लादेशी और रोहिंग्या थे -

पुलिस बल पर इतना भयंकर हमला करने वाले देश के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं  लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट के बेशर्म जज तुरंत स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई की जरूरत नहीं समझ रहे और हाई कोर्ट भी 14 फरवरी तय किए बैठा है तो उसके पहले सोता ही रहेगा -

मीलॉर्ड कभी अपराध के शिकार नहीं होते, कभी उनके रिश्तेदार आतंकी हमले में नहीं मारे गए और इसलिए आतंकियों की फांसी की सजा रोक देते हैं, कभी इनकी बच्चियों का बलात्कार नहीं होता और इसलिए every sinner has a future कह कर अपराधी की सजा कम कर देते हैं - देश भर में जमीनों पर बलात कब्जे होते हैं लेकिन मीलॉर्ड अपने महलों में मस्त रहते हैं और इसलिए वे उन्हें हटाने के लिए “मानवीय दृष्टिकोण” देखते हैं 

दर्द के अहसास के लिए एक दिन मीलॉर्ड और उनके परिवार को  भी कुदरत की आग में झुलसना जरूरी है | 

"लेखक के निजी विचार हैं "



लेखक : सुभाष चन्द्र | “मैं वंशज श्री राम का” 11/02/2024 

#haldwani_violence  #prime_ministers  #Nazool_land #dispute  #demolition #gandhi  #nehru #pm_modi #caa #nrc #CJI #court 


सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

Notice: There is no guarantee of authenticity or reliability of the information/content/calculations given here. This information has been compiled from various mediums for information and has been sent to you along with the personal views of the author. Our aim is only to provide information, readers should take it as information only. Apart from this, the responsibility of any kind will be of the reader himself who takes the decision. We or our associates are not responsible for this in any way. Thank you. ,



प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर क्रांतिकारी तिलका मांझी | First Freedom Fighter Veer Tilka Manjhi


 


🇮🇳#तिलका_माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को गुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी,  वीर क्रांतिकारी तिलका माँझी_की_शौर्यगाथा

🇮🇳अंग्रेजों और वनवासियों के बीच लगातार हो रहे संघर्ष ने तिलका माँझी को क्रांतिकारी बनाया| 

🇮🇳 जन्म: 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में #तिलकपुर नामक गाँव में एक #संथाल परिवार में

🇮🇳बलिदान: 13 जनवरी, 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई थी। 🇮🇳

🇮🇳 राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को  जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करते थे तिलका माँझी । 🇮🇳

🇮🇳 साल 1857 में मंगल पांडे की बन्दूक से निकली गोली ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ विद्रोह का आगाज़ किया। इस विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला विद्रोह माना जाता है और #मंगल_पांडे को प्रथम क्रांतिकारी।

🇮🇳 हालांकि, 1857 की क्रांति से लगभग 80 साल पहले बिहार के जंगलों से अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ़ जंग छिड़ चुकी थी। इस जंग की चिंगारी फूँकी थी एक आदिवासी नायक, #तिलका_माँझी ने, जो असल मायनों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी थे।

🇮🇳 भले ही आपको हमारे इतिहास में तिलका माँझी के योगदान का कोई ख़ास उल्लेख न मिले, पर समय-समय पर कई लेखकों और इतिहासकारों ने उन्हें ‘प्रथम स्वतंत्रता सेनानी’ होने का सम्मान दिया है। महान लेखिका #महाश्वेता_देवी ने तिलका माँझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास ‘शालगिरर डाके’ की रचना की। एक और हिंदी उपन्यासकार #राकेश_कुमार_सिंह ने अपने उपन्यास ‘हुल पहाड़िया’ में तिलका माँझी के संघर्ष को बताया है।

🇮🇳 आज द बेटर इंडिया के साथ पढ़िये तिलका माँझी उर्फ़ #जबरा_पहाड़िया के विद्रोह और बलिदान की अनसुनी कहानी!

🇮🇳 तिलका माँझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में #तिलकपुर नामक गाँव में एक #संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम #सुंदरा_मुर्मू था। वैसे उनका वास्तविक नाम #जबरा_पहाड़िया ही था। तिलका माँझी नाम तो उन्हें ब्रिटिश सरकार ने दिया था।

🇮🇳 पहाड़िया भाषा में ‘तिलका’ का अर्थ है गुस्सैल और लाल-लाल आँखों वाला व्यक्ति। साथ ही वे ग्राम प्रधान थे और पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को माँझी कहकर पुकारने की प्रथा है। तिलका नाम उन्हें अंग्रेज़ों ने दिया। अंग्रेज़ों ने जबरा पहाड़िया को खूंखार डाकू और गुस्सैल (तिलका) माँझी (समुदाय प्रमुख) कहा। ब्रिटिशकालीन दस्तावेज़ों में भी ‘जबरा पहाड़िया’ का नाम मौजूद है पर ‘तिलका’ का कहीं उल्लेख नहीं है।

🇮🇳 तिलका ने हमेशा से ही अपने जंगलों को लुटते और अपने लोगों पर अत्याचार होते हुए देखा था। गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासकों ने कब्ज़ा कर रखा था। आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई अक्सर अंग्रेज़ी सत्ता से रहती थी, लेकिन पर्वतीय जमींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का साथ देता था।

🇮🇳 धीरे-धीरे इसके विरुद्ध तिलका आवाज़ उठाने लगे। उन्होंने अन्याय और गुलामी के खिलाफ़ जंग छेड़ी। तिलका माँझी #राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए भागलपुर में स्थानीय लोगों को सभाओं में संबोधित करते थे। #जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोगों को देश के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करते थे।

🇮🇳 साल 1770 में जब भीषण अकाल पड़ा, तो तिलका ने अंग्रेज़ी शासन का खज़ाना लूटकर आम गरीब लोगों में बाँट दिया। उनके इन नेक कार्यों और विद्रोह की ज्वाला से और भी आदिवासी उनसे जुड़ गये। इसी के साथ शुरू हुआ उनका #संथाल_हुल यानी कि आदिवासियों का विद्रोह। उन्होंने अंग्रेज़ों और उनके चापलूस सामंतों पर लगातार हमले किए और हर बार तिलका माँझी की जीत हुई।

🇮🇳 साल 1784 में उन्होंने भागलपुर पर हमला किया और 13 जनवरी 1784 में ताड़ के पेड़ पर चढ़कर घोड़े पर सवार अंग्रेज़ कलेक्टर ‘अगस्टस क्लीवलैंड’ को अपने जहरीले तीर का निशाना बनाया और मार गिराया। कलेक्टर की मौत से पूरी ब्रिटिश सरकार सदमे में थी। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जंगलों में रहने वाला कोई आम-सा आदिवासी ऐसी हिमाकत कर सकता है।

🇮🇳 साल 1771 से 1784 तक जंगल के इस बेटे ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबा संघर्ष किया। उन्होंने कभी भी समर्पण नहीं किया, न कभी झुके और न ही डरे।

🇮🇳 अंग्रेज़ी सेना ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया, लेकिन वे तिलका को नहीं पकड़ पाए। ऐसे में, उन्होंने अपनी सबसे पुरानी नीति, ‘फूट डालो और राज करो’ से काम लिया। ब्रिटिश हुक्मरानों ने उनके अपने समुदाय के लोगों को भड़काना और ललचाना शुरू कर दिया। उनका यह फ़रेब रंग लाया और तिलका के समुदाय से ही एक गद्दार ने उनके बारे में सूचना अंग्रेज़ों तक पहुंचाई।

🇮🇳 सूचना मिलते ही, रात के अँधेरे में अंग्रेज़ सेनापति आयरकूट ने तिलका के ठिकाने पर हमला कर दिया। लेकिन किसी तरह वे बच निकले और उन्होंने पहाड़ियों में शरण लेकर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ छापेमारी जारी रखी। ऐसे में अंग्रेज़ों ने पहाड़ों की घेराबंदी करके उन तक पहुँचने वाली तमाम सहायता रोक दी।

🇮🇳 इसकी वजह से तिलका माँझी को अन्न और पानी के अभाव में पहाड़ों से निकल कर लड़ना पड़ा और एक दिन वह पकड़े गए। कहा जाता है कि तिलका माँझी को चार घोड़ों से घसीट कर भागलपुर ले जाया गया। 13 जनवरी 1785 को उन्हें एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई थी।

🇮🇳 जिस समय तिलका माँझी ने अपने प्राणों की आहुति दी, उस समय मंगल पांडे का जन्म भी नहीं हुआ था। ब्रिटिश सरकार को लगा कि तिलका का ऐसा हाल देखकर कोई भी भारतीय फिर से उनके खिलाफ़ आवाज़ उठाने की कोशिश भी नहीं करेगा। पर उन्हें यह कहाँ पता था कि बिहार-झारखंड के पहाड़ों और जंगलों से शुरू हुआ यह संग्राम, ब्रिटिश राज को देश से उखाड़ कर ही थमेगा।

🇮🇳 तिलका के बाद भी न जाने कितने आज़ादी के दीवाने हँसते-हँसते अपनी भारत माँ के लिए अपनी जान न्योछावर कर गये। आज़ादी की इस लड़ाई में अनगिनत शहीद हुए, पर इन सब शहीदों की गिनती जबरा पहाड़िया उर्फ़ तिलका माँझी से ही शुरू होती है।

🇮🇳 तिलका माँझी आदिवासियों की स्मृतियों और उनके गीतों में हमेशा ज़िंदा रहे। न जाने कितने ही आदिवासी लड़ाके तिलका के गीत गाते हुए फाँसी के फंदे पर चढ़ गए। अनेक गीतों तथा कविताओं में तिलका माँझी को विभिन्न रूपों में याद किया जाता है-

तुम पर कोडों की बरसात हुई, तुम घोड़ों में बाँधकर घसीटे गए

फिर भी तुम्हें मारा नहीं जा सका, तुम भागलपुर में सरेआम

फाँसी पर लटका दिए गए, फिर भी डरते रहे ज़मींदार और अंग्रेज़

तुम्हारी तिलका (गुस्सैल) आँखों से, मर कर भी तुम मारे नहीं जा सके

तिलका माँझी, मंगल पांडेय नहीं,

तुम आधुनिक भारत के पहले विद्रोही थे

भारत माँ के इस सपूत को सादर नमन!

🇮🇳 भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पहले बलिदानी आदिविद्रोही #बाबा_तिलका_माँझी (जबरा पहाड़िया) जी की जयंती पर उन्हें कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से कोटि-कोटि नमन एवं हार्दिक श्रद्धांजलि !

🇮🇳💐🙏 🇮🇳 जय_मातृभूमि 🇮🇳 #प्रेरणादायी_व्यक्तित्व #आजादी_का_अमृतकाल #वन्दे_मातरम् 🇮🇳

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

Source: thebetterindia

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #स्वतंत्रता सेनानी #क्रांतिकारी #Freedom_Fighter #tilkamanjhi

10 फ़रवरी 2024

यूपी के महाराणा प्रताप | क्रांतिकारी राणा बेनी माधव सिंह | Rana Beni Madhav Singh




🇮🇳 बैसवाड़े का क्रांतिकारी रणबांकुरा राणा बेनी माधव 

🇮🇳 आओ बनाएँ उन क्रांतिकारियों के #सपनों_का_भारत, जिनके #संघर्ष और #बलिदान का ऋण आज तक हम पर है 🇮🇳

🇮🇳🌹🙏

🇮🇳 आजादी का वो सिपाही जिसके डर से अंग्रंजों ने उनके नाम का गाना ही बना डाला था. बात है 1857 के गदर की #बहराइच में जंग हारने के बाद अंग्रेजों ने राणा बेनी माधव के नाम का गाना तक बना डाला था.और गोरे अंग्रेज जंगलों में मौत के डर से जोर जोर से वो गाना गाया करते थे. हॉउ आई वॉन द विक्टोरिया क्रॉस डॉट टीएच डॉट कावानघ के पेज नंबर 216 पर उस गाने को छापा  गया...'where have you been to all the day beni madho beni madho' राणा बेनी माधव ने 18 महीने तक #रायबरेली को अंग्रेजों से स्वाधीन रखा था.

🇮🇳 रायबरेली जिला अंग्रेजों द्वारा 1858 में बनाया गया था अपने मुख्यालय शहर के बाद नामित किया था। परंपरा यह है कि शहर भरो द्वारा स्थापित किया गया था जो #भरौली या #बरौली के नाम से जानी जाती थी जो कालांतर में परिवर्तित होकर बरेली हो गयी ।उपसर्ग ‘राय’ का सम्बन्ध कायस्थ जो समय के एक अवधि के लिए शहर के स्वामी थे उपाधि के तौर पर ‘राय’ शीर्षक का प्रतिनिधित्व करता है।

🇮🇳 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुवात थी और जिला किसी भी अन्य स्थान के लोगों से पीछे नहीं था। फिर यहाँ जन गिरफ्तारी, सामूहिक जुर्माना, लाठी भांजना और पुलिस फायरिंग की गई थी। सरेनी में उत्तेजित भीड़ पर पुलिस ने गोलीबारी की जिसमे कई लोग शहीद हो गए और कई अपंग हो गए। इस जिले के लोग उत्साहपूर्वक व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया और बड़े पैमाने में गिरफ्तारी दीं जिसने विदेशी जड़ों को हिलाकर रख दिया।

🇮🇳 13वीं सदी के प्रारंभ में रायबरेली पर भरो का शासन था जिनको राजपूतों और कुछ मामलों में कुछ मुस्लिम उपनिवेशवादियों द्वारा विस्थापित कर दिया गया था| जिले के दक्षिण पश्चिमी भाग पर बैस राजपूतों द्वारा कब्जा किया गया था। कानपुर और अमेठी वाले, एवं अन्य राजपूत कुलों ने खुद को क्रमशः उत्तर पूर्व और पूर्व में स्थापित किया था | दिल्ली के सुल्तानों के शासन के दौरान लगभग पूरा पथ नाममात्र उनके राज्य का एक हिस्सा था।

🇮🇳 अकबर के शासनकाल के दौरान जिले द्वारा कवर क्षेत्र अवध और लखनऊ के सिरकार्स के बीच इलाहाबाद के सूबे जो जिले का बड़ा हिस्सा के रूप में शामिल किया गया। मानिकपुर के सिरकार्स का छेत्र जनपद के बड़े भाग में जो की वर्तमान में लखनऊ जिले के मोहनलाल गंज परगना उत्तर पश्चिम पर दक्षिण में गंगा और उत्तर पूर्व पर परगना इन्हौना लखनऊ. इन्हौना के परगना अवध के सिरकार्स में उस नाम के एक महल के लिए समतुल्य था । सरेनी, खिरो परगना और रायबरेली के परगना के पश्चिमी भाग को लखनऊ के सिरकार्स का हिस्सा बनाया। 1762 में, मानिकपुर के सिरकार्स अवध के क्षेत्र में शामिल किया गया था और चकल्दार के तहत रखा गया था।

🇮🇳 रायबरेली में आजादी की अनेकों गाथाएँ हैं। #उन्नाव के बैसवारा ताल्लुक के राजा राना बेनी माधव सिंह ने रायबरेली के एक बड़े हिस्से में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाई थी। अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले राजा बेनी माधव रायबरेली जिले के लिए महानायक बने। सन् 1857 की क्रांति  के दौरान जनपद रायबरेली में बेनी माधव ने 18 महीने तक जिले को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराया था।

🇮🇳 रायबरेली, उन्नाव और लखनऊ में अंग्रेजों की दरिंदगी का सामना करने के लिए बैसवाडा के राणा बेनीमाधव ने हजारों किसानों, मजदूरों को जोड़ कर क्रांति की जो मशाल जलाई उससे अंग्रेजों के दंभ को चूरचूर कर दिया गया। अनेक घेराबंदी के बाद भी फिंरगी बेनी माधव को नहीं पा सके। #शंकरपुर के शासक राजा बेनी माधव प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख योद्धाओं में से एक बने। अवध क्षेत्र के ह्रदय स्थल रायबरेली में 18 महीने तक अपनी सत्ता बनाने वाले बेनी माधव ने अंग्रेजों के खिलाफ जो गुरिल्ला युद्ध छेड़ा वह किसी मिशाल से कम नही है।

🇮🇳 कंपनी सरकार को हमेशा चकमा देने वाले राणा को अंग्रेज कभी पकड़ नहीं सके। उनके निधन को लेकर भी मतभेद है। इतिहास में कई प्रसंगों से पता चलता है कि राणा नेपाल चले गए थे और वहां उनका सामना अंग्रेजों के साथी राणा जंग बहादुर से भयंकर युद्ध हुआ। माना जाता है कि इस युद्ध में राणा शहीद हो गए।इस घटना का उल्लेख इतिहासकार रॉबर्ट मार्टिन ने किया है और इसकी पुष्टि हावर्ड रसेल के 21 जनवरी 1860 में लिखे एक पत्र से भी होती है। 

🇮🇳 ‘बैसवाड़ा - एक ऐतिहासिक अनुशीलन’ में लाल अमरेंद्र सिंह ने लिखा है, ‘राणा 223 गांवों के मालिक थे। 1856 में अंग्रेज़ों ने 116 गांव छीन लिए थे। वह लखनऊ के युद्ध में तीन बार लड़े। राणा ने 22 महीने में 20 युद्धों में हिस्सा लिया। 30 हज़ार की सेना दो साल तक अपने खर्चे पर चलाई। 24 नवंबर के अंतिम युद्ध के बाद राणा बेनी नेपाल चले गए थे। वहां हथियार बेचकर पेट भरा ओर चार युद्ध भी लड़े। अंतिम युद्ध लड़ने पहले पांच-छह दिन तक भूखे रहे थे। राणा के भाई जुगराज सिंह को पकड़ लिया गया था और चारों किले ध्वस्त कर दिए गए थे। बैसवाड़े के लोग मानते हैं कि राणा ने एक संन्यासी के रूप मं 123 साल की उम्र में गंगा तट पर अंतिम सांस ली थी।’

लेकिन आज भी वह लोककला, संस्कृति और लोक गायन के माध्यम से लोगों के मन मस्तिष्क में जीवंत हैं।


राणा बेनी माधव सिंह जी जैसे अनगिनत परिचित-अपरिचित क्रांतिकारियों को कोटि-कोटि नमन !

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वन्दे मातरम् 🇮🇳

साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

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क्रांतिकारी डॉ. गयाप्रसाद कटियार (Freedom Fighter Dr. Gaya Prasad Katiyar ) (20 जून 1900 -10 फरवरी 1993)

 



क्रांतिकारी डॉ. गयाप्रसाद कटियार (Freedom Fighter Dr. Gaya Prasad Katiyar ) (20 जून 1900 -10 फरवरी 1993) भारत के प्रखर क्रांतिकारी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर की बिल्हौर तहसील के खजुरी ख़ुर्द गाँव में 20 जून सन् 1900 को हुआ था। 

डॉ. गया प्रसाद कटियार के दादा #महादीन_कटियार ने 1857 की क्रांति में हिस्सा लिया था। दादा की कहानियां सुनकर डॉ. गयाप्रसाद के अंदर भी अंग्रेजों के प्रति नफरत भर गई थी।

 उन्होंने 1921 के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया लेकिन बाद में गणेशशंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये जिनके अख़बार 'प्रताप' में भगत सिंह भी छिपकर काम करते थे | इसके साथ ही वे  हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (H.S.R.A.) में सम्मिलित हो गये। 

इस प्रकार वे चन्द्रशेखर आजाद और सरदार भगत सिंह आदि देश के शीर्षस्थ क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आ गये | 

🇮🇳 शहीद-ए-आजम भगत सिंह और #बटुकेश्वर_दत्त ने भरी असेंबली में बम फेंक कर अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं उन्हें ये बम अपने क्रांतिकारी साथी डॉ. गया प्रसाद कटियार की देखरेख में बनाए थे।

🇮🇳 #लाला_लाजपत_राय की हत्या के जिम्मेदार अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स  वध की योजना, सिक्ख भगतसिंह के केश व दाढी काटने, H.S.R.A. के गुप्त केंद्रीय कार्यालयों का संचालन करने सहित दिल्ली की पार्लियामेंट में फेंके गए बम निर्माण आदि कार्यों में अपना सक्रिय रुप से योगदान देते हुए अंततः 15 मई 1929 को सहारनपुर बम फैक्ट्री का संचालन करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया। और उन्हें देश के सुप्रसिद्ध लाहौर षड्यंत्र केस में दिनांक 7 अकटूबर 1930 को आजीवन कारावास की सजा दी गई | 

लाहौर की जेल में उन्होंने अन्य बन्दियों के साथ 63 दिन की भूख हड़ताल की। बाद में उन्हें अण्डमान की सेल्यूलर जेल [ काला पानी ] ले जाया गया। वहाँ भी उन्होने 46 दिन भूख हड़ताल की। अन्तत: लगातार 17 वर्षों के लंबे जेल जीवन में कई अमानवीय यातनाओं को सहने के बाद वे बिना शर्त जेल से  21 फरवरी 1946 को रिहा किए गए। स्वतंत्र भारत में भी उन्हें शोषित-पीड़ित जनता के लिए संघर्षरत होने के कारण 2 वर्षों तक जेल में रहना पड़ा| 

10 फरवरी 1993 को वे इस दुनिया से विदा हो गए।

उनकी याद में केंद्र सरकार ने 26 अप्रैल 2016 को पाँच रुपये का डाक टिकट भी जारी किया था।

🇮🇳 पराधीन भारत में #कालेपानी की सज़ा सहित कुल 17 वर्ष क़ैद तथा स्वाधीन भारत में 2 वर्ष का जेल जीवन व्यतीत करने वाले, क्रांतिकारी भगत सिंह जी एवं महावीर सिंह राठौर जी के क्रांतिकारी साथी #डॉ_गया_प्रसाद_कटियार जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि !

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साभार: चन्द्र कांत  (Chandra Kant) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष - मातृभूमि सेवा संस्था

#प्रेरणादायी_व्यक्तित्व  #आजादी_का_अमृतकाल #स्वतंत्रता सेनानी #क्रांतिकारी #Freedom_Fighter #Dr_Gaya_Prasad_Katiyar 


गैरों को सम्मान केवल मोदी जैसा राजनेता (Statesman) ही दे सकता है | Bharat Ratna | PM Modi |

 



कांग्रेस ने जिन अपनों को गैर” बनाया, उन्हें मोदी ने “अपनाया” 

जो जन्म से भारतीय नहीं,  वो मोदी की जन्म की जाति बता रहा 


पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और नरसिम्हा राव को आज भारत रत्न दे कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया कि वह सही मायने में आज की राजनीति में सच्चे राजनेता (Statesman) हैं क्योंकि एक सच्चा राजनेता ही “गैरों” को सम्मान दे सकता है खासकर उन्हें जिन्हें कांग्रेस ने अपना होते हुए भी “गैर” बना दिया |


वर्ष 2019 में नरेंद्र मोदी ने प्रणब मुख़र्जी को भारत रत्न दिया था और यह सबको पता है कांग्रेस प्रणब दा को कुछ खास पसंद नहीं करती थी - ऐसा उनकी बेटी की किताब में भी उजागर हुआ है, अपना पूरा जीवन कांग्रेस को देने वाले प्रणब मुख़र्जी को सही सम्मान देने का काम किया नरेंद्र मोदी ने |


डॉ आंबेडकर को कांग्रेस ने 1956 में मृत्यु के बाद भारत रत्न देने की जरूरत नहीं समझी और यह वी पी सिंह सरकार के समय में 1990 में दिया गया सरदार पटेल को 1950 में उनकी मृत्यु के बाद नरसिम्हा राव सरकार ने 1991 में भारत रत्न राजीव गांधी के साथ दिया जो शायद सोनिया गांधी को पसंद नहीं आया था और इसी वजह से राव को कभी कांग्रेस ने सम्मान नहीं दिया |


आज उसी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने का काम नरेंद्र मोदी ने किया है जिसके राजनीतिक मायने अलग हो सकते हैं - आंध्र प्रदेश तेलंगाना और दक्षिण के अन्य राज्यों में इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है लेकिन कांग्रेस द्वारा अपमानित नेता को सम्मान देने का काम मोदी ने किया है |


इसी तरह चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर कांग्रेस को याद कराया गया है कि किसी तरह उन्हें धोखा देकर कर उनकी सरकार गिराने का काम किया गया था कांग्रेस ने - चरण सिंह को सम्मान देकर कई राज्यों में जाट समुदाय को साधने में मदद मिलेगी |


सबसे बड़ी बात तो यह देखने को मिली कि मोदी सरकार ने Dr. MS. Swaminathan जैसे महान वैज्ञानिक की सेवाओं को सम्मान दिया है - हरित क्रांति के जनक और किसानों के कल्याण के काम करने वाले स्वामीनाथन जी को सम्मान सराहनीय कदम है - हो सकता है तमिलनाडु की जनता इस फैसले से कुछ हद तक खुश हो |


कुछ दिन पहले मोदी सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर पिछड़े और गरीब वर्ग के साथ देने का प्रयास किया था, अलबत्ता कुछ लोगों को आडवाणी जी को भारत रत्न देना रास नहीं आया था लेकिन वह उनके द्वारा देश में सांस्कृतिक उत्थान को जाग्रत करने के लिए जरूरी था |


कल ही प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की प्रशंसा करते हुए कहा था कि लोकतंत्र के प्रति मनमोहन सिंह की प्रतिबद्धता और निष्ठा प्रेरणादायी है और कहा कि देश में जब भी लोकतंत्र की चर्चा होगी, तब लोकतंत्र में उनके योगदान को याद किया जाएगा |


मोदी तीर कहां चलाते हैं और निशाना कहां होता है यह बाद में पता चलता है -  मोदी उनके कार्यकाल में हुए कामों की भी सराहना कर रहे हों, यह जरूरी नहीं, क्योंकि उसी दिन मोदी सरकार कांग्रेस के कामकाज पर “श्वेत पत्र” लेकर आई थी - खड़गे जी, इसलिए इस ग़लतफ़हमी में न रहें कि मोदी जी मनमोहन सिंह के समय के घोटालों और आर्थिक कुप्रबन्धन की भी तारीफ कर रहे हैं |

मजे की बात तो यह है कि कांग्रेस का युवराज जो खुद जन्म से भारतीय नहीं है वह ढोल पीट रहा है कि मोदी जन्म से OBC नहीं हैं - राहुल गांधी को पता होना चाहिए कि वो दोनों भाई बहन जन्म के समय इटालियन नागरिक सोनिया गांधी के बच्चे थे जिन्हें जन्म से भारतीय नहीं माना जा सकता |


आज के हालात ऐसे हो गए कि नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और उसके “इंडी” ठगबंधन को कहीं का नहीं छोड़ा - बड़े बड़े चाणक्य फेल कर दिए |


सुभाष चन्द्र  | Subhash Chandra  |  “मैं वंशज श्री राम का”  |  09/02/2024

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सूचना:  यंहा दी गई  जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की  कोई गारंटी नहीं है। सूचना के  लिए विभिन्न माध्यमों से संकलित करके लेखक के निजी विचारो  के साथ यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह  की जिम्मेदारी स्वयं निर्णय लेने वाले पाठक की ही होगी।' हम या हमारे सहयोगी  किसी भी तरह से इसके लिए जिम्मेदार नहीं है | धन्यवाद। ... 

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Makar Sankranti मकर संक्रांति

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